

तीन दिन तक रस्साकस्सी चलने के बाद आखिरकार कांग्रेस की कर्नाटक कलह तो कट गई, जिससे मल्लिकार्जुन खड़गे ने राहत की सांस ली है। सिद्धारमैया व डी के शिवकुमार तीन दिन तक शक्ति प्रदर्शन कर आलाकमान को लुभाने में लगे रहे। राहुल, खड़गे व के सी वेणुगोपाल पर्दे के पीछे दोनों में तालमेल करते रहे। राहुल की समझौते में पहली बार चुनाव अभियान की तरह नेता चुनने में भी गम्भीर भूमिका रही। लंबी बैठके दोनों नेताओं से की और खड़गे को सभी सूचनाएं देते रहे। राहुल ने इस बात को साबित किया कि आलाकमान अब खड़गे ही है। कर्नाटक कलह को आखिरकार सोनिया गांधी ने हस्तक्षेप कर समाप्त किया। क्योंकि डी के पहले ही कह चुके थे कि पार्टी मां है और सोनिया मेरे लिए आराध्य है, वे जो भी कहेंगी आंख मूंदकर मानूंगा। रात 2 बजे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये हिमाचल से जुड़कर सोनिया ने डीके को अपनी राय बताई, उन्होंने तुरंत हामी भी भर दी।
सिद्धारमैया व डीके का कर्नाटक में कद अशोक गहलोत व सचिन पायलट से बड़ा है, दोनों में काफी समय से टकराहट है फिर भी मिलकर चुनाव लड़े। कांग्रेस को जीत दिलाई। लड़ाई तो बाद में सीएम पद को लेकर हुई। मगर तीन दिन में आलाकमान के सामने दोनों झुके और कुछ कुछ त्याग किया, कलह मिट गई और सरकार गठित हो रही है। जो भी दोनों में समझौते हुए, अंदरखाने हुए। बाहर चूं तक नहीं हुई। बड़ी बात ये थी कि खड़गे, सोनिया व राहुल का नेतृत्त्व माना और कांग्रेस को सर्वोपरि रखा। मगर राजस्थान में सब स्थिति इससे उलट है। यहां दोनों ही पक्षों ने आलाकमान की अवहेलना की है और उसे विवश भी किया है।
अगर दोनों नेताओं के समर्थकों का अहम न टकराता तो मनमुटाव मिटने के प्रबल आसार अहमद पटेल ने बना दिये थे। मानेसर के बाद यदि आलाकमान सतर्क रहता तो खाई न तो खुदती और न उसे चौड़ा होने का अवसर मिलता। वहां चुकने के बाद दूसरी बड़ी चूक तब हुई जब सोनिया गांधी ने मसला हल करने के विधायक दल की बैठक बुला खड़गे व माकन को पर्यवेक्षक बना के भेजा। तब गहलोत गुट के विधायकों कांग्रेस के इतिहास में पहली बार पर्यवेक्षकों को बैरंग लौटाया, इस्तीफे देकर सरकार को खतरे में डालने की धमकी दी। तब भी आलाकमान कुछ नहीं कर सका। अब गलतियां दोनों तरफ से हो गई तो किसी एक गलती पर सजा देने की स्थिति ही नहीं रही। राज्य में कांग्रेस अब उसी का दंड भुगत रही है। सरकार के काम भी जनता तक नहीं पहुंच रहे हैं। अब तो दूरी ज्यादा ही हो गई है, कल अजमेर में दोनों दलों के समर्थकों में हाथापाई तक हो गई।
कर्नाटक की कलह मिटी है, अब कांग्रेस आलाकमान राजस्थान की सुध लेने के लिए एक्टिव हुआ है। जानकारी के अनुसार अब कर्नाटक की तरह राहुल का सीधा इस मामले में हस्तक्षेप रहेगा। जिसका ब्ल्यू प्रिंट खड़गे, वेणुगोपाल, रंधावा के साथ तैयार कर लिया है। प्रियंका और सोनिया गांधी को ब्रह्मास्त्र के रूप में सुरक्षित रखा गया है। गहलोत व पायलट के साथ शीघ्र ही बैठक होगी और चुनाव जीतने और उसके बाद के निर्णयों पर मोहर लगेगी। हालांकि दोनों गुटों के कुछ नेता छुटपुट घटनाएं कर दूरियां बनाये रखने में लगे हैं, उनमें उनका खुद का स्वार्थ है। इससे भी आलाकमान अंजान नहीं है। उसको पता है कि अकेले गहलोत या पायलट के बूते चुनाव नहीं जीता जा सकता। दोनों को सिद्धारमैया व डीके की तर्ज पर साथ रखना जरूरी है। कांग्रेस जी तोड़ प्रयास कर पांच साल बाद सरकार बदलने की परंपरा को तोड़ना चाहती है। क्योंकि भाजपा भी राज्य में गुटबाजी से त्रस्त है, इसी कारण कांग्रेस की आपसी लड़ाई का पूरा लाभ नहीं उठा पा रही है। महंगाई राहत शिविर का भी भाजपा के पास कोई तोड़ नहीं है। कर्नाटक में जीत व कलह समाप्ति से कांग्रेस उत्साहित है और राजस्थान की कलह पर भी विराम के लिए कमर कस चुकी है।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार