दिल्ली के जंतर मंतर पर देश के पहलवानों को धरना देते हुए एक महिना हो गया, मगर केंद्र सरकार ने कोई रिएक्शन भी नहीं दिया। कल नये संसद भवन का एक तरफ उद्घाटन था तो दूसरी तरफ पहलवान प्रदर्शन के लिए जाते पुलिस से उलझ रहे थे। दिल्ली के बॉर्डर सील थे और हजारों किसान हर बॉर्डर पर एकत्रित थे। पुलिस उनको रोके हुए थी। सरकार माने या न माने, मगर लोकतंत्र के पुनीत कार्य के रंग में भंग तो पड़ा ही। जिन पहलवानों के लिए सरकार सहित देश के लोगों ने तिरंगे लहराये थे, आज उनके हाथ में तिरंगे थे मगर पुलिस उनको कदम बढ़ाने से रोक रही थी।
दुःख तो इस बात का है कि बड़े मीडिया ने न तो कल और न अब तक वाजिब तरीके से पहलवानों के आंदोलन को तव्वजो नहीं दी। अलबत्ता सोशल मीडिया जरूर पहलवानों के साथ कल हुए दुर्व्यहार को रिस्क लेकर लाइव कर रहा था। जबकि विपक्ष के तमाम दल इन पहलवानों के समर्थन में जंतर मंतर आ चुके हैं। देश की किसान यूनियन ने खुलकर समर्थन किया है। महिलाएं भी मैदान में है।
अब बात समस्या की करें, एक आपराधिक मामला पहले तो पुलिस ने दर्ज नहीं किया। क्योंकि सत्ताधारी दल के सांसद से जुड़ा है। पहलवान धरने पर बैठे और माननीय न्यायालय गये, तब वहां के आदेश से मुकदमा दर्ज हुआ। गम्भीर धाराएं थी, मगर उस गम्भीर तरीके से जांच नहीं हुई। न कुछ होता दिखा। उलटे जुबानी जंग जरूर रोज हो रही है।
एक गम्भीर आरोप है, मुकदमा भी दर्ज है, सांसद खुद को बेगुनाह भी कहते हैं और उसके लिए तर्क भी देते हैं। जब ये सब सार्वजनिक है तो फिर सरकार जांच कराने से परहेज क्यों कर रही है। जांच हो तो पहलवान भी संतुष्ट हो जायेंगे। निष्कर्ष आये और देश को गरिमा दिलाने वाले तो धरना हटाये। मगर सरकार की जिद समझ नहीं आ रही। समूचे खेल जगत पर भी इसका असर पड़ रहा है जिसके आने वाले समय में अच्छे परिणाम नहीं मिलेंगे। राजनीति और लोकतंत्र के लिए भी अच्छा यही रहेगा कि इस मसले पर कोई ठोस कदम सरकार उठाये। जिद किसी भी सरकार व लोकतंत्र के लिए बेहतर नहीं रहती।
अब तो हर खिलाड़ी, देश के जागरूक नागरिक, किसान, मजदूर, कई संगठन, विपक्ष के सभी दल एक ही बात कर रहे हैं—
हो गई पीर पर्वत सी अब पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार