

जयपुर, 5 मई। जोधपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और चिन्तक डा. प्रवीणचंद त्रिवेदी ने कहा कि प्रगतिशील प्रयोग से हमारा हैप्पीनेस इंडेक्स शिखर पर होना चाहिए किन्तु धार्मिक क्षेत्र में अज्ञानी, पाखंडी, आडम्बरयुक्त लोगों द्वारा धर्म का उपयोग मानवता के लिए करने की बजाय धर्म के प्रतीकों को गौरवान्वित किया जाने लगा है। इससे विसंगतियां बढ़ी हैं।
प्रो. त्रिवेदी ‘मुक्त मंच‘ की मासिक संगोष्ठी में ‘‘सामाजिक सद्भाव और उत्सवधर्मिता की विसंगतियां‘ विषयक संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे।
योगहंसिनी डा. पुष्पा अग्रवाल के सान्निध्य में हुई इस संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए प्रमुख विचारक और साहित्यकार डाॅ. नरेन्द्र शर्मा ‘कुसुम‘ ने कहा कि उत्सवधर्मिता तथा सद्भाव हमारी संस्कृति में अन्तर्निहित हैं। उन्होंने कहा कि उत्सवधर्मिता में राजनीति और राजनीति में धर्म के आश्रय से विकृतियां आती हैं।
भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकरी (से.नि.) अरुण ओझा ने कहा कि वर्तमान में जो साम्प्रदायिक तनाव दृष्टिगोचर है, वह सभ्यताओं के संघर्ष का परिणाम है। पत्रकार और प्रगतिशील विचारक सुधांशु मिश्र ने कहा कि राजनीति जनकल्याण और जन सेवा का मार्ग है किन्तु इसका उपयोग निहित स्वार्थों के लिए हो रहा है। धन पशुओं द्वारा लोकतंत्र को कमजोर किया जा रहा है। इन्द्रकुमार भंसाली ‘अमर‘ ने कहा कि आज उत्सवधर्मिता के नाम पर अराजकता फैलाना निंदनीय है।
डांग क्षेत्र विकास आयोग के पूर्व अध्यक्ष, डा. सत्यनारायणसिंह ने कहा कि राजनीतिक दल ध्रुवीकरण तीव्र करने में संलग्न हैं। ऐसे में प्रयोगों से सामाजिक विखंडन हो रहा है।
इस अवसर पर बाल संबल के प्रमुख ट्रस्टी और सामाजिक कार्यकर्ता, पंचशील जैन, इतिहासविद् डाॅ. गोविन्दशंकर पारीक, डाॅ. पी. चिराणिया, पूर्व प्रशासनिक अधिकारी आर.सी. जैन, वित्तीय सलाहकार आर.के. शर्मा, वरिष्ठ राजस्थानी कवि कल्याणसिंह शेखावत, पत्रकार अजीत तिवारी, डाॅ. मंगल सोनगरा, विष्णुलाल शर्मा, रमेश खंडेलवाल ने भी विचार व्यक्त किए।