इस साल जिन 10 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं उसमें राजस्थान भी शामिल है। इस राज्य में काफी वर्षों से पांच साल बाद सरकार बदलते रहने की परंपरा है, एक बार भाजपा व एक बार कांग्रेस की सरकार बनती आ रही है। भाजपा को जहां इस परंपरा पर भरोसा है, वहीं कांग्रेस परंपरा को बदलने की जिद में है। हालांकि दोनों ही दल राजस्थान में पूरी तरह से अंतर्कलह से घिरे हुए हैं।
राज्य की अंतर्कलह व हिमाचल प्रदेश में हुई हार से बैकफुट पर आई भाजपा ने संगठन में बदलाव का फिलहाल निर्णय टाल दिया है। चुनावी वर्ष होने के कारण असंतोष की एक और वजह पैदा होने से भाजपा बच रही है। प्रदेश पदाधिकारियों में कुछ बदलाव होगा और कुछ जिलों में नेतृत्त्व बदला जायेगा। वरिष्ठ नेताओं की नाराजगी दूर करने के लिए भी आलाकमान ने कार्य योजना बनाई है। असंतोष व आपसी होड़ को थामने के लिए भाजपा पहले ही घोषणा कर चुकी है कि राज्य में चुनाव किसी और के चेहरे पर नहीं, पीएम के चेहरे पर ही चुनाव लड़ेगी।
पिछले डेढ़ साल से कांग्रेस में चल रही खींचतान को भी दूर करने में कांग्रेस आलाकमान नाकाम रहा है। सितंबर 2022 में आलाकमान के पर्यवेक्षक विधायकों की बैठक के लिए जयपुर आये मगर वे इंतजार करते रहे और बैठक नहीं हुई। इससे उलट बड़ी संख्या में विधायकों ने समानांतर बैठक कर इस्तीफे विधानसभा अध्यक्ष को सौंप दिए। इन विधायकों का कहना था कि यदि अशोक गहलोत को सीएम पद से हटाया गया तो इस्तीफे वापस नहीं लेंगे।
तब हाई लेवल पोलिटिकल ड्रामा कांग्रेस में राजस्थान से दिल्ली तक हुआ। गहलोत ने जैसे तैसे स्थिति को संभाला। दो मंत्रियों को अनुशासनहीनता का नोटिस मिला। आलाकमान ने दो दिन में निर्णय की घोषणा की। अब तो 4 महीने बीत गये, निर्णय नहीं हुआ। इस बीच कांग्रेस ने प्रदेश प्रभारी भी बदल दिया। उस समय के पर्यवेक्षक खड़गे अब राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गये, मगर निर्णय नहीं हुआ। राजस्थान में गहलोत की जरूरत व उनके साथ का महत्त्व पार्टी को पता है। वहीं पार्टी पायलट को भी खोना नहीं चाहती। राहुल की भारत जोड़ो यात्रा राजस्थान में आई तो एक तरह से दोनों में सुलह कराई गई। ये चेतावनी भी दी गई कि बयानबाजी की गई तो तुरंत कार्यवाही की जायेगी। आलाकमान सख्त दिखा, उसका असर भी हुआ। शांति हुई।
मगर यात्रा जाने के कुछ दिन बाद फिर बयानों से टकराहट शुरू हो गई। पेपर लीक, कोरोना आदि तक के बयान चल रहे हैं, जिसका असर सकारात्मक तो नहीं पड़ रहा। यदि यही स्थिति रही तो चुनाव में कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ेगा। दोनों गुट यदि परंपरा तोड़ सरकार रिपीट करना चाहते हैं तो एकमात्र विकल्प दोनों गुटों में सुलह है। उसको लेकर संशय है। आलाकमान इस मसले पर कमजोर दिख रहा है।
माना जा रहा है कि भारत जोड़ो यात्रा की समाप्ति के बाद कुछ हल निकलेगा, मगर क्या, ये किसी को नहीं सूझ रहा। राजस्थान कांग्रेस व भाजपा, दोनों के लिए चुनोती है। आने वाले समय मे दोनों पार्टियां इसी राज्य पर फोकस कर अपने भीतरी असंतोष का हल निकालेगी, नहीं तो दोनों के सामने कठिनाई आयेगी। इस सूरत में लगता है कि राजस्थान आने वाले समय में बड़े राजनीतिक बदलाव देखेगा।

  • मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘