एक समय में हरियाणा को दलबदल के लिए सिरमौर माना जाता था मगर अब उसकी तीन साल से महाराष्ट्र ने ले ली है। इस अवधि में वहां की दो क्षेत्रीय पार्टियों का विखंडन हुआ है। पहले शिव सेना टूटी और उससे अलग हुए शिंदे को भाजपा ने समर्थन देकर सीएम बनाया। सीएम उद्धव ठाकरे को कुर्सी गंवानी पड़ी। इस बार विपक्ष के नेता अजीत पंवार ने अपने ही चाचा व महाराष्ट्र की राजनीति के चाणक्य शरद पंवार को गुगली से बोल्ड कर डिप्टी सीएम बन गये। इन दोनों पार्टियों के विखंडन में परोक्ष व अपरोक्ष रूप से भाजपा का ही हाथ है, इसे स्वीकारना चाहिए।
इससे पहले भी एक बार अजीत पंवार चाचा से अलग होकर डिप्टी सीएम बने थे, मगर चाचा उनको वापस खींच लाये। मगर उन्होंने उनको पार्टी का अध्यक्ष न बनाकर अपनी बेटी सुप्रिया सुले को अध्यक्ष बना दिया, साथ मे अपने निकटस्थ प्रफ्फुल पटेल को भी बिठाया। मगर पटेल भी इस बार अजीत के साथ चले गये, जो आश्चर्यजनक है। 29 विधायकों के साथ अजीत ने पाला बदला है। ये महाराष्ट्र की राजनीति का बड़ा उलटफेर है।
महाराष्ट्र की राजनीति में अब आने वाले समय में फिर बड़े बदलाव की संभावना मानी जा रही है। क्योंकि शिंदे से भाजपा व भाजपा से शिंदे कोई ज्यादा खुश नहीं है। अब अजीत के आने के बाद तो भाजपा को शिंदे की ज्यादा जरूरत भी नहीं रही। माना जा रहा है कि इस नई एंट्री से शिंदे गुट के विधायकों की मंत्री बनने की संभावना न के बराबर हो गई, वे इस मसले पर नाराज तो थे ही अब और नाराज होंगे। उन पर उद्धव ठाकरे व संजय राउत डोरे भी डालने लग गये हैं। इधर शरद पंवार भी कल से ही मैदान में उतर गये, उनको बड़ा जनसमर्थन सतारा में मिला। शपथ ग्रहण में जो सांसद अजीत के साथ दिखे थे, वे कल वापस शरद पंवार के पास लौट आये। कुछ विधायकों को भी वापस लाने के लिए सम्पर्क किया जा रहा है।
वहीं इस बदलाव पर महाराष्ट्र की जनता का रुख भी खास मायने रखता है। एक निजी चैनल के सर्वे के मुताबिक अजीत व शिंदे के पार्टियां तोड़ने से जनता खुश नहीं है। प्रतिकूल असर हुआ है। एनसीपी के विधायकों की जीत में शरद पंवार की मुख्य भूमिका रहती है, उनके बिना दल छोड़कर गये विधायक फिर कैसे जीतेंगे ये यक्ष प्रश्न है। राजनीति के जानकारों का एक वर्ग विखंडन के पीछे शरद पंवार की भूमिका पर भी सवाल उठाता है। उनका कहना है कि इतनी बड़ी घटना का पता राजनीति के इस चाणक्य को कैसे नहीं लगा ? इस प्रश्न का उत्तर तो आने वाला समय ही देगा।
मगर एनसीपी के विखंडन का असर विपक्ष की एकता पर जरूर पड़ेगा। फिलहाल तो 13- 14 जुलाई को बेंगलुरु में होने वाली विपक्षी दलों की बैठक स्थगित हो गई है। अब फिर से नई रणनीति विपक्षी दलों को बनानी होगी। इस विखंडन से भाजपा को तो दिखने वाला फायदा हुआ है मगर बड़ा लाभ कांग्रेस को हुआ है। विपक्षी दलों के महागठबंधन में उसकी अहमियत बढ़ गई है, यही राहुल चाहते थे। दूसरे दो साल से महाराष्ट्र में कांग्रेस को तोड़ने के प्रयास हो रहे थे, वो नहीं टूटी। कांग्रेस अब वहां मजबूत दिखने लगी है। मगर महाराष्ट्र के राजनीतिक घटनाक्रम का असर दूर तक होगा, ये तय है।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार