• मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
    वरिष्ठ पत्रकार

कांग्रेस, आप, केसीआर से बात कर प्रारंभिक उलझन दूर करने के बाद बिहार के सीएम नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने अब मिशन ममता बनर्जी – अखिलेश यादव आरम्भ कर दिया है। विपक्ष की एकता तभी सम्भव है जब टीएमसी व सपा भी साथ आये।क्योंकि यूपी व बंगाल में लोकसभा की 100 से अधिक सीट है। यूपी में भाजपा ने ही लोकसभा की अधिकतर सीट जीती हुई है और बंगाल में भी कांग्रेस व वाम दलों को पीछे छोड़ भाजपा दूसरे नम्बर पर आ गई है। इस कारण विपक्ष इन दोनों दलों के दूर रहने पर एकता की कल्पना भी नहीं कर सकता।
नीतीश खुद केंद्र की राजनीति में अपने को सक्रिय करना चाहते हैं और बिहार की राजनीति तेजस्वी को सौंपना चाहते हैं, ये तो अब साफ साफ दिख रहा है। बिखरे विपक्ष के कारण भाजपा दो आम चुनाव जीत चुकी है और तीसरे चुनाव में भी वो मजबूत दिख रही है। इसलिए अकेले किसी दल के लिए ये संभव नहीं है कि वो भाजपा से मुकाबला कर सके। इस तथ्य को जानकर ही नीतीश विपक्ष को एक करने का कठिन काम करने में लगे हैं। दिल्ली और पंजाब के कारण आप व कांग्रेस आमने सामने है, उनको साथ करना इतना सरल भी नहीं। मगर अपने अभियान के पहले चरण में नीतीश ने खड़गे व राहुल को केजरीवाल के साथ रहने के लिए मनाया। एकता की बात पर मनाना तो केजरीवाल को भी पड़ा। आप दिल्ली शराब घोटाले के कारण संकट में है, दो दो सहयोगी जो पूर्व मंत्री है उसमें उलझे है। एकता के लिए इसीलिए केजरीवाल नरम पड़े हैं। कांग्रेस भी राहुल की सदस्यता जाने के बाद से असमंजस में है और एकता को ही विकल्प मान रही है। नीतीश ने दोनों दलों को इसी स्थिति के कारण एकता के फार्मूले पर लाये हैं।
कल अपने मिशन के तहत नीतीश व तेजस्वी ने ममता दीदी से मुलाकात की, टीएमसी भी इन दिनों घिरी हुई है। बंगाल में भाजपा तेजी से आगे बढ़ रही है और कांग्रेस – वाम दल निकट आ गये। जिन्होंने टीएमसी को उसके गढ़ में विधानसभा उपचुनाव हराया। ममता के नेता भी भ्र्ष्टाचार की चपेट में है। ममता को कल नीतीश ने एकता के लिए राजी किया। फिर नीतीश ने अखिलेश से बात कर अपना फार्मूला बताया। नीतीश के बयान को सच मानें तो दोनों ही एकता के लिए राजी है। पीएम दावेदार पर जब उनसे सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मैं दावेदार नहीं, विपक्ष एकजुट होगा तब नेता तय कर लेंगे।
कांग्रेस पहले से ही विपक्ष को एक करने के लिए एनसीपी व शिव सेना उद्धव को साथ लिए हुए है। इसलिए नीतीश को इन दलों को साथ लाने के लिए श्रम नहीं करना पड़ रहा है। केसीआर को साथ लाने के लिए अब नीतीश का प्रयास होगा।
मगर ये भी कड़वा सच है कि विपक्ष क्षेत्रीय दलों को साथ लिए बिना एक हो ही नहीं सकता, जो बहुत मुश्किल काम है। कांग्रेस का बंगाल में टीएमसी, तेलंगाना में केसीआर, आंध्रा में जगह रेड्डी, यूपी में सपा से मुकाबला है। क्योंकि ये दल कांग्रेस के वोट बैंक पर ही इन राज्यों में खड़े हैं। तभी तो इन दलों के नेता कांग्रेस के विरोध में रहते हैं। सीट बंटवारे पर भी विपक्ष मुश्किल से एक होगा, क्षेत्रीय दलों के पास जीतने के लिए अपने राज्य के अलावा कोई दूसरी जगह नहीं है, इस हालत में वो सीट दूसरे दल को देने के लिए राजी नहीं होगा। फिर नेतृत्त्व का सवाल भी छोटा नहीं है, उसके लिए एक राय होना टेढ़ी खीर है। इन समस्याओं के निदान के बिना विपक्ष की एकता सम्भव ही नहीं।
मगर नीतीश ने अपने मिशन से सभी विपक्षी दलों को एक बार सोचने के लिए मजबूर अवश्य कर दिया है। इसे एकता के लिए एक सकारात्मक बात मानी जा सकती है। विपक्ष का वजूद एक हुए बिना बनना सम्भव नहीं, इसी सोच पर आने वाला समय अगले चुनाव की तस्वीर को साफ करेगा।