बीकानेर,( हेम शर्मा )बीकनेर रियासत काल में रजवाड़ा रहा है। बीकानेर के महाराजा गंगासिंह की उस काल में अपनी अलग अहमियत रही है। आज उनकी प्रपोत्री चौथी बार भाजपा से विधायक बनी है। बीकानेर संभाग के नेता चाहे कांग्रेस हो या भाजपा राजस्थान की राजनीति और सरकार में दमखम रखते हैं। ऐसे बीकानेर को राजस्थान में भाजपा की सरकार में कोई खास अहमियत नहीं दी गई है। इसका असर जनमानस पर झलकता है। बीकानेर की सात विधानसभा सीटों में से छह भाजपा के खाते में और एक सहानुभूति के चलते कांग्रेस को गई है। सात सीटों में से चार विधायक पहली बार बने है। सुमित गोदारा को मंत्री बनाया गया है। बीकानेर से कांग्रेस के तीन कैबिनेट हारे है। इसके बदले भाजपा सरकार में मात्र एक मंत्री बनाया गया है। गोदारा ग्रामीण क्षेत्र से है जाट नेता भी। उनका रुझान गांवों की तरफ है। बीकानेर शहर में अगर कोई राष्ट्रीय सम्मेलन हो तो भी वे महत्व नहीं देते। अपने विधानसभा क्षेत्र के गांव ही उनके लिए सब कुछ हैं। ऐसे में बीकानेर की जनता नई सरकार को लेकर संतुष्ट नहीं है। बीकानेर की जनता ने जिस उत्साह से कांग्रेस सरकार के दिग्गज मंत्रियों शिकस्त दी है उतनी उम्मीदें इस नई सरकार के गठन से पूरी नहीं हुई है। जनता बीकानेर में खालीपन महसूस कर रही है। कोई सुनने या मानने वाला नहीं है। ऐसी रिक्तता पहले कभी नहीं रही। छह में चार विधायक भी नए हैं। बीकानेर की समस्याएं , लंबित मुद्दे, आधारभूत और औद्योगिक विकास, शिक्षा व्यवस्था की बदहाली, प्रशासनिक निष्क्रियता, अब तक हुए राजनीतिक पक्षपात का जनता सरकार बदलने के साथ समाधान चाहती, परंतु ऐसा हुआ नहीं। बीकानेर के लोग कहने लगे हैं “मजो कोनी आयो भाइला” यही नई सरकार गठन के बाद बीकानेर की जनता में निराशा का भाव है। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की स्ट्रेटजी जनता को भा नहीं रही है। एक भी ऐसा नेता नहीं उभरा है जिससे बीकानेर के लोगो को विश्वास हो की सरकार में बीकानेर की आवाज पहुंच सकेगी। उम्मीद थी जेठानंद व्यास, अंशुमान सिंह, डा.विश्वनाथ में से दो तो मंत्री होंगे ही। सत्ता में रहते हुए बीकानेर नई सरकार के गठन के बाद अनदेखी का शिकार हुआ है। बीकानेर पाटो और बातों का शहर है। बातें बनने लगी है थोड़े दिनों में दूर तलक जाएगी। ये बात ही नई सरकार की साख बनाएगी या बिगाड़ेगी।