देशव्यापी हड़ताल और उससे उपजे सवाल - OmExpress

प्रतिदिन -राकेश दुबे

केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों को जन व श्रमिक विरोधी बताती हुई दो दिवसीय हड़ताल अपने आंशिक असर के साथ समाप्त हो गई | बाकी क्षेत्रों में इसका जो कुछ भी असर रहा हो बैंक उपभोक्ताओं पर इसका असर ज्यादा हुआ और अगले दो दिन भी बैंक उपभोक्ता मुश्किल का सामना करना होगा | बैंकों में चार दिन तक कामकाज बाधित रहने से ग्राहकों को कष्ट भोगना होगा । दरअसल दो दिनों की हड़ताल तथा वित्तीय वर्ष के आखिरी दो दिनों में क्लोजिंग के चलते यह सब संभावित ही था । दो प्रश्न उद्भूत होते हैं -१. यह है कि मांगे वर्षों तक लम्बित क्यों हैं ? २. क्या देश के श्रम संगठनों को राजनीतिक दलों के एजेंडे को दूर नहीं रखा जा सकता? इन सवालों के जवाब देश को खोजना होंगे |

देशव्यापी हड़ताल केंद्र सरकार के श्रम सुधारों व निजीकरण जैसे मुद्दों के खिलाफ विभिन्न श्रमिक संगठनों के आह्वान पर आयोजित दो दिवसीय हड़ताल का आंशिक असर ही देश में नजर आया। सोमवार व मंगलवार को आयोजित इस बंद में श्रमिक संगठनों व बैंक कर्मियों के संगठनों की भूमिका रही। श्रमिक संगठनों के केंद्रीय ज्वाइंट फोरम तथा स्वतंत्र श्रमिक संगठनों ने केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों को जन व श्रमिक विरोधी बताते हुए देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया था ।

अब भी श्रमिक संगठन केंद्र की प्रस्तावित श्रम संहिता को खत्म करने की मांग कर रहे हैं। वे निजीकरण रोकने, सरकारी परिसंपत्तियों को बेचने के लिये नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन को निरस्त करने, मनरेगा मजदूरी को बढ़ाने तथा ठेके के कर्मियों को पक्का करने जैसी मांगों को लेकर अपने आन्दोलन को जारी रखे हुए हैं। इस हड़ताल में बैंक कर्मियों की भागीदारी के चलते देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक एसबीआई व पंजाब नेशनल बैंक ने माना है कि उनकी सेवाओं पर प्रतिकूल असर पड़ा है । दरअसल, अखिल भारतीय बैंककर्मी एसोसिएशन की मांग है कि बैंकों का निजीकरण खत्म किया जाये, सरकारी बैंकों को मजबूत करें, बैड लोन की वसूली के लिये मजबूत तंत्र बने, जमा राशि की ब्याज दर बढ़ाई जाये, पुरानी पेंशन की बहाली हो तथा ग्राहकों से कम सर्विस चार्ज लिया जाये। बैंककर्मियों के अलावा हड़ताल में बीमा, रोडवेज तथा वित्तीय क्षेत्र के कर्मचारी भी शामिल हुए हैं। अपनी मांगों के समर्थन में कर्मचारियों ने देश के विभिन्न भागों में प्रदर्शन किया, यातायात बाधित किया और कई स्थानों पर ट्रेनें रोकी गईं। कुछ जगह आंदोलनकारियों को गिरफ्तार भी किया गया। पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु आदि कुछ दक्षिण के राज्यों में हड़ताल का असर देखा गया। बंगाल में वाम मोर्चे के सदस्यों ने जादवपुर में रेलवे ट्रैक ब्लाक किया। यह सब तब हुआ जब ममता सरकार ने बंद का विरोध किया और हड़ताल के दौरान छुट्टी लेने वाले कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की बात कही।

श्रमिक संगठनों का कहना है कि श्रमिक व किसान संगठन अपनी बारह सूत्री मांगों को लेकर वर्षों से संघर्षरत हैं। सरकार की उदासीनता के चलते ही हड़ताल बुलानी पड़ी है। जहां श्रमिक संगठन चार श्रम कानूनों को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं, वहीं जरूरी रक्षा सेवा अधिनियम को भी खत्म करने की बात कह रहे हैं। वे संयुक्त किसान मोर्चे की मांगों से संबंधित छह सूत्री घोषणापत्र को लागू करने, हर तरह के निजीकरण के खातमे, मनरेगा के आवंटन को बढ़ाने, औपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के लिये सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने, आंगनवाड़ी, आशा, मिड-डे मील व अन्य सरकारी योजनाओं में लगे कार्यकर्ताओं के लिये वैधानिक न्यूनतम पारिश्रमिक और सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराने की मांग भी कर रहे हैं।

वहीं दूसरी ओर, भारतीय मजदूर संघ ने खुद को हड़ताल से अलग रखा। संघ की दलील है कि इस बंद का असली मकसद कतिपय राजनीतिक दलों के एजेंडे को गति देना है। बहरहाल, दो दिवसीय हड़ताल के पहले दिन बैंकिंग सेवा के अलावा, सार्वजनिक परिवहन, ट्रांसपोर्ट व्यवस्था, इस्पात-कोयला खनन आदि सेवाओं पर भी प्रतिकूल असर पड़ा। श्रम संगठनों का दावा है कि झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में कोयला खनन क्षेत्रों पर हड़ताल का असर पड़ा। वहीं हरियाणा में रोडवेज कर्मचारियों के हड़ताल में शामिल होने से रोडवेज बस सेवा पर असर पड़ा। वहीं दूसरी ओर केरल हाईकोर्ट ने नागरिकों के हितों के मद्देनजर राज्य सरकार को निर्देश दिया कि सरकारी कर्मचारियों को हड़ताल में भाग लेने से मना किया जाये। इतना ही नहीं, हाईकोर्ट ने भारत बंद को अवैध तक बताया। इसके बावजूद हड़ताल से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले राज्यों में पश्चिम बंगाल के बाद केरल भी था। यही वजह है कि हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिये थे।

अब प्रश्न यह है की मांगे वर्षों तक लम्बित क्यों हैं ? क्या देश के विकास में राजनीतिक दलों के एजेंडे को दूर नहीं रखा जा सकता | विवाद सरकार और संगठनों के मध्य है तो आम नागरिक को हड़ताल के दौरान कष्ट क्यों मिले ?