-चुनावी घोषणा पत्र में निजी विश्वविद्यालय नियामक आयोग बनाने की थी, घोषणा आज तक कुछ नहीं हुआ
-निजी विश्वविद्यालय संचालक कॉरपस फंड से करते ऐशो-आराम
जयपुर (हरीश गुप्ता)। राजस्थान सरकार आमजन के हितों पर एक से एक नए-नए फैसले ले रही है। आमजन खुश भी है, लेकिन सरकार निजी विश्वविद्यालयों की गुणवत्ता पर कब ध्यान देगी? लगभग हर जाति का आयोग बना दिया, तो निजी विश्वविद्यालय नियामक आयोग की घोषणा क्यों नहीं की जा रही?
सूत्रों की मानें तो राजस्थान में आज करीब 52 निजी विश्वविद्यालय है और करीब आधा दर्जन पाइप लाइन में है। नेक ग्रेड और एनआईआरएफ रैंकिंग वाली यूनिवर्सिटी 24 ही है। स्थिति यह है कि विश्वविद्यालय शुरू हुए करीब 15 साल हो गए, लेकिन नेक ग्रेड आज तक नहीं। ऐसे में उन विश्वविद्यालयों से पढ़े बच्चों का क्या होगा? उनकी डिग्रियां क्या काम आएंगी?
सूत्रों के अनुसार, आज देखा जाए तो कुछेक यूनिवर्सिटी को छोड़कर, अधिकतर में टीचर नहीं, फैकल्टी नहीं, लैब नहीं, गुणवत्ता नापने का कोई पैमाना नहीं, फिर भी सरकारी मशीनरी की देखरेख न होने के कारण, दौड़ रही है। जब कभी गलती से कोई जांच आ जाती है, उस समय इधर-उधर से भाड़े की फैकल्टी लाकर खड़ी कर दी जाती है।
गौरतलब है कुछ दिनों पहले समाचारों के माध्यम से पता चला कि चीन में एक व्यक्ति 27 साल से हायर एजुकेशन का टेस्ट दे रहा है, लेकिन पास नहीं हो पा रहा। कारण हायर एजुकेशन के लिए वहां एक टेस्ट पास करना होता है। वहीं देश की नहीं, राजस्थान में अगर वह व्यक्ति होता, तो पीएचडी कर चुका होता। कारण निजी विश्वविद्यालय बेलगाम हो चुके हैं। जब तक निजी विश्वविद्यालय नियामक आयोग नहीं बनेगा, ऐसा ही चलेगा। हालात यह है कि फर्जी डिग्रियों के लिए आज राजस्थान बदनाम है।
गौरतलब यह भी है कि कांग्रेस पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में निजी विश्वविद्यालय नियामक आयोग बनाने की घोषणा की थी। हकीकत यह है कि इस घोषणा को सभी कांग्रेसी भूल चुके हैं। निजी विश्वविद्यालय संचालकों के पास ऐसी क्या ताकत है?
सूत्रों की मानें तो निजी विश्वविद्यालय नो प्रॉफिट नो लॉस के सिद्धांत पर चलती है। शायद इसीलिए सरकार इन्हें रियायती दर पर जमीन देती है। वहीं इसके विपरीत यह यूनिवर्सिटी चांदी नहीं सोना कूट रही है। आमदनी को कॉरपस फंड में डाल दिया जाता है और फिर उसी फंड से लग्जरी गाड़ियां, मॉल, आलीशान बंगले, प्राइवेट बैंक व फार्म हाउस तैयार कर लिए जाते हैं। फिर वहां सरकारी नुमाइंदों को पार्टी दी जाती है। इसलिए इनकी विश्वविद्यालय पर नजर नहीं पड़ती। अगर यह आयोग नहीं बनाया गया तो परिणाम और भी गंभीर होंगे।