

पटना में 23 जून को होने वाली विपक्षी दलों की बैठक में अब सभी नेता कांग्रेस से एक सुर में कह रहे हैं- – थोड़ा तुम झुको, थोड़ा हम झुकें। जिन राज्यों में क्षेत्रीय दल मजबूत है वहां उनको अधिक सीट मिले, एक यही राग पटना की बैठक में गाया जायेगा। नीतीश विपक्षी दलों व कांग्रेस के मध्य सेतु का काम कर रहे हैं। कांग्रेस को भी पता है कि उस बैठक में मुख्य मुद्दा यही रहना है इसलिए वो कुछ भी बोलने से बच रही है।
नीतीश लगातार खड़गे व राहुल से बात कर उनसे एकता के लिए त्याग का कह रहे हैं ताकि अगले आम चुनाव में भाजपा को पूरी तरह से घेरा जा सके। कांग्रेस भी 23 की बैठक में जाने से पहले अपने नेताओं से विचार विमर्श करने में लगी है। हालांकि अंतिम निर्णय तो खड़गे व राहुल ही करेंगे। सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस को खुश करने के लिए नीतीश बिहार मंत्रिमंडल में उनकी संख्या भी बढ़ा रहे हैं।
जीतन राम मांझी को ढुलमुल मान नीतीश उनसे पहले ही किनारा कर चुके हैं। विपक्षी एकता के लिए होने वाली बैठक से पहले मांझी ने नीतीश पर दबाव बनाने के लिए अपने बेटे से मन्त्रिमंडल से इस्तीफा दिलवाया। मगर उनकी उम्मीद को खारिज करते हुए नीतीश ने तत्काल इस्तीफा स्वीकार कर लिया और अपने ही दल के महादलित को मंत्री भी बना दिया। मांझी ताकते रह गये। दरअसल कुछ दिन पहले ही मांझी ने गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी, नीतीश तब से उन पर वक्री थे। तभी तो कहा कि विपक्ष के साथ रहते तो मांझी भाजपा के लिए जासूसी करते।
कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे व राहुल 23 को बैठक में जा रहे तो बिहार कांग्रेस वहां भी जबरदस्त तैयारी कर रही है। राहुल वहां के नेताओं की बैठक भी लेंगे। इसी बीच सपा ने यूपी की 34 लोकसभा सीटों के लिए अपने पर्यवेक्षक तय कर अंदरखाने उम्मीदवार भी चुन लिए है। ये भी उस बैठक से पहले सोचकर किया गया है ताकि उन सीट पर कांग्रेस दावा न कर सके। कांग्रेस खास तौर पर यूपी, बंगाल पर नजरें रखे है। क्योंकि यहीं विपक्ष में सीटों के तालमेल को लेकर बात उलझेगी। अपने स्तर पर कांग्रेस भी राज्यों की स्थिति की समीक्षा कर रही है। इस पूरे घटनाक्रम से ये तो तय है कि कांग्रेस विपक्षी एकता की जरूरत है, उसे छोड़ नहीं सकते। ये बात अब तो ममता, अखिलेश भी स्वीकार रहे हैं। दूसरी तरफ यदि कांग्रेस आम चुनाव में भाजपा को हराना चाहती है तो उसके लिए उसे भी सभी विपक्षी दलों की जरूरत है। इन मजबूरियों के चलते लगता है, 23 की बैठक में कुछ सार्थक बात होगी। विपक्ष की एकता की तरफ कुछ कदम आगे बढ़ेंगे। भाजपा भी इस बैठक पर नजरें टिकाये है, क्योंकि उसके अनुसार ही उसे अपनी रणनीति बनानी होगी।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार
