गुजरात के राजकोट जिले से 20 किमी दूर है गांव राजसंध्याला, लोकतंत्र और चुनाव की दृष्टि से अनूठा गांव। यदि देश के हर जिले के गांव चुनाव के मामले में इस तरह स्वावलंबी हो जाये तो शुद्ध लोकतंत्र की अनूठी मिसाल दुनिया मे बनेगी। चुनाव पर होने वाला अनाप शनाप खर्च भी रुक जायेगा। हेट स्पीच की बीमारी से भी देश को निजात मिल जायेगी, जिसको लेकर माननीय सर्वोच्च न्यायालय भी चिंतित है। एक टीवी चैनल की रिपोर्ट ने पूरे देश का ध्यान इस गांव की तरफ खिंचा है।
राजसंध्याला गांव का निर्णय है कि यहां कोई भी राजनेता चुनाव प्रचार के लिए कभी प्रवेश नहीं कर सकता। प्रचार, सभा, जुलूस, नारे, हो हल्ला, आदि को गांव के लोग राजनीतिक प्रदूषण मानते हैं और इसीलिए चुनाव के समय नेताओं के लिए इस गांव में प्रवेश प्रतिबंधित है। सच में, ये तो चकित करने वाला निर्णय है। आज तो रोटी, पानी तक राजनीति पहुंची हुई है मगर राजसंध्याला राजनीति के प्रदूषण से खुद को बचाये हुए है। राजकोट का ये गांव आदर्श गांव है और विकसित भी पूरा है। छोटे गांव में अच्छी सड़कें है। गंदे पानी की निकासी सही है। शुद्ध पेयजल की व्यवस्था है। ग्राम पंचायत ने आरओ वाटर का प्लांट लगाया हुआ है जिससे हर ग्रामवासी घर के लिए पीने का पानी भरकर ले जा सकता है। पढ़ा लिखा मतदाता हो या अनपढ़, अपने गांव को राजनीतिक प्रदूषण से बचाने को पूरी तरह से कटिबद्ध है। गुजरात जैसे पूर्ण राजनीतिक प्रदेश में ऐसा गांव होना, चकित करने वाली बात जरूर है। सबको इससे सीख भी मिलती है। ग्रामवासी बताते हैं कि यहां लोग अपनी मर्जी से जिसे चाहे वोट करते हैं, प्रचार से प्रभावित नहीं होते। जाहिर है, वोटरों को प्रभावित करने के लिए पैसा, दारू, ताकत आदि के आरोप हर जगह हर चुनाव में लगते हैं। मगर ये गांव इस तरह के प्रदूषण से पूरी तरह मुक्त है। राजनीतिक दलों के नेताओं के प्रवेश पर प्रतिबंध की सूचना गांव में घुसते ही लगे ग्राम पंचायत के बोर्ड पर लिखी हुई है।
केवल यही नहीं कि राजनीतिक प्रचार पर रोक है अपितु मतदान करने की भी बंदिश लगाई गई है। हरेक को वोट डालना जरूरी है। यदि कोई गांव में है और मतदान नहीं करता है तो उसे 51 रुपये का जुर्माना भरना पड़ता है। इस नियम के कारण यहां हमेशा 95 प्रतिशत से अधिक मतदान होता है। गांव के सरपंच बताते हैं कि ये नियम 1986 से लागू है और हर ग्रामवासी इन नियमों का पालन करता है। खास बात ये है कि वोट किसे दें, इस पर कोई सामूहिक निर्णय नहीं होता। हरेक स्वतंत्र है अपनी पसंद के राजनीतिक दल को वोट करने के लिए, बस प्रचार की किसी को छूट नहीं है। इसके अलावा भी शिक्षा, कुरीतियों आदि की रोक के कई नियम इस गांव में लागू है।
अभी गुजरात में चुनावी आंधी है। हर तरफ नेता और कार्यकर्ता दौड़भाग करते दिखते हैं। वोटर को लुभाने की कोशिश जाति, धर्म, धन, वादों से करते दिख रहे हैं। मगर ये गांव इन सबसे कोसों दूर है। यहां का मतदाता समाचारों से सब जान रहा है और अपना वोट देने का मन बना रहा है। मगर किसी भी नेता या कार्यकर्ता की इस गांव में प्रवेश की हिम्मत नहीं है।
गांव की भावना से पता चलता है कि सच्चा लोकतंत्र चाहते हैं ग्रामवासी। वोट को जरा भी प्रभावित नहीं करने देते। वहीं वोट करना भी अनिवार्य मानते हैं। यही तो लोकतंत्र की मूल भावना है। यदि हर गांव राजसंध्याला जैसा हो जाये तो एक तरफ जहां राजनीतिक प्रदूषण, बुराईयां रुकेगी वहीं दूसरी तरफ हर व्यक्ति मताधिकार का महत्त्व समझ अपने अधिकार का उपयोग करेगा। गुजरात चुनाव प्रचार कई बार जागरूक लोगों को विचलित करता है। शोर से तो अटा है पूरा गुजरात इस समय। उसके मध्य राजसंध्याला एक ठंडी बयार है और लोकतंत्र का मंदिर सा लग रहा है। हर गांव इस तरह का मंदिर बने तो राजनीति, सत्ता की अनेक बुराईयों का तो स्वतः अंत हो जायेगा।

  • मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
    वरिष्ठ पत्रकार