राहुल गांधी और राजनीतिक विवादों का जैसे पक्का गठजोड़ है, जी तोड़ कोशिश के बाद भी वे किसी न किसी विवाद से घिर ही जाते हैं। हालांकि ये भी सच है कि विपक्षी अक्सर तो उनके बयान का गलत इंटरपिटेशन कर विवाद को गढ़ भी देते हैं। इन विवादों से एक पॉजिटिव बात तो कांग्रेस व राहुल के लिए है, वो ये कि भाजपा सहित सभी विपक्षी नेताओं की नजर पूरे समय राहुल पर रहती है। मतलब वे राजनीतिक रूप से महत्त्व तो रखते हैं। इसी कारण उनको विवाद में रखने के लिए विपक्षी गलत तथ्य भी काम में ले लेते हैं और फंस जाते है।
जैसे, राहुल ने भारत जोड़ो यात्रा आरम्भ की तो उनको लोकसभा चुनाव हराने वाली केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने आरोप लगाया कि यात्रा आरम्भ करने से पहले उन्होंने विवेकानन्द जी की मूर्ति तक जाना उचित नहीं समझा। ये गलत आरोप था, जिसका वीडियो कांग्रेस ने सोशल मीडिया पर डाला तो केंद्रीय मंत्री को चुप्पी साधनी पड़ी। इसी तरह राहुल और उनकी भांजी की तस्वीर पर भाजपा नेताओं के आरोप पर तो नेताओं को शर्मिंदा होना पड़ा। कई अनेक अन्य उदाहरण भी है।
इस समय राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा पर है। कन्याकुमारी से कश्मीर तक की इस 3500 किमी से लंबी पदयात्रा को भारी जन समर्थन मिल रहा है और राहुल की छवि भी बदली है। तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना, आंध्रा, कर्नाटक व महाराष्ट्र में पदयात्रा को मिले समर्थन से विपक्षी भी चकित है। इस तरह के समर्थन की उम्मीद कांग्रेस व विपक्ष दोनों को नहीं थी।
अभी यात्रा महाराष्ट्र में है। महाअगाडी गठबंधन यहां बना हुआ है और कांग्रेस भी उसका हिस्सा है। पहले सरकार थी और कांग्रेस भी उसमें शामिल थी। महाराष्ट्र में उनकी इस यात्रा का साथ महाअगाडी गठबंधन के साथी एनसीपी व शिव सेना उद्धव ठाकरे भी शामिल हुई। यात्रा की आम सभाओं में भी दोनों दलों के नेताओं ने भागीदारी की। मगर कल एक बयान के बाद राहुल फिर विवाद में घिर गये।
राहुल ने सावरकर पर बयान देकर विवाद को जन्म दे दिया। यहां ये बात गौण है कि सावरकर पर उनका बयान सही है या नहीं, बात ये महत्त्वपूर्ण है कि महाअगाडी गठबंधन की साथी शिव सेना उद्धव सावरकर के विचारों का अब तक समर्थन करती आई है। राजनीति में गठबंधन का अपना एक धर्म होता है। अलग अलग विचार के दल जब एक बड़े ध्येय के लिए साथ आते हैं तो आपसी विवाद के कुछ मुद्दों पर मौन भी धारण करना पड़ता है। इसी श्रेणी में सावरकर का मुद्दा भी आता है।
राहुल के आरोप पर भाजपा को तो मौका मिला ही मगर शिव सेना उद्धव को भी बयान से किनारा करना पड़ा। आदित्य ठाकरे व संजय राउत ने तुरंत प्रतिक्रिया दी और अपने को सावरकर पर दिए इस बयान से किनारा कर लिया। उनका अपना राजनीतिक स्टैंड है, क्योंकि वे सावरकर की अब तक तरफदारी करते रहे हैं। राउत ने सही कहा कि राहुल को इस तरह के विवाद के विषयों से बचना चाहिए। शिव सेना उद्धव के कई नेता तो इस मसले पर गठबंधन टूटने तक की बात कह गए।
हालांकि अब इस राजनीतिक विवाद पर कांग्रेस और शिव सेना उद्धव के नेता मामला सुलझाने में भी लग गए है और भाजपा पर भी हमलावर हो गए हैं। मगर इस मुद्दे पर महाराष्ट्र की राजनीति जरूर गर्मा गयी है। सच है, राहुल और विवाद का भी शायद कोई गठबंधन है।

  • मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
    वरिष्ठ पत्रकार