वे अपने गाँव को निकले थे, परम धाम को पहुंच गये । यह संख्या कोई छोटी-मोटी नहीं पांच सौ से उपर है। वे खालिस स्वदेशी थे । अपनी झोंपड़ी से ज्यादा उन्हें अपना गाँव प्यार था । इस दुष्काल में जब सरकार सब को अपने घरों में बंद रहने का हुक्मनामा जारी कर थी, जिनके घर थे वे घरों में बंद हो गये । जो सारे जहाँ को अपना घर मान बैठे थे, गाँव को निकल पड़े पैदल, साईकिल, मोटर साईकिल, रिक्शा, ट्रक पर लटक कर। सरकार की रेल जब तक चली वे दुनिया से चले गये । काश !उनका घर होता, तो वे खुदा के घर नहीं पहुंचते ।

देशव्यापी लॉकडाउन की वजह से देश में प्रतिदिन १० से ज्यादा लोगों की मौत हुई हैं, यह सिलसिला जारी है आंकड़ा कहाँ थमेगा ? कोई नहीं बता सकता । एक संस्था के सर्वे के मुताबिक ५१ दिनों में ५१६ लोगों की जान इस दुष्काल में कोरोना से बचाव के लिए अपनाये गये लॉक डाउन में गई है। इनमे सबसे ज्यादा वे मजदूर है, जो पैदल अपने गाँव को निकल पड़े थे । सामने आये आंकड़ों के अनुसार १४ से १६ मई के बीच देश के विभिन्न हिस्सों में हुई सड़क दुर्घटनाओं में ५० से ज्यादा मजदूरों प्राणांत हुआ है। वाहन दुर्घटनाओं से इतर भूख, बीमारी, पैदल चलते-चलतेअत्याधिक थकान के कारण कई मजदूरों चली गई, इनमे बच्चे भी है । देश में २५ मार्च से लॉकडाउन है, अकाल मौतों का ये अनुपात डराता है।

हर कहानी में सबसे ज्यादा लापरवाही १०० और १०८ नम्बर की सहायता समय पर न पहुंचने की है ।ये वाहन जिस जनता के लिए बने हैं उसके लिए दुर्लभ हैं, समाज के रसूखदार इन्हें अपने राजनीतिक संप्रभु के इशारों पर चलाते हैं ।वाहन चालक तो नहज कठपुतली होते हैं । इस दौरान कई कहानियां सामने आई हैं ।जिनमे ये वाहन ५ किलोमीटर के परिधि में जीवन बचाने में नाकारा सिद्ध हुए हैं ।
शोधकर्ताओं के डेटाबेस के अनुसार १४ मई तक लॉकडाउन में भुखमरी और वित्तीय संकट (जैसे कृषि उपज बेचने में असमर्थतता) से ७३ , थकावट (घर जाने, राशन या पैसे के लिए कतार) से३३ , समय पर चिकित्सा न मिलने की वजह से ५३ लोगों की मौत हो गई। १०४ लोगों ने आत्महत्या (संक्रमण का डर, अकेलापन) की। शराब न मिलने के लक्षणों से जुड़ी ४६ पुलिस अत्याचार से१२ , लॉकडाउन संबंधी अपराध की वजह से १५ और घर लौट रहे १२८ प्रवासियों की मौत दुर्घटनों में हुई है। ५२ और मौतें भी हुई हैं जिनका कारण स्पष्ट नहीं है। “लॉकडाउन के दौरान संक्रमण का डर, अकेलेपन, आने-जाने की स्वतंत्रता की कमी और शराब न मिलने के कारण हुई आत्महत्या की एक बड़ी संख्या है।

बहुत सी आत्महत्या प्रवासी मजदूरों की है जो परिवार से दूर फंस गये सा जिन्होंने संक्रमण की डर से जान दे दी।” कोविड-१९ “वायरस शायद अमीर और गरीब में फर्क न करे, लेकिन लॉकडाउन के दौरान हुई इन मौत का कहर गरीब तबके पर ही टूटा हैं। डेटाबेस में सबसे ज्यादा मौतें मजदूरों या उनके परिवार वालों की हुई है। बहुत सी मौतें नुकसान से परेशान किसानों की हैं। अगर इस संकट से उबरने में लोगों की मदद नहीं हुई तो मरने वालों की संख्या बढ़ती ही जायेगी।”

सरकार के हाथ बड़े हैं, सहायता करने का मन भी है पर उसकी मशीनरी उतनी ईमानदार और समर्पित नहीं है जितनी इस दुष्काल में अपेक्षित है । दुष्काल में सेवा का भाव कम “ कमाने का बड़े मौके” का स्वागत भाव अधिक है । आगे होने वाले पुनर्वास में सरकार की सदाशयता होगी इससे कोई गुरेज नहीं, पुनर्वास की पद्धति का सरल,सुगम और पारदर्शी होना अपेक्षित है ।यह अपेक्षा सारे समाज के लिए एक संदेश होगी और उन लोगों के लिए श्रद्धांजलि होगी जो घर को निकले थे और खुदा के घर पहुंच गए ।

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