पूर्वोत्तर का महत्त्वपूर्ण राज्य मणिपुर तीन महीनें से जल रहा है। आम आदमी तो क्या ओहदों पर बैठे लोग भी सुरक्षित नहीं। केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री का भी घर फूंक दिया गया। इस तरह के न जाने कितने घर, वाहन, सरकारी दफ्तर, सुविधाओं के भवन आग के हवाले कर दिए गए। पैरा मिल्ट्री फोर्स को भी उतारा हुआ है मगर न हिंसा रुक रही है, न आगजनी। हद तो तब हो गई जब महिलाओं के साथ हुए कुकृत्य का विभत्स वीडियो सोशल मीडिया पर जारी हो गया। पूरी दुनिया में उसकी चर्चा है और हर आदमी, महिला की आंखें लाल है। इस तरह की हिंसा, आगजनी, महिलाओं पर अत्याचार एक लोकतंत्रीय देश में होना शर्मनाक है। हरेक समझदार का सिर शर्म से झुका हुआ है।
दुनिया में देश की बदनामी हो रही है और भारत के लोकतंत्र पर सवाल खड़े हो रहे हैं। ये केवल सरकार के नहीं बल्कि हरेक भारतीय के लिए चिंता की बात है। संसद भी ठप है। कोई काम नहीं हो रहा। सरकार व विपक्ष में बहस को लेकर तनी हुई है। राजनीति का ये अहंकार नुकसान तो देश का कर रहा है और मणिपुर की समस्या का भी कोई हल नहीं निकल रहा। संसद में चर्चा हो या न हो, इसको बड़ा मसला बना दिया गया है। मूल समस्या तो इसमें काफी पीछे छूट सी गई है। मणिपुर पर राजनीति करना किसी भी सूरत में सही नहीं माना जा सकता, चाहे पक्ष हो या विपक्ष। मणिपुर शांत हो जाये, स्थिति सुधर जाये, फिर दोनों पक्ष करना चाहे जितनी राजनीति करे। देश को एतराज नहीं होगा। वोट उसके पास है तो वो सही कौन, गलत कौन का फैसला भी कर देगा।
मणिपुर पर हो रही राजनीति के दुष्परिणाम भी अब तो दिखने लग गये हैं। सोशल मीडिया उससे भी भरा पड़ा है। मणिपुर के काउंटर में बंगाल, राजस्थान व छतीसगढ़ के महिला अत्याचार के मामले उठाये जा रहे हैं। सीधी सी बात है कि वहां विपक्ष की सरकारें हैं इसलिए ये हो रहा है। वहां की घटनाओं के भी कोई समझदार भारतीय पक्ष में नहीं है, मगर मणिपुर और इन राज्यों की घटनाओं को एक जैसा ट्रीट करना तो न्याय नहीं, सही नहीं, उचित भी नहीं। मगर बेशर्मी से तुलना कर राजनीति की जा रही है, उससे भी जनता में आक्रोश है। हर मुद्दा वोट पाने का जरिया नहीं होता, ये पक्ष व विपक्ष, दोनों को सोचना चाहिए। लोकतंत्र व उसके आदर्श वोट से बड़े हैं, कम से कम ये तो सोचना ही चाहिए।
देश मणिपुर को बड़ी समस्या मानता है और चिंतित है। देश हित में इस समस्या को हल करने की कोशिश सरकार को करनी चाहिए। जब गृहमंत्री, अन्य नेता भी मणिपुर जा आये और समस्या हल नहीं हुई तो आगे की बात सोचनी चाहिए। अगर जरूरत है तो सरकार को विपक्ष से बात कर सहयोग लेना चाहिए। मणिपुर भारत ही है और वहां के लोग परेशानी में है, जिसका निदान प्रथम लक्ष्य होना चाहिए। सरकार को यदि विपक्ष व जनता कटघरे में खड़ा करती है तो गलत तो नहीं, क्योंकि समस्या हल कर वहां के लोगों को शांति देना, महिला की रक्षा करना सरकार का ही दायित्त्व है। दूसरे राज्यों की घटनाओं का उदाहरण देने से मणिपुर की महिलाओं को न्याय नहीं मिलेगा, ये शाश्वत सत्य है। मणिपुर सरकार की नाकामी पर भी कोई कार्यवाही नहीं करना, केंद्र सरकार पर सवाल खड़ा करने वाली बात है। हर भारतीय महिला अत्याचार के उस वीडियो को देखने के बाद दुखी है, भावुक है, चिंतित है, गुस्से में है, नाराज है और मणिपुर समस्या का हल चाहता है। उसकी सजल आंखे दुष्यंत के शेर की याद दिलाती है….
हो गई है पीर पर्वत सी, अब पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से, अब कोई गंगा निकलनी चाहिये।

  • मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
    वरिष्ठ पत्रकार