श्री गणेशाय नमः

हिंदू धर्म के अनुसार देवउठनी एकादशी यानी कि जिस दिन भगवान विष्णु अपनी निद्रा से जागते हैं उस दिन तुलसी विवाह का भी प्रावधान बताया गया है। इस दिन सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु भगवान चार महीने की अपनी निद्रा के बाद जागते हैं। ऐसे में इसी दिन भगवान शालिग्राम और तुलसी के पौधे का विवाह कराए जाने की भी मान्यता है।

तुलसी विवाह का आयोजन करना अत्यंत मंगलकारी और बेहद शुभ साबित होता है। जो कोई भी इंसान देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को तुलसी दल अर्पित करता है और फिर शालिग्राम के साथ तुलसी विवाह कराता है उसके जीवन के सभी कष्टों का चुटकियों में निवारण हो जाता है और उस भक्तों को भगवान हरि की विशेष कृपा भी प्राप्त होती है।

कब है तुलसी विवाह?
हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे देवउठनी एकादशी भी कहते हैं उसी दिन तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है। देश में कई हिस्सों में इसके अगले दिन यानी कि द्वादशी के दिन तुलसी विवाह किए जाने की भी मान्यता है। जो लोग एकादशी को तुलसी विवाह करवाते हैं वह इस वर्ष 25 नवंबर को इसका आयोजन करेंगे। वहीं द्वादशी के दिन तुलसी विवाह कराने वाले 26 नवंबर को तुलसी विवाह कर सकते हैं।

जाने तुलसी विवाह की तिथि

तुलसी विवाह का महत्व
हिंदू धर्म में तुलसी विवाह का बेहद महत्व बताया गया है। कहा जाता है यह वही दिन है जिस दिन भगवान विष्णु और सभी देवता गण 4 महीने की निद्रा से जागते हैं। इसी वजह से इस एकादशी को देवउठनी एकादशी भी कहा जाता है। जो कोई भी इंसान भगवान शालिग्राम और तुलसी का विवाह संपन्न कराता है उसके वैवाहिक जीवन में आ रही समस्याओं का निवारण हो जाता है।

साथ ही अगर किसी के विवाह में अड़चन आ रही है, रिश्ता पक्का नहीं हो रहा है, या शादी बार-बार टूट जा रही है तो उसे भी तुलसी विवाह करने का विधान बताया जाता है। इससे आपकी शादी में आ रही सभी बाधाएं अवश्य दूर होती हैं। सिर्फ इतना ही नहीं इस दिन के बारे में ऐसी मान्यता है कि जिन भी दंपत्ति को कन्या सुख नहीं प्राप्त होता है उन्हें अपने जीवन में एक बार तुलसी विवाह कर तुलसी का कन्यादान करने से बेहद ही पुण्य मिलता है।

तुलसी विवाह की पूरी और संपूर्ण विधि
जिन लोगों को भी तुलसी विवाह में शामिल होना होता है वह नहा धोकर तैयार होते हैं।
जो लोग तुलसी विवाह में कन्यादान करते हैं उन्हें व्रत रखना आवश्यक बताया गया है।
इसके बाद शुभ मुहूर्त के दौरान तुलसी के पौधे को आंगन में किसी चौकी पर स्थापित करें।
आप चाहे तो छत या मंदिर में भी तुलसी का विवाह करा सकते हैं।
अब दूसरी चौकी पर शालिग्राम को स्थापित करें। साथ ही चौकी पर अष्टदल कमल भी बनाए।
इसके ऊपर कलश स्थापित करें। कलश में जल भरें और उसके ऊपर स्वास्तिक बनाएं और आम के पांच पत्ते वृत्ताकार में रखें।
अबे नए लाल कपड़े में नारियल लपेटकर आम के पत्तों के ऊपर रख दें।
तुलसी के गमले में गेरू लगाएं। साथ ही गमले के पास जमीन पर भी उससे रंगोली बनाएं।
इसके बाद तुलसी के गमले को शालिग्राम की चौकी के दाएं तरफ रख दें।
तुलसी के सामने घी का दीपक जलाएं। इसके बाद गंगाजल में फूल डुबाकर ‘ॐ तुलसाय नमः’ मंत्र का जाप करते हुए गंगाजल का छिड़काव तुलसी पर करें। फिर यही गंगाजल शालिग्राम पर भी छिडकें।
अब तुलसी को रोली और शालिग्राम को चंदन का टीका लगाएं।
तुलसी के गमले की मिट्टी में ही गन्ने से मंडप बनाएं और उस पर सुहाग का प्रतीक लाल चुनरी ओढ़ा दें। इसके साथ ही गमले को साड़ी लपेट कर तुलसी को चूड़ी पहना कर उनका दुल्हन की तरह श्रृंगार करें।
शालिग्राम को पंचामृत से स्नान कराकर पीला वस्त्र पहनाएं।
इसके बाद तुलसी और शालिग्राम की हल्दी करें। इसके लिए दूध में हल्दी भिगोकर लगा सकते हैं।
गन्ने के मंडप पर भी हल्दी का लेप लगाएं।
पूजन के समय फल,फूल इत्यादि पूजा में शामिल करें।
शालिग्राम को चौकी समेत हाथ में लेकर तुलसी की सात बार परिक्रमा करें। इस वक़्त इस बात का ख़ास ख्याल रखें कि शालिग्राम की चौकी घर का कोई पुरुष सदस्य ही गोद में उठाये।
इसके बाद आरती करें और इस प्रकार तुलसी विवाह संपन्न हो जाने की घोषणा कर दी जाती है। सभी में प्रसाद बांटा जाता है।
इस दिन तुलसी और शालिग्राम को खीर और पूड़ी का भोग लगाएं।
तुलसी विवाह के दौरान मंगल गीत भी गाए जाते हैं।

तुलसी विवाह की कथा
तुलसी विवाह को लेकर हिंदू धर्म में दो अलग-अलग कथाएं प्रचलित हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार बताया जाता है कि प्राचीन काल में जालंधर नाम का एक राक्षस हुआ करता था। इस राक्षस ने चारों तरफ बहुत उत्पात मचा कर रखा था। राक्षस बेहद ही वीर और पराक्रमी था। राक्षस की वीरता का रहस्य बताया जाता था कि उसकी पत्नी वृंदा पतिव्रता धर्म का पालन करती थी। पत्नी के व्रत के प्रभाव से ही वो राक्षस इतना वीर बन पाया था। ऐसे में उसके उत्पात और अत्याचार से परेशान होकर देवता लोग भगवान विष्णु के पास गए और उनसे राक्षस से बचने की गुहार लगाई। सभी देवताओं की प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग करने का निश्चय कर लिया।

इसके बाद उन्होंने जालंधर का रूप धारण कर छल से वृंदा का स्पर्श किया। वृंदा का पति जालंधर राक्षस जालंधर से पराक्रम से युद्ध कर रहा था, लेकिन जैसे ही वृंदा का सतीत्व नष्ट हुआ वह मारा गया। जैसे ही वृंदा का सतीत्व भंग हुआ उसके पति का कटा हुआ सिर उसके आंगन में आ गिरा।वृंदा को देखकर बड़ा क्रोध हुआ। उसने यह सोचा कि अगर मेरे पति यहाँ हैं तो आखिर मुझे स्पर्श किसने किया? उस वक्त सामने विष्णु भगवान खड़े नजर आए। तब गुस्से में वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि, ‘जिस प्रकार तुमने मुझे छल से मेरे पति का वियोग दिया है उसी प्रकार तुम्हारी पत्नी भी का भी छल पूर्वक हरण होगा और स्त्री वियोग सहने के लिए तुम भी मृत्यु लोक में जन्म लोगे।’

इतना कहकर वृंदा अपने पति के साथ सती हो गई। बताया जाता है कि वृंदा के श्राप से ही प्रभु श्री राम ने अयोध्या में जन्म लिया और उन्हें सीता माता का वियोग सहना पड़ा। जहां पर वृंदा सती हुई थी वहां तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ।

इस दिन के बारे में दूसरी प्रचलित कथा के अनुसार बताया जाता है कि, वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप दिया था कि तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है इसलिए तुम पत्थर के बनोगे। यह पत्थर शालिग्राम कहलाएगा। तब विष्णु ने कहा है, ‘ वृंदा मैं तुम्हारे सतीत्व का आदर करता हूं लेकिन तुम तुलसी बनकर सदा मेरे साथ रहोगी। जो भी मनुष्य कार्तिक एकादशी के दिन तुम्हारे साथ मेरा विवाह कराएगा उसकी हर मनोकामना अवश्य पूरी होगी।’

इसीलिए मान्यता है कि बिना तुलसी दल के शालिग्राम या विष्णु जी की पूजा अधूरी होती है।

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