

वे अपने गाँव को निकले थे, परम धाम को पहुंच गये । यह संख्या कोई छोटी-मोटी नहीं पांच सौ से उपर है। वे खालिस स्वदेशी थे । अपनी झोंपड़ी से ज्यादा उन्हें अपना गाँव प्यार था । इस दुष्काल में जब सरकार सब को अपने घरों में बंद रहने का हुक्मनामा जारी कर थी, जिनके घर थे वे घरों में बंद हो गये । जो सारे जहाँ को अपना घर मान बैठे थे, गाँव को निकल पड़े पैदल, साईकिल, मोटर साईकिल, रिक्शा, ट्रक पर लटक कर। सरकार की रेल जब तक चली वे दुनिया से चले गये । काश !उनका घर होता, तो वे खुदा के घर नहीं पहुंचते ।




शोधकर्ताओं के डेटाबेस के अनुसार १४ मई तक लॉकडाउन में भुखमरी और वित्तीय संकट (जैसे कृषि उपज बेचने में असमर्थतता) से ७३ , थकावट (घर जाने, राशन या पैसे के लिए कतार) से३३ , समय पर चिकित्सा न मिलने की वजह से ५३ लोगों की मौत हो गई। १०४ लोगों ने आत्महत्या (संक्रमण का डर, अकेलापन) की। शराब न मिलने के लक्षणों से जुड़ी ४६ पुलिस अत्याचार से१२ , लॉकडाउन संबंधी अपराध की वजह से १५ और घर लौट रहे १२८ प्रवासियों की मौत दुर्घटनों में हुई है। ५२ और मौतें भी हुई हैं जिनका कारण स्पष्ट नहीं है। “लॉकडाउन के दौरान संक्रमण का डर, अकेलेपन, आने-जाने की स्वतंत्रता की कमी और शराब न मिलने के कारण हुई आत्महत्या की एक बड़ी संख्या है।


बहुत सी आत्महत्या प्रवासी मजदूरों की है जो परिवार से दूर फंस गये सा जिन्होंने संक्रमण की डर से जान दे दी।” कोविड-१९ “वायरस शायद अमीर और गरीब में फर्क न करे, लेकिन लॉकडाउन के दौरान हुई इन मौत का कहर गरीब तबके पर ही टूटा हैं। डेटाबेस में सबसे ज्यादा मौतें मजदूरों या उनके परिवार वालों की हुई है। बहुत सी मौतें नुकसान से परेशान किसानों की हैं। अगर इस संकट से उबरने में लोगों की मदद नहीं हुई तो मरने वालों की संख्या बढ़ती ही जायेगी।”


