समाज का प्रत्येक धर्म मानव जीवन को संतुलित, सुरक्षित, शांतिप्रिय, एकता, प्रेम और मैत्री में जीने का पाठ सिखाता है। और यह भी सिखाता है कि आप मानवता की मिसाल बने धर्म प्रभावक बने। धर्म का प्रभाव आपका मनोबल बढ़ाता है आपको संभल देता हैं। यहां विषय धर्म पर्यावरण और पारिस्थिति का है धार्मिक क्रिया में शरीर को कैसे स्वस्थ संतुलित और संयमित रख सकते हैं। जप तप त्याग तपस्या और अपरिग्रह का पाठ हमें जीवन के लिए आवश्यकता से अधिक नहीं पाने का पाठ सिखाता है जिससे हम छल कपट, लोभ माया से अपने आप दूर हो जाते हैं। हम खाद्यान्न के एक एक अंश तक उसकी कद्र करते हैं उसका उपयोग करते हैं। सब कुछ होने पर भी खाद्य पदार्थ का त्याग उपवास के रूप में अपने शरीर को तपस्या के माध्यम से आयामित करने पर हमारा भाव त्यागी रूप में अपने आप ढल जाता है। पर्यावरण की बात करें तो दो प्रकार के पर्यावरण होते हैं एक प्रकृति हमें देती हैं दूसरा पर्यावरणीय याने आसपास (वातावरण) जो हम स्वयं अपने बातचीत, कर्म और व्यवहार से बनाते हैं। यदि हमारे कर्म व्यवहार और आचरण में शुद्धता है तो हमारे जीवन में हमारे आस पास कभी भी मन भाव और विचारों का प्रदूषण नहीं होगा। पारिस्थिति प्रकृति का वह हिस्सा है जिसके तहत हमारा जनम मरण, खान पान, रहन सहन और व्यवहार निर्धारित होता है। उत्कृष्ट जीवन जीने के लिए हमें संयम की गाइडलाइन अनुशासित करना पड़ती है जो हमें हमारा धर्म सिखाता है साथ ही हमें हमारा अपना आचरण, व्यवहार और कर्म से आसपास का पर्यावरण शुद्ध रखना है और प्रकृति के साथ हमें जीना है। शुद्ध पानी, शुद्ध खाना, ताजी हवा, धूप छाव यह सब हमारी प्रकृति का हिस्सा है। 
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्)