एक लंबे अर्से से जातीय गणना का राग गा रहे बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने भारतीय राजनीति में हलचल पैदा कर दी है। जब बिहार में उनकी भाजपा के साथ सरकार थी तब से ये मुद्दा उठा था, मगर भाजपा के साथ के कारण परवान नहीं चढ़ सका। हालांकि नीतीश इसके समर्थन में बोलते जरूर रहे। भाजपा से अलग होकर फिर उन्होंने महागठबन्धन के साथ सरकार बना ली। अब जातीय गणना आरम्भ करा राजनीति में जबरदस्त हलचल पैदा कर दी है। भाजपा असमंजस में है, इस काम का वो न तो समर्थन कर पा रही है और न विरोध। क्योंकि उसे एक बड़े वोट बैंक के खिसकने की आशंका है।
भाजपा नीतीश के इस निर्णय का विरोध इसलिए नहीं कर रही क्योंकि इस साल 10 राज्यों में विधानसभा के चुनाव है और वहां ओबीसी का बड़ा वोट बैंक है। इस गणना का ध्येय ओबीसी वोट बैंक ही है, ये हर राजनीतिक दल जानता है। जातियों की गिनती ऐसे समय में शुरू की गई है इसीलिए राजनीति में हलचल हुई है। अगले साल आम चुनाव भी है, उस पर भी इस गणना का असर होना लाजमी है, ये हर राजनीतिक दल जानता है।
जातीय गणना को नीतीश का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। भाजपा से अलग होने के बाद से ही नीतीश राष्ट्रीय राजनीति में स्थान बनाने के लिए प्रयासरत है। जेडीयू ने अपरोक्ष रूप से उन्हें विपक्ष का पीएम कैंडिडेट भी बताना शुरू कर दिया था, इसी तर्ज पर वे विपक्षी दलों से नजदीकियां भी बढ़ा रहे थे।
राजनीति के जानकारों का मानना है कि जातियों की गणना दरअसल ओबीसी वोट बैंक पाने की जुगत है। केंद्र सरकार को बिहार सरकार ने इस गणना का प्रस्ताव भेजा था, इसके पीछे की वोट बैंक की राजनीति को समझते हुए केंद्र सरकार ने ये प्रस्ताव खारिज कर दिया। तब बिहार सरकार ने अपने खर्चे पर जातीय गणना आरम्भ कराई है, जो स्पष्ट रूप से राजनीति को ही प्रभावित करेगी।
बिहार इस तरह से जातियों की गणना करने वाला पहला राज्य नही है। इससे पहले 2011 में राजस्थान में जातीय गणना हो चुकी है और 2014- 2015 में कर्नाटक में जातीय आधारित सर्वे हो चुका है। हालांकि दोनों राज्यों में आंकड़े सार्वजनिक नहीं किये गये।
जातीय गणना को लेकर सत्ता और विपक्ष के अपने अपने तर्क है। विपक्ष का कहना है कि हर दशक में होने वाली जनगणना के दौरान अनुसूचित जातियों और जन जातियों के आंकड़े तो सार्वजनिक किए जाते हैं मगर कभी भी ओबीसी और अन्य जातियों के आंकड़े सामने नहीं आते। इस कारण सभी जातियों के आर्थिक व सामाजिक विकास की तस्वीर सामने नहीं आती। विपक्ष का तर्क है कि सभी जाति- धर्म के लोगों की स्थिति अच्छी होगी तभी राज्य आगे बढ़ेगा। सभी वर्गों तक विकास पहुंचना जरुरी है। अब इस तर्क का विरोध करने का रिस्क कोई दल नहीं ले सकता, क्योंकि ओबीसी भी बड़ा वोट बैंक है। केंद्र सरकार संसद में पहले ही इस विषय पर पूछे गए सवाल के जवाब में कह चुकी है कि केंद्र सरकार की अलग से जातीय जनगणना करने की कोई योजना नहीं है। इस स्थिति में नीतीश ने ये गणना आरम्भ करा बड़ा राजनीति दांव खेला है और भाजपा को असमंजस में डाल दिया है। इस कदम से 10 राज्यों के होने चुनाव व अगले साल होने वाले आम चुनाव पर असर भी पड़ेगा। इस कारण देश की राजनीति में एक हलचल शुरू हो गई है, ये मुद्दा अगले आम चुनाव तक जिंदा रखने की कोशिश विपक्ष करेगा और भाजपा को इसका तोड़ निकालना ही पड़ेगा। नीतीश के इस राजनीतिक दांव पर राजनीति गर्मायेगी, ये तय है। सभी दलों को अपना रुख भी स्पष्ट करना पड़ेगा, उसका असर चुनावों पर इसी कारण पड़ेगा। मंडल कमीशन की रिपोर्ट के बाद अब जातीय गणना की बात, असर होगा और राजनीति गर्मायेगी। इसका असर आने वाले समय मे होगा, ये निश्चित है। फिलहाल तो नीतीश और बिहार ने एक बार राजनीति में इस निर्णय से बड़ा धमाका तो किया है। जिसका असर तो 10 राज्यों के चुनाव में पता चलेगा।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार