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राजस्थान में कांग्रेस सरकार के मंत्रियों की आपसी जुबानी जंग अब इतनी तेज हो गई है कि सरकार में दो खेमे साफ साफ दिखने लगे हैं। कांग्रेस विधायक दल की बुलाई गई आलाकमान की बैठक के समय विधायक दल की हुई धड़ेबंदी एक माह की खामोशी के बाद उभर कर सामने आई है। आलाकमान ने राजस्थान कांग्रेस के विवाद को शीघ्र हल करने की बात कही थी, मगर ऐसा हो नहीं सका तो अब जुबानी जंग शुरू हो गई है। लगता है, खेमों का धैर्य अब टूट गया है। कांग्रेस के नये अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए राजस्थान संकट बड़ी समस्या बन गया है।
प्रदेश की सरकार में सीएम अशोक गहलोत व सचिन पायलट गुट की टकराहट तो लंबे समय से चल रही है। उसका हल निकालने के लिए तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने खड़गे व माकन को पर्यवेक्षक बना जयपुर भेजा। मगर उनकी बुलाई बैठक में कम विधायक पहुंचे और वे समानांतर मंत्री शांति धारीवाल के निवास पर एकत्रित हुए। बड़ी संख्या में जुटे विधायकों ने सीएम गहलोत को न बदलने की बात कहते हुए अपने इस्तीफे विधानसभा अध्यक्ष सी पी जोशी को थमा दिए। इन विधायकों का कहना था कि यदि गहलोत को बदला गया तो इस्तीफे स्वीकार लें। वे इस्तीफे अब भी जोशी के पास हैं। पर आलाकमान के पर्यवेक्षको को बैरंग दिल्ली लौटना पड़ा। विधायकों की बैठक नहीं हुई। पर्यवेक्षकों में वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे भी शामिल थे।
उस समय बयानों का दौर चला और प्रभारी महासचिव माकन पर भी आरोप लगे। आलाकमान ने मंत्री धारीवाल, महेश जोशी व आरटीडीसी चेयरमेन धर्मेंद्र राठौड़ को अनुशासनहीनता पर नोटिस दिए। जिनका जवाब भी इन्होंने दिया। मगर कोई निर्णय नहीं हो सका है। सचिन उस समय चुप रहे। गहलोत ने सोनिया गांधी से मुलाकात कर क्षमा मांगी विधायकों के व्यवहार पर।
इससे विपरीत कांग्रेस की विधायक दिव्या मदेरणा व मंत्री राजेन्द्र सिंह गुडा गहलोत गुट के मंत्रियों व नेताओं पर हमलावर रहे। एक महीने बाद सचिन गुट के एक विधायक, दिव्या मदेरणा व गुडा ने अनुशासनहीनता पर कार्यवाही की मांग की। विधायक दल की बैठक दिल्ली में बुलाने की बात भी कही। क्योंकि एक महीने में पर्दे के पीछे काफी राजनीतिक समीकरण बदले। कुछ विधायकों के सुर भी बदले।
पूरे मसले में बड़ा विस्फोट तब हुआ जब पीएम मोदी राजस्थान के दौरे पर आये। गहलोत ने उनकी तारीफ की तो मोदी ने भी उनको वरिष्ठ नेता बताते हुए प्रशंशा की। बस, राजनीतिक विस्फोट हो गया। लंबे समय से चुप रहकर अपनी राजनीति कर रहे सचिन ने बयान दिया कि मोदी ने एक बार गुलाम नबी आजाद की भी तारीफ की थी, देख लें कि उसके बाद क्या हुआ। ये सचिन का गहलोत पर बड़ा हमला था। गहलोत ने भी पलटकर बयान दिया, मगर संतुलित। मगर दोनों के बीच मोर्चा तो खुल ही गया।
उसी समय गुडा ने धारीवाल व जोशी पर अनुशासनात्मक कार्यवाही की मांग कर डाली। दिव्या मदेरणा ने उनका समर्थन कर दिया। जुबानी जंग तेज हो गई। उसके बाद गहलोत के साथ रहे विधायक व मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास सामने आये। उन्होंने अफसरशाही के खिलाफ बोलते हुए कहा कि इनकी सीआर सीएम के बजाय संबंधित मंत्री को भरने की व्यवस्था हो, तभी ये जनता के काम करेंगे। अपरोक्ष रूप से उनका आरोप था कि राज में अफसरशाही हावी है। उनके इस बयान का भी दिव्या मदेरणा ने समर्थन किया। गहलोत गुट से मंत्री महेश जोशी सामने आये और कहा कि मुझे तो ये अधिकार मिला हुआ है। उनके कहने का अर्थ था कि अफसरशाही हावी नहीं। खाचरियावास ने पलटकर बड़ा बयान दिया। उन्होंने कह दिया कि ये चापलूसी है। जिसको शौक है वो करे। दोनों के बीच अब भी जुबानी जंग जारी है। ये गहलोत खेमे में भी कुछ बदलाव का संकेत है। सीएम गहलोत को महासचिव वेणुगोपाल का बयान याद दिलाना पड़ा कि उन्होंने इस तरह के बयान न देने का आदेश दिया हुआ है। मगर फिर भी बयानों की बयार थम नहीं रही।
हिमाचल और गुजरात के चुनाव सामने है और राजस्थान के संकट का प्रतिकूल असर कांग्रेस पर पड़ सकता है, ये आलाकमान जानता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राजस्थान कांग्रेस संकट पर आलाकमान की सुस्त नीति फायदे के बजाय नुकसान अधिक कर रही है। आलाकमान जल्दी निर्णय नहीं लेता है तो कांग्रेस को ज्यादा नुकसान की स्थितियां बनेगी। राजस्थान का संकट अब कांग्रेस के एजेंडे में पहले स्थान पर आना जरुरी है, नहीं तो स्थिति बिगड़ते भी देर नहीं लगेगी।


- मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार