पिछले एक दशक से चुनावी तैयारी में भाजपा विपक्ष से चार कदम आगे ही रही है और इसका उसे बड़ा फायदा भी हुआ है। मगर इस बार भाजपा आम चुनाव की गणित बिठाने के फेर में इतनी उलझ गई है कि राज्यों के चुनाव में उसकी रफ्तार सुस्त दिख रही है। कर्नाटक इसका उदाहरण है, जहां अपने दिग्गज नेताओं को पार्टी छोड़कर जाने से रोकने में भी वो विफल रही। येदुरप्पा को पूरी तरह से राजी नहीं कर सकी जिसके कारण ही चुनाव बाद आये सर्वे में भाजपा बैकफुट पर नजर आ रही है। हिमाचल से जो असंतुष्टों के मुखरित होने का सिलसिला शुरू हुआ वो दल त्यागने तक पहुच गया है। जिसका असर एमपी, छत्तीसगढ़ में तो साफ नजर भी आने लग गया है। राजस्थान में भी स्थिति पूरी तरह अभी तक सही नहीं है।
राहुल गांधी कर्नाटक के प्रचार में जुटे थे और धुंआधार रैलियां कर रहे थे। 7 मई को वहां चुनाव प्रचार खत्म हुआ। फिर वे वहां नहीं रुके। तुरंत राजस्थान मिशन पर आ गये। क्योंकि इस राज्य में 6 महीने बाद चुनाव है और पार्टी गहलोत- पायलट गुट में बंटी है। इन दोनों के मध्य दूरियां मिटाने के लिए पूरी जानकारी जुटाई और फिर दिल्ली गये। खड़गे अब इस टकराहट के हल व संगठन की बची नियुक्तियों में कर्नाटक से आते ही लग गये हैं। भाजपा अभी तक भी वसुंधरा व अन्य नेताओं को लेकर कोई ठोस निर्णय नहीं कर पाई है। राजे पर नीति स्पष्ट हुए बिना भाजपा चुनावी बिसात बिछा भी नहीं सकती, ये कड़वा सच है।
मध्यप्रदेश में भी प्रियंका ने दिग्गी राजा व कमलनाथ को सक्रिय कर दिया है। क्योंकि एमपी की कमान प्रियंका ने ही संभाली है। दिग्गी राजा ने जहां सिंधिया के इलाके में सेंध लगा बड़े नेताओं का पाला बदलवाया है वहीं कमलनाथ ने एमपी के पूर्व सीएम व 3 बार के विधायक दीपक जोशी को कांग्रेस में लाकर बड़ा धमाका किया है। कुछ के और दलबदल की भी संभावना है। भाजपा के वरिष्ठ नेता व कवि सतन के भी बोल भाजपा को लेकर बदले हुए हैं। भाजपा यहां भी सिंधिया खेमे व मूल भाजपा के नेताओं के बीच सामंजस्य बिठा पाने में विफल रही है, असंतोष ज्यादा गहरा रहा है। कई लोग पार्टी छोड़ने को तैयार है। भाजपा यहां भी हल निकालने में पिछड़ी हुई है और चुनाव नजदीक आ रहे हैं। जबकि प्रियंका ने चुनावी बिसात बिछा मोहरे चलने भी शुरू कर दिये हैं। जाहिर इससे वो फायदे में रहेगी और देरी भाजपा को नुकसान देगी।
छत्तीसगढ़ में तीन बार के सांसद, तीन बार के विधायक व अटल जी के करीबी रहे नंदलाल सहाय ने भाजपा छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया है। वे कद्दावर आदिवासी नेता है। कुछ और नेताओं ने भी कांग्रेस में जाने के संकेत दिए हैं। राज्य के भाजपा नेता बेअसर है और आलाकमान भी समस्याओं के निपटारे में सुस्त है, जबकि भूपेश बघेल राहुल के निर्देश पर तेज गति से चल रहे हैं। प्रियंका ने भी कर्नाटक चुनाव प्रचार थमने का बाद विश्राम नहीं किया। सीधे तेलंगाना गई और युवाओं की एक बड़ी रैली कर चुनावी शंखनाद कर दिया। केसीआर भी इतनी तेज गति से नहीं चल रहे, भाजपा तो उनसे भी सुस्त है।
कांग्रेस इस तरह से चुनावों को लेकर वर्षों बाद तेज गति में दिख रही है, कर्नाटक चुनाव से वो ज्यादा उत्साह में है। कर्नाटक चुनाव परिणामों का भी इन राज्यों पर असर पड़ेगा। अब हर राज्य में चुनावी समर शुरू है और जो सुस्त रहेगा वो पिछडेगा, स्थिति में भी और परिणाम में भी।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार