इस साल जिन 10 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं उसमें राजस्थान भी शामिल है। राजस्थान का राजनीतिक दृष्टि से खास महत्त्व है, क्योंकि हिमाचल चुनाव से पहले कांग्रेस का केवल 2 राज्यों में शासन था जिसमें ये प्रदेश भी शामिल था। जहां बीच कार्यकाल में सरकार गिराने का भी प्रयास हुआ मगर सफलता नहीं मिली। सीएम अशोक गहलोत सरकार बचाने में सफल रहे और बदनामी का ठीकरा भाजपा पर फूटा।
हालांकि सरकार में असंतोष की वजह कांग्रेस का ही एक धड़ा था, जिसके नेता पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट थे। मगर उथल पुथल के बाद भी सरकार नहीं गिरी और न ही कांग्रेस का कोई विधायक टूटा। उल्टे कांग्रेस ने इस उथल पुथल का उपयोग भाजपा पर आरोप जड़ने में किया। हालांकि कांग्रेस में उस समय जो धड़ेबंदी का बीज पड़ा, वो अब तो पौधा बन गया है। मगर जैसे तैसे सार्वजनिक रूप से आलाकमान ने घडेबन्दी को कुछ थाम लिया। मगर राख के नीचे अब भी चिंगारियां है, उनका अंतिम हश्र होना बाकी है।
कांग्रेस में जबरदस्त जुबानी जंग हुई। गाहे बगाहे वो जंग अब भी चल ही रही है। जिसका असर प्रशासन, विकास और कानून व्यवस्था पर भी पड़ा है। इतना होने के बाद भी मुख्य विपक्षी दल भाजपा कांग्रेस की फूट का कोई राजनीतिक लाभ नहीं उठा पाई। जिसकी एकमात्र वजह खुद राजस्थान भाजपा ही है, जो कई धड़ों में बंटी हुई है। एकला चालो रे की तर्ज पर ही भाजपा के नेता चल रहे हैं। जिसके कारण ही राज्य सरकार के खिलाफ कोई ठोस और बड़ा आंदोलन चार साल में भी खड़ा नहीं हो सका। कई गम्भीर मसलों पर तो विपक्ष पूरी तरह से नदारद ही रहा। आलाकमान से बात के बाद राजस्थान में भाजपा ने जन आक्रोश यात्रा हर विधानसभा क्षेत्र में निकाली, किसका कोई उल्लेखनीय असर ही नहीं हुआ। हालांकि इन यात्राओं की शुरुआत राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा ने किया और रथ यूपी से आये, मगर यात्रा सफल नहीं हो सकी और न ही उसका आम जन में कोई प्रभाव पड़ा। जनआक्रोश यात्रा में न जन दिखा, न आक्रोश। पूरे पदाधिकारी भी यात्रा में नहीं दिखे। आलाकमान ने भी इस स्थिति को गंभीरता से लिया और अब एक बड़ी बैठक दिल्ली में बुलाई है। 16 व 17 जनवरी को दिल्ली में होने वाली भाजपा की राष्ट्रीय समिति की बैठक में राजस्थान पर फोकस रहेगा। उप चुनावों में हार पर बात होगी और गुटबाजी पर भी गम्भीर निर्णय लिया जायेगा। इस बैठक में प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह, सह प्रभारी विजया राहटकर, प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, वसुंधरा राजे, अलका गुर्जर, गजेंद्र सिंह शेखावत, अर्जुन मेघवाल, ओम माथुर भी भाग लेंगे। इसमें गंभीरता से पार्टी संगठन की स्थिति पर मंथन होगा और ठोस निर्णय लिए जायेंगे।
राजस्थान भाजपा में सबसे बड़ी टकराहट सीएम फेस को लेकर है। जनता के सामने वसुंधरा राजे, गजेंद्र सिंह, सतीश पूनिया, राजेन्द्र राठौड़, ओम माथुर आदि कई चेहरे हैं और इन नामों को लेकर चर्चाओं का बाजार भी गर्म है। इन सबको देखते हुए ही राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा को स्पष्ट करना पड़ा कि चुनाव पीएम के चेहरे पर ही लड़ा जायेगा। मगर रुकता कौन, कहा तो किसी नेता ने कुछ भी नहीं मगर अलग अलग आयोजन से अपना शक्ति प्रदर्शन कर दावा अब भी जता रहे हैं। इसी वजह से भाजपा के लिए राजस्थान परेशानी बना हुआ है। राजनीति के जानकार मानते है कि आलाकमान इसी महीने इस स्थिति को संभालने के लिए बड़े फेरबदल करेगी। केंद्रीय मंत्रिमंडल और पार्टी संगठन में मण्डल से लेकर प्रदेश तक बदलाव की संभावना है। बिना बदलाव कांग्रेस से मुकाबला इस बार आसान नहीं है। भाजपा जितनी जल्दी निर्णय करेगी उतना ही चुनाव में फायदे में रहेगी। सूत्र बताते हैं कि आलाकमान ने बदलाव का ब्ल्यूप्रिन्ट तैयार कर लिया है, बस लागू करने का समय तय करना है।
वहीं कांग्रेस में भी बाहरी शांति के भीतर एक तूफान छिपा हुआ है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के समय गहलोत व पायलट में सुलह कराई गई। सुलह का फार्मूला अब भी सार्वजनिक नहीं हुआ है, मगर तय हो गया है। जिसमें भी कुछ बदलाव के आसार है, ये बदलाव वो नहीं जो लोग मान रहे हैं। कोई गुप्त फार्मूला है, जो समय पर ही सामने आयेगा। बहरहाल राजस्थान को लेकर भाजपा व कांग्रेस, दोनों ही राहत की स्थिति में नहीं है। दो पहले ईलाज कर लेगा, वो आगे रहेगा।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार