नए साल का पहला दिन उत्साहवर्धक एवं जश्न के रूप में मनाया जाता है और हम जब उत्साह और जश्न के मूड में होते हैं तो हम दुख कष्ट और तनाव महसूस नहीं करते हैं। तनाव वह धीमा जहर है जो धीरे-धीरे हमारे शरीर और मस्तिष्क को काटता है। सांसारिक जीवन में कई प्रकार के तनाव हैं परिवार में पति पत्नी के बीच, संतान भाइयों और रिश्तेदारों के साथ, तथा व्यापार में तो तनाव लगे ही रहते है। कुछ तनाव तो हम स्वयं पैदा करते हैं और कुछ हमें दूसरे लोग तनाव में झोक देते हैं। आजकल तो शासन प्रशासन द्वारा आए दिन नये नियम बनाने से भी हमारे तनाव बढ़ गए हैं। जाने अनजाने में हम स्वयं भी कई तनाव अपने इर्द गिर्द पैदा कर लेते हैं, कई बार हमारी सोच और हमारी आदत बहुत सारे तनाव पैदा करती है। यदि एक बार भी व्यक्ति गंभीरता से सोचे कि जो तनाव हम महसूस कर रहे हैं यह क्यों महसूस हो रहा है क्या इसका कारण है तो स्वयं तनाव से मुक्त हो सकता हैं। व्यक्ति अपनी गलतियां मानने को तैयार नहीं होते हैं इसिलिए दुखी और तनावग्रस्त हैं। मेरी माता जी कहती थी कि यदि घर में कोई चिल्ला चोड़ करे है तो ध्यान मत दो और खाने में एक रोटी ज्यादा खाओ। और यदि किसी बात से वाद-विवाद होता है तो ” रात गई बात गई ” इस नीति पर चलने से भी तनाव कम हो जाएगा। यदि नए साल में यह संकल्प रख ले कि हमें तनावमुक्त रहना है तो हम कई बीमारियों से भी दूर रहेंगे और अच्छी सोच के साथ मस्त रहेंगे।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्)

