

राजस्थान में हर दिन बदल रही राजनीतिक गणित के चलते कांग्रेस व भाजपा को अपनी रणनीति बदलने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। दोनों पार्टियों ने जब राज्य में चुनावी बिसात बिछाई तब अपने अपने इन नेताओं की भूमिका को लेकर कुछ भी स्पष्ट नहीं किया। मगर ज्यूँ ज्यूँ वक़्त निकला तो ये बात सामने आई कि कांग्रेस पायलट को और भाजपा राजे को किनारे करके चुनाव में उतरेगी तो उसे खमियाजा भुगतना पड़ेगा। अलग अलग क्षेत्रों से आये इस फीड बैक के बाद अब दोनों ही दल संशोधित रणनीति बनाने को मजबूर हो रहे हैं।
इसका प्रमाण कल बुधवार की दो घटनाओं से मिला। पहले बात कांग्रेस की। प्रभारी रंधावा जयपुर आये तो मीडिया के सामने कहा कि गहलोत व सचिन के बीच सुलह का फार्मूला तय हो गया है और इन दोनों को उसकी जानकारी है। रंधावा का ये बयान विस्फोटक था। उसके बाद पायलट गुट से मंत्री बने रमेश मीणा ने बयान देकर स्पष्ट किया कि सचिन कोई नई पार्टी नहीं बना रहे हैं। वे कांग्रेस में ही रहेंगे।
इसके बाद ये भी सूचना आई कि 9 जून को दिल्ली में राजस्थान को लेकर कांग्रेस की महत्त्वपूर्ण बैठक हो रही है। जिसमें अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के अलावा राहुल, रंधावा, डोटासरा, सीएम गहलोत व सचिन शामिल हो सकते हैं। इन तीन घटनाओं से ये अंदाजा लगाया जा रहा है कि कांग्रेस किसी भी सूरत में सचिन को खोना नहीं चाहती। 11 जून को सचिन कुछ नई घोषणा कर सकते हैं, इस तरह के कयास लगाये जा रहे हैं। इसी कारण दिल्ली में बैठक 9 तारीख को रखी गई है। ये घटनाक्रम साबित करता है कि सचिन को बड़ा फैक्टर मानते हुए कांग्रेस अब फिर से अपनी रणनीति में बदलाव का मानस बना रही है। स्थिति 9 तारीख को ही स्पष्ट होगी। वहीं दूसरी तरफ मंत्रिमंडल व संगठन में भी बदलाव के कयास राजनीतिक हलकों में लगाये जा रहे हैं। अगर ये कयास सच होता है तो फिर रणनीतिक रूप से बड़ा बदलाव होगा।
वहीं भाजपा में भी कल घटनाक्रम तेज हुआ जो कुछ अलग होने का संकेत करता है। दिल्ली में भाजपा मुख्यालय में कल एक जरुरी बैठक हुई जिसमें राज्य के प्रभारी अरुण सिंह, बी एल संतोष के अलावा वसुंधरा राजे शामिल हुई। इस बैठक से भाजपा की राजनीति में जबरदस्त हलचल है। भाजपा को भी अलग अलग क्षेत्रों से जो फीड बैक मिला, उसमें वसुंधरा राजे को लेकर पब्लिक में उत्साह था। जबकि अभी तक राजे कटी कटी थी। लाडनू में हुई प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में भी वे उपस्थित नहीं थी। पार्टी पहले ही राज्य में चुनाव पीएम फेस पर लड़ने की घोषणा कर चुकी है। अब स्थितियां बदली है। ऐसा कयास लगाया जा रहा है कि राजे को चुनाव अभियान समिति का जिम्मा सौंप मुख्य धारा में लाया जा सकता है। पार्टी निर्णय क्या करती है, ये तो एक- दो दिन में पता चलेगा मगर वसुंधरा को लेकर पार्टी को अपनी रणनीति में बदलाव करना पड़ेगा, ऐसा कयास राजनीतिक हलकों में लगाया जा रहा है।
कुल मिलाकर अब ये कहा जा सकता है कि दोनों ही पार्टियां अब डेमेज कंट्रोल में लग गई है और उसी के अनुरूप नई रणनीति पर काम कर रही है। सीएम गहलोत जहां सरकार रिपीट कराने को लेकर जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं वहीं भाजपा परंपरा के अनुसार सरकार के बदलाव में कमर कस रही है। राजस्थान में अब चुनावी रंग पूरी तरह चढ़ गया है।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार