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राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा अब मध्य प्रदेश में प्रवेश कर रही है। उसके बाद राजस्थान, हरियाणा में से भी उसे गुजरना है। उत्तर भारत के इन राज्यों में कांग्रेस नेताओं की आपसी टकराहट जग जाहिर है और उन सबको साधना पार्टी के लिए बड़ी चुनोती होगी। पार्टी के भीतर का असंतोष यदि कायम रहा तो उसका असर भी यात्रा पर पड़ेगा। इन राज्यों में आने वाले समय में आम चुनाव से पहले विधानसभा चुनाव भी है।
मध्य प्रदेश तो वो राज्य है जिसमें कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव जीता था, मगर एक साल में ही ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने विधायकों को लेकर अलग हो गये। क्योंकि कमलनाथ और सिंधिया में टकराहट थी। परिणाम स्वरूप सत्ता से हाथ धोना पड़ा और भाजपा सत्ता पर काबिज हो गई। वहां अब भी नेताओं की टकराहट है जबकि आलाकमान ने कमलनाथ पर ही पूरा भरोसा किया हुआ है। यात्रा यदि कांग्रेस नेताओं के बीच की दूरी पाट पाई तो ही वो अगले चुनाव में कुछ करिश्मा कर सकती है। शिवराज सिंह सरकार के खिलाफ एन्टीनकम्बेंसी है, मगर उसका लाभ तभी मिल सकता जब कांग्रेस के नेता एक नहीं होंगे। राहुल का यात्रा के मध्य नेताओं की आपसी दूरियां भी मिटाने का प्रयास रहेगा, जिसका ब्ल्यू प्रिंट जयराम रमेश ने तैयार किया है। मध्य प्रदेश में यात्रा को मिलने वाला रिस्पॉन्स भी बहुत कुछ स्पष्ट करेगा। यात्रा से पहले भाजपा विधायक के नाम का एक गुमनाम खत भी आया है जिसमें राहुल पर हमले की धमकी दी गयी है। उससे मध्य प्रदेश सरकार के सामने सुरक्षा की भी बड़ी चुनोती है। कांग्रेस इस मसले पर आक्रामक भी है।
बाद में भारत जोड़ों यात्रा राजस्थान में भी आयेगी। यहां की कांग्रेस तो सीधे सीधे तीन गुटों में बंटी दिख रही है। एक गुट सीएम अशोक गहलोत का है, दूसरा गुट सचिन पायलट का और तीसरा अपने को आलाकमान के पक्ष में है। पायलट गुट लगातार नेतृत्त्व परिवर्तन की मांग कर उसपे अड़ा हुआ है। लगातार अपनी ही सरकार पर हमलावर है और विधायक भी अनवरत पाले बदल रहे हैं। मंत्रियों की आपसी टकराहट तो सार्वजनिक है। गुडा, खाचरियावास, हेमाराम चौधरी, महेश जोशी, रमेश मीणा आदि के बयान रोज नया संकट खड़े कर रहे हैं।
यहां आलाकमान के पर्यवेक्षक अजय माकन व वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के आने पर भी बैठक में नहीं आये। समानांतर रूप से अपनी अलग बैठक की और गहलोत को हटाने पर इस्तीफे की धमकी दी। इतना ही नहीं इस गुट के विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष सी पी जोशी को इस्तीफे सौंप भी दिए जो अब तक उनके पास पड़े हैं। मतलब मसला जिंदा है और भीतर चिंगारी सुलग रही है। विधायक दिव्या मदेरणा के बयान भी सीएम और उनके गुट के सामने समस्या पैदा कर रहे है। खास बात ये है कि दोनों गुट इस कोशिश में लगे हैं कि दूसरे को भाजपा के निकट साबित कर दें। यात्रा आने से पहले गुर्जर आंदोलन को लेकर चल रही सियासत में भी पर्दे के पीछे की कुछ अलग व दूसरी कहानी ही लग रही है। पंचायती राज मंत्री रमेश मीणा को पायलट गुट का माना जाता है और उनका बीकानेर कलेक्टर को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है। ये विवाद अब राजनीतिक रूप में बदलने लगा है और उस पर भी कांग्रेस की गुटीय राजनीति हावी दिख रही है। ये मसला यात्रा आने तक जिंदा रखने की कोशिश दोनों ही तरफ से हो रही है।
राजस्थान की राजनीति में भाजपा भी भीतरी असंतोष से घिरी है और इसी कारण कांग्रेस सरकार पर ज्यादा हमलावर नहीं हो पा रही। मगर उसकी इस कमी को कांग्रेस के गुट ही पूरा करने में लगे हैं। भाजपा को तो बैठे बिठाए मुद्दे मिल रहे हैं। मगर उनका पूरा राजनीतिक लाभ वो उठा नहीं पा रही है।
यात्रा हरियाणा भी जायेगी। जहां भूपेंद्र हुड्डा व अन्य नेता आमने सामने है। राज्य सभा चुनाव में पूरे मत होने के बाद भी कांग्रेस उम्मीदवार अजय माकन को चुनाव हारना पड़ा। हरियाणा के नेता रणदीप सुरजेवाला को राजस्थान से राज्यसभा में जाना पड़ा क्योंकि उनके और हुड्डा के बीच छत्तीस का आंकड़ा है। अब भी वहां कांग्रेस एकजुट नहीं है, उसका यात्रा पर कितना असर पड़ेगा ये तो उस समय पता चलेगा। मगर अभी तो तलवारें म्यान से बाहर है। इसी वजह से भारत जोड़ों यात्रा की असली परीक्षा इन राज्यों में होगी।

  • मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
    वरिष्ठ पत्रकार