

इस साल पूर्वोत्तर में होने वाले राज्य विधानसभाओं के चुनाव के माध्यम से भाजपा अगले आम चुनाव की बिसात बिछा रही है। ये दीर्घकालीन रणनीति उत्तर व दक्षिण भारत में होने वाले घाटे की भरपाई की तैयारी है। इस कारण ही वो पूर्वोत्तर राज्यों के चुनाव को गंभीरता से ले रही है। त्रिपुरा के लिए कल भाजपा ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा की। गुजरात की तर्ज पर 6 वर्तमान विधायकों के टिकट काट दिये हैं और महिला उम्मीदवारों की संख्या को बढ़ाया गया है।
इस साल पूर्वोत्तर के त्रिपुरा सहित 5 छोटे राज्यों में चुनाव है, जिसके लिए भाजपा ने रोड मैप तैयार किया है। वहीं कांग्रेस अभी आरंभिक तैयारी में ही है। उसका फोकस राज्य चुनाव है, आम चुनाव की तैयारी अब तक की गतिविधियों से नहीं लग रही। एक समय में इन पूर्वोत्तर राज्यों पर कांग्रेस का ही वर्चस्व था, मगर पिछले दो आम चुनावों से उसकी जमीन खिसक चुकी है। हालांकि त्रिपुरा में कांग्रेस ने भाजपा को रोकने के लिए वामपंथियों से समझौता किया है, उसका कितना लाभ मिलता है ये तो समय बतायेगा। वामपंथियों का गढ़ था त्रिपुरा मगर पिछले राज्य चुनाव में उसे भी करारी शिकस्त मिली थी। कांग्रेस तो पूरी तरह से दलबदल के कारण कमजोर हो गई थी, इसी मजबूरी में उसे नया गठबंधन करना पड़ा है।
गृहमंत्री अमित शाह पिछले 6 माह से पूर्वोत्तर पर फोकस किये हैं और असम के सीएम हेमंत विश्वा को साथ लिया हुआ है जो एक समय में कांग्रेस के कद्दावर नेता थे। इन राज्यों में क्षेत्रीय दल ही चुनावी हार जीत के समीकरण बनाते है। उनको साधने का काम शाह व असम सीएम कर रहे हैं। साथ ही आम चुनाव की बिसात भी बिछा रहे हैं। उत्तर व दक्षिण के राजनीतिक समीकरण से जिस घाटे की संभावना बन रही है, उसकी पूर्ति की ये कोशिश है।
भाजपा को यूपी विधानसभा चुनाव में सपा व लोकदल के गठबंधन से कड़ी टक्कर मिली थी। बहुमत तो भाजपा को मिला मगर वोटों का अंतर कम था। ये गठबंधन बरकरार है, जिसका नुकसान भाजपा को हो सकता है। उसकी भरपाई जरूरी है। इसी तरह महाराष्ट्र में भी राज जाने के बाद भी कांग्रेस, एनसीपी व शिव सेना उद्धव का महाअगाडी गठबंधन बरकरार है और वो आम चुनाव में भाजपा के लिए परेशानी पैदा करेगा, उसकी क्षतिपूर्ति भी पूर्वोत्तर से करने की कोशिश है।
उत्तर के छोटे राज्यों हरियाणा, पंजाब, छत्तीसगढ़ में भी भाजपा को पिछले आम चुनाव की तरह सफलता मिलना थोड़ा कठिन लगता है, जिसकी भरपाई भी जरूरी है। दक्षिण के राज्यों में भाजपा ने जरूर कुछ मेहनत की है मगर वहां उसे मजबूत साथी आम चुनाव के लिए अभी तक नहीं मिले है। जिससे लाभ की संभावना कम है। राजस्थान, मध्यप्रदेश व कर्नाटक में इसी कारण भाजपा रिस्क नहीं ले रही। इन राज्यों के चुनाव को लेकर वो फूंक फूंककर कदम रख रही है। इन राज्यों से उसे पिछले आम चुनाव में बम्फर सीट मिली थी, इसलिए यहां के चुनाव को भाजपा गंभीरता से ले रही है। क्योंकि उसकी नजर राज्य चुनाव से ज्यादा अगले आम चुनाव पर है। भाजपा ने इसीलिए अपने मंत्रियों को चार चार लोक सभा क्षेत्र का प्रभार दिया है। ये वे क्षेत्र हैं जिनमे भाजपा को पिछले आम चुनाव में या तो हार मिली थी या वे इस बार कमजोर है। सभी मंत्रियों को बारी बारी से इन क्षेत्रों में भेजा जा रहा है ताकि विकास के योजनाएं तैयार की जा सके व केंद्र सरकार की उपलब्धियां जनता तक पहुंचाई जा सके। भाजपा अगले आम चुनाव के लिए माइक्रो लेवल पर हर लोक सभा क्षेत्र पर काम कर रही है। वहीं विपक्ष अब भी आपसी टकराहट में है और उसकी एकता संदिग्ध दिखने लगी है। कुल मिलाकर भाजपा अगले आम चुनाव के लिए अभी से बिसात बिछा रही है जिसे विपक्ष के बिखराव का पूरा लाभ भी मिल रहा है।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार