

इस साल राजस्थान में विधानसभा के चुनाव है, जिसके लिए भाजपा ने तो तैयारी आरम्भ कर दी मगर कांग्रेस अभी तक अपनों में ही उलझी है। आपस की लड़ाई कम होने के बजाय अब तो लड़ाई बयानों में ज्यादा तेज हो गई है। कांग्रेस सरकार इसी कारण अपने जन कल्याण के कार्यों का भी पूरा लाभ नहीं उठा पा रही। कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी बाजवा ने प्रभारी बनते ही सख्त तेवर दिखाये थे, मगर वे भी आपसी जुबानी जंग पर लगाम नहीं लगा पाये हैं। जिसका नुकसान राज्य के चुनाव में हो सकता है।
राजस्थान में पांच साल बाद सरकार बदलने की परिपाटी चल रही है। इस बार कांग्रेस लगातार इस परंपरा को तोड़ने की बात तो कर रही है मगर उस दिशा में गम्भीर होती नहीं दिख रही। आपस की टकराहट के चलते सफल होना संभव नहीं। ये बात पार्टी के सभी नेता कहते हैं, मगर टकराहट को कम करने के प्रति गंभीर प्रयास होते नहीं दिखते। ना आलाकमान कोई ठोस निर्णय ले पा रहा है, जिसके कारण ही आपसी टकराहट दिनों दिन बढ़ रही है। खाई चौड़ी हो रही है, जिसका नुकसान पार्टी को उठाना पड़ेगा।
भाजपा ने पिछले दिनों राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक कर इस चुनावी राज्य के लिए कई ठोस निर्णय कर लिए और कार्यक्रम का निर्धारण भी कर लिया। वहीं कांग्रेस आलाकमान अभी तो पूरी तरह से राहुल गांधी की भारत जोड़ों यात्रा में लगा है। जिन 10 राज्यों में इस साल चुनाव होना है उन पर गंभीर विचार और निर्णय भी नहीं कर पाया है। तीन राज्यों के चुनाव की तारीख भी चुनाव आयोग ने तय कर दी है, मगर कांग्रेस की रफ्तार सुस्त है।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा आज जयपुर में है और प्रदेश पदाधिकारियों की बैठक लेकर चुनाव के लिए कार्यक्रम तय करेंगे। एक तरह से भाजपा का आज से चुनावी शंखनाद हो जायेगा। बैठक से पहले भाजपा ने राज्य के संगठन में बदलाव न करने का संकेत देकर अस्थिरता को खत्म कर दिया। साथ ही जिन जिलों में अध्यक्ष बदलने थे, वो भी बदल दिये।
भाजपा नेतृत्त्व ने राज्य के सभी नेताओं को स्पष्ट कह दिया कि किसी को भी सीएम फेस नहीं बनाया जायेगा। चुनाव पीएम नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा जायेगा। इस चेतावनी के बाद भाजपा के बड़े नेताओं ने चुप्पी साध व्यक्तिगत स्तर पर किये जाने वाले अपने सभी आयोजनों का पैकअप कर दिया है। भले ही मन मे मलाल हो, मगर सार्वजनिक रूप से वे अनुशासन को ही मान रहे हैं। इसका फायदा भाजपा को चुनाव में स्वाभाविक रूप से मिलेगा।
इससे विपरीत कांग्रेस अपनों में ही बुरी तरह से उलझी है। ब्लॉक अध्यक्ष तो पार्टी ने घोषित कर दिए मगर जिला अध्यक्ष बनाने का निर्णय नहीं ले पाई है। बिना संगठन चुनाव की वैतरणी पार नहीं की जा सकती। क्योंकि सरकार की लाभकारी योजनाओं तो जनता तक पहुंचा पार्टी को लाभ संगठन ही दिलाता है।
वहीं अशोक गहलोत व सचिन पायलट गुट की आपसी जंग अलग से पार्टी का नुकसान कर रही है। खुलकर दोनों गुट आमने सामने है, इनके बीच तालमेल बिठाने का काम अब आलाकमान के लिए टेढ़ी खीर बन गया है। ये भी चुनाव में कांग्रेस को नुकसान ही देगा। यदि अब भी कांग्रेस ने खुद को नहीं संभाला तो परंपरा तोड़ने की बात केवल बात बनकर रह जायेगी। सरकार ने जो बड़े लाभकारी काम किये हैं, उसका भी लाभ वोट के रूप में नहीं ले पायेगी। भाजपा के आज से हो रहे चुनावी शंखनाद से जागकर कांग्रेस सक्रिय हो तो भी बराबरी पर आ जायेगी, मगर उसके लिए आपसी टकराहट को दूर कर एकजुटता जरुरी है।


– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार