गुजरात विधानसभा के चुनाव अब रोचक स्थिति में पहुंच गये हैं। अब तक चुनावी मैदान में भाजपा व आम आदमी पार्टी ही बैटिंग कर रही थी और दोनों कांग्रेस की खामोशी पर सवाल भी खड़े कर रहे थे। कांग्रेस के नेता चुप थे। मगर अचानक से कांग्रेस ने अपनी चुनावी रणनीति घोषित कर सभी राजनीतिक दलों को अचंभे में डाल दिया है। अब सभी दलों के नेताओं को पीएम मोदी का कुछ समय पहले दिया वो बयान याद आ रहा है जिसमें उन्होंने कहा था कि मुकाबले में कांग्रेस है, उसे कम न आंके।
गुजरात चुनाव के लिए कांग्रेस ने कल अपने 42 नेताओं को पर्यवेक्षक बना अचानक से चुनावी धावा बोला है। गुजरात को चार भागों में बांट उसके प्रभारी बनाये हैं और फिर संभाग प्रभारी। उनके नीचे फिर विधानसभा क्षेत्रवार प्रभारी। इन 42 प्रभारियों की सूची में कांग्रेस ने अपने सभी वरिष्ठ नेताओं को शामिल किया है। पूर्व सीएम, राज्यों के नेता भी लगाए गए हैं और वो भी जातिगत समीकरण देखकर। इन नेताओं का आज से गुजरात मे डेरा रहेगा। इसके साथ ही कांग्रेस ने चुनाव प्रचार में मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी, राहुल गांधी व प्रियंका गांधी के भी शामिल होने का ऐलान किया है। विपक्ष अब तक राहुल पर चुनाव प्रचार न करने को लेकर सवाल खड़े कर रहा था, ये एक तरह से उन आरोपों का जवाब है। हिमाचल के चुनाव प्रचार से सोनिया व राहुल दूर रहे थे।
राजनीतिक विश्लेषकों ने भी गुजरात में कांग्रेस प्रचार की धीमी गति को एक रणनीति कहा था, वो बात अब प्रमाणित हो रही है। कांग्रेस आरम्भ में इस बार अपनी पूरी शक्ति लगाने से बची ताकि चुनाव की दृष्टि से अंतिम महत्त्वपूर्ण दिनों में एक साथ धावा बोल सके। कांग्रेस इस बार गुजरात चुनाव को गंभीरता से ले रही है, ये बात अब जाकर सामने आई है।
दूसरी तरफ भाजपा अभी तक अपने ही नाराज नेताओं को मनाने में लगी है। एन्टीनकम्बेंसी को रोकने के लिए भाजपा ने 33 प्रतिशत से अधिक अपने विधायकों के टिकट काट दिए। पूर्व सीएम, डिप्टी सीएम सहित कुछ पूर्व मंत्रियों को भी टिकट से वंचित किया गया है। इनकी जगह नये नेताओं को मैदान में उतारा गया है। अब टिकट से वंचित भाजपा नेता रिएक्ट करने लगे हैं, जिससे भाजपा को दिक्कत उठानी पड़ रही है। भाजपा को पता है कि पिछले चुनाव में कांग्रेस ने उसको कड़ी टक्कर दी थी। भाजपा 99 सीट ही जीत सकी थी। इसीलिए वो इस बार ज्यादा सतर्क है।
आप ने शुरुआत बहुत पहले की मगर अब भी वो तीसरी बड़ी शक्ति बनने में सफल नहीं हुई है। हालांकि कुछ कुछ क्षेत्रों में उसने जरूर मजबूत दस्तक दी है। आप के लिए अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया व राघव चड्ढा ने पूरी शक्ति लगाई है। मगर आप में आने और जाने वालों ने पार्टी के कैम्पेन को काफी प्रभावित किया है। इसी बीच केंद्र सरकार ने दिल्ली में एमसीडी चुनाव की प्रक्रिया शुरू कर आप को उलझा दिया है। जिसका असर गुजरात चुनाव के कैम्पेन पर निश्चित रूप से पड़ेगा।
भाजपा को ओवैसी के गुजरात चुनाव में उतरने से थोडी राहत जरूर मिली है, क्योंकि शहरी क्षेत्र में आप सीधे उनके ही वोट का नुकसान कर रही है। ओवैसी के आने से कांग्रेस का वोट बैंक कटेगा, वो भाजपा को राहत देगा।
अब तक की चुनाव स्थिति से ये तो स्पष्ट हो गया कि आप भाजपा और कांग्रेस, दोनों दलों के वोट काटने का काम कर रही है। शहरी क्षेत्र में तो उसका हमला सीधे सीधे भाजपा के ही वोट बैंक पर है। इसी का आंकलन कांग्रेस ने बहुत पहले किया और अपनी पूरी शक्ति ग्रामीण क्षेत्र में लगाई। जहां अब उसका असर भी दिखने लगा है।
इन मुख्य दलों के अलावा छोटे गैर मान्यता प्राप्त दल, बिटीपी भी मैदान में है, जो भाजपा के लिए राहत की बात है। मगर एनसीपी व कांग्रेस के साथ हो जाने से कांग्रेस को भी राहत है। कांग्रेस ने ओवैसी की काट के लिए भी खास प्रचार की नीति बनाई है। यदि उसमें वो सफल रही तो शहरी क्षेत्र में उसका वोट कम कटेगा और वो आप से होने वाले नुकसान की भरपाई करेगी। कांग्रेस ने गुजरात की 125 सीट पर फोकस कर आक्रामक चुनावी अभियान की घोषणा से सबको चिंतित किया है। उसके अनुसार अब भाजपा व आप को भी अपनी चुनावी रणनीति में बदलाव करना पड़ेगा। कुल मिलाकर गुजरात में अब चुनाव रोचक स्थिति में आ गया है। वोट कटवा पार्टियों की स्थिति ही अब चुनाव परिणामों में उलटफेर करेगी। तभी तो सब ये कहने लग गये हैं कि गुजरात के चुनाव में कड़ी टक्कर है।

  • मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
    वरिष्ठ पत्रकार

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