बीकानेर।जाट नेता व पूर्व नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी ने नोखा के जसरासर में किसान सम्मेलन कर अपना बदला हुआ राजनीतिक वर्चस्व दिखाया। उनको पहले समान रूप से गहलोत व पायलट के साथ माना जाता था, वे अपने को कांग्रेस के साथ बताते हुए दोनों नेताओं के साथ मंच शेयर किया करते थे। मगर जसरासर में किसान सम्मेलन करके डूडी ने गहलोत, प्रभारी रंधावा, प्रदेशाध्यक्ष डोटासरा को बुलाया। गहलोत गुट से माने जाने वाले कई मंत्री, विधायक व बोर्ड- निगमों के अध्यक्ष भी आये। कमी थी तो केवल सचिन पायलट की, उनके समर्थक मंत्रियों व विधायकों की। किसी को भी नहीं बुलाया गया। उसी वजह से राजनीति के गलियारों में ये कहा गया कि डूडी ने पाला बदल लिया और पूरी तरह से गहलोत के साथ हो गये। किसान सम्मेलन के बाद एक बयान में डूडी ने पिछली जीत में सभी नेताओं के योगदान की बात कही, ये भी कहा कि पिछले शासन के भ्र्ष्टाचार पर कार्यवाही हो रही है। ये बात सचिन के अभियान के विपक्ष की है। मगर चतुर राजनेता की तरह डूडी ने ये भी कह दिया कि कार्यवाही की जानकारी देकर पायलट को संतुष्ट किया जाना चाहिए। एक बार फिर जसरासर किसान सम्मेलन की सफलता से उत्साहित डूडी ने जाट को सीएम बनाने की अपनी बात भी दोहराई।
जसरासर किसान सम्मेलन, डूडी के बयान, पायलट गुट की वहां उपेक्षा पर पायलट के किसी समर्थक ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। उसका राजनीतिक जवाब कल 6 मई को पायलट व उनके सहयोगियों ने बाड़मेर के बड़े आयोजन से दिया और माध्यम बने जाट नेता हेमाराम चौधरी। जसरासर की तर्ज पर वहां भी बड़ी भीड़ जुटी और राजनीतिक तीर चले। गैर राजनीतिक आयोजन के नाम पर सब हुआ, जिसे राजनीति ही माना जाना चाहिए।
अवसर था वीरेंद्र धाम के उद्घाटन का। मगर वहां भी जुटे वही मंत्री और विधायक जिनको पायलट के साथ माना जाता है। राजेन्द्र सिंह गुडा, बृजेन्द्र ओला, दीपेंद्र सिंह, राजेन्द्र चौधरी आदि तो थे ही। इन सबके अलावा राहुल के निकटस्थ, पूर्व मंत्री जाट नेता हरीश चौधरी भी इस आयोजन में शामिल हुए। उनका व पायलट का भाषण इशारों इशारों में गहलोत सरकार पर कटाक्ष ही था। दोनों अपरोक्ष रूप से गहलोत सरकार को ही घेर रहे थे। हां, पायलट ने केंद्र सरकार को भी घेरा। मगर मंच पर बैठे पायलट गुट के सभी नेताओं के चेहरे भीड़ देखकर खिले हुए थे। हेमाराम चौधरी की इस आयोजन के लिए मेहनत साफ दिख रही थी।
बाड़मेर के आयोजन के बाद एक बार फिर शांत हुआ कांग्रेस का भीतरी संघर्ष फिर चौराहे पर आ गया है। साफ लग रहा है कि कांग्रेस के भीतर सब कुछ ठीक नहीं है, जबकि गहलोत सरकार रिपीट करने का दावा कर रहे हैं। रंधावा भी इन दोनों गुटों की टकराहट का कोई हल आलाकमान को बताने में असफल रहे हैं।
राजनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि कर्नाटक चुनावों के बाद कांग्रेस सीधे मिशन राजस्थान पर काम करेगी। जाहिर है, चुनाव में अब ज्यादा समय नहीं रह गया है इसलिए हल तो निकालना ही पड़ेगा। 10 मई के बाद राजस्थान कांग्रेस में बड़े बदलाव अब निश्चित है। जसरासर और बाड़मेर आयोजनों के बाद इसकी प्रबल संभावना बन गई है।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार