– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार
बड़े से लेकर छोटे नेताओं के अटपटे और बिगड़े बयानों की इस समय बयार है, वो भी खासकर कर्नाटक व राजस्थान में। इन बयानों को सुनकर लगता है दोनों राज्य में चुनावी तेज गति से चल रही है। वहीं माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस बार कड़ा रुख अपनाते हुए कहा है कि सभी राज्य सरकारों व केंद्र सरकार को हेट स्पीच के मामलों में तुरंत बिना शिकायत मामला दर्ज करने के लिए कहा है। माननीय न्यायालय का कहना है कि धर्म के नाम पर हेट स्पीच को नहीं स्वीकारा जा सकता। यदि मामला दर्ज नहीं हुआ तो इसे अवमानना माना जायेगा।
कर्नाटक व राजस्थान में भी धार्मिक, जातिगत बयानों की शुरुआत हो चुकी है। अभी कर्नाटक में ज्यादा है क्योंकि वहां अगले चुनाव में दो सप्ताह भी शेष नहीं बचे हैं। राजस्थान में चुनाव इस साल के अंत में है मगर भाजपा व कांग्रेस, व्यक्तिगत रूप से आरोपों की झड़ी लगाये हुए हैं। वार – पलटवार भी तेजी से हो रहे हैं। राजस्थान से केंद्र में बने केबिनेट मंत्री ने सीएम की तुलना एक खल पात्र से करते हुए चितौड़गढ़ में कह दी। सीएम भी कहां चुकने वाले थे, थोड़े ही घंटों के बाद उन्होंने पलटवार कर दिया। बस, हो गई बहस शुरू। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने भाजपा के नेता प्रतिपक्ष पर कुछ कह दिया तो कई भाजपा नेता उठ खड़े हुए, विशेष वर्ग का विरोध कहने लगे गये। हरियाणा के सीएम पर भी प्रदेशाध्यक्ष जी बोले तो उनके समाज के प्रदेशवासियों को विरोध के लिए सामने खड़ा कर दिया गया।
कर्नाटक में तो बात ज्यादा ही बढ़ गई। कांग्रेस अध्यक्ष ने पीएम की तुलना में बिगड़ा बयान दे दिया। तो भाजपा के एक विधायक ने सोनिया गांधी पर भी वैसा ही बयान दे दिया। कांग्रेस अध्यक्ष ने बाद में अपने उस बयान की सफाई देकर मामले को ठंडा करने की कोशिश की, मगर भाजपा अब भी उसे जिंदा रखे हुए है ताकि चुनावी लाभ मिले।
कर्नाटक में तो बिगड़े बोल का मामला कुछ ज्यादा ही जोर शोर से चल रहा है। इस चुनावी बयार में सुप्रीम कोर्ट ने जरूर हेट स्पीच पर संज्ञान लिया है और कड़े आदेश जारी किए हैं। जब राजनीति में सब तरह से इस तरह की बातें हो रही है तो जनता की नजरें तो माननीय न्यायालय की तरफ ही जानी थी। वहां से उन्हें आशा की किरण मिली। मगर चुनाव को भाषा के स्तर पर इतना तीखा न किया जाये, इस पर सभी राजनीतिक दलों को भी प्रयास करना चाहिए। सभी दलों को अपने नेताओं व कार्यकर्त्ताओं के लिए दलीय आचार संहिता बना उसका ईमानदारी से पूरा पालन करना चाहिए, तभी चुनावी बयार सुखद हवा में बदलेगी और आम आदमी को भी राहत महसूस होगी।