

भाजपा हिमाचल के कारण राजस्थान, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में पार्टी बड़े बदलाव कर कठोर निर्णय ले सकती है। क्योंकि उसके पास गुजरात में रिकॉर्ड ऐतिहासिक जीत का भी मॉडल है। उसी मॉडल पर चुनावी राज्यों में निर्णय आने वाले समय में होते दिख रहे हैं।
भाजपा को हिमाचल में बागियों के कारण शिकस्त मिली है, ये तो आंकड़ों से स्पष्ट हो गया है। इसकी आहट भाजपा को चलते चुनाव के समय ही हो गई थी। तभी तो एक बागी को बिठाने का प्रयास स्वयं पीएम मोदी ने भी किया, भले ही वो चुनाव से नहीं हटे। हिमाचल में भाजपा को 15 सीट पर 2 हजार से कम वोटों की हार मिली है, जिसकी मूल वजह असंतुष्ट उम्मीदवार थे। पिछले 9 सालों में पहली बार भाजपा को अपने ही इतने बागियों का सामना करना पड़ा। बागियों के कारण भाजपा को हिमाचल गंवाना पड़ा है।
हिमाचल के परिणामों के बाद भाजपा अनुशासन को लेकर ज्यादा सख्त होगी, ये संकेत तो उसने दे दिए। इसके अलावा इतने बागी बनने की वजह भी भाजपा तलाश रही है, ताकि अगले चुनावी राज्यों में ये समस्या न आये। वहीं गुजरात चुनाव की सफलता के सूत्र भी भाजपा चुनावी राज्यों में लागू करेगी। एक मिलीजुली रणनीति पर भाजपा नेतृत्त्व अगले राज्य चुनावों को लेकर सक्रिय भी हो गई है।
फिलहाल राजस्थान भाजपा के लिए एक गम्भीर चिंतन वाला राज्य है, जहां अगले साल चुनाव होने वाले हैं। यहां भी 5 साल बाद सरकार बदलने का रिवाज चल रहा है मगर हिमाचल के बाद भाजपा गम्भीर हुई है। क्योंकि गुजरात चुनावों के साथ राजस्थान के सरदारशहर विधानसभा का उप चुनाव भी हुआ और उसमें भाजपा को कड़ी शिकस्त मिली। दुबारा हुए चुनाव में भाजपा की हार का अंतर बढ़ गया। ये बड़ी चिंता की बात है। राजस्थान सरकार के 4 साल की अवधि में 9 उपचुनाव हुए, जिसमें भाजपा को 7 में हार मिली। सिर्फ 2 चुनाव ही पार्टी जीत सकी।
कांग्रेस की तरह राजस्थान भाजपा में भी सब ठीक नहीं है। नेता बनने की जंग ज्यादा है। गुटों के मध्य तालमेल भी नहीं है। नेता शक्ति प्रदर्शन से अपना दावा भी लगातार ठोक रहे हैं। इसी असंतोष के मध्य भाजपा नेतृत्त्व को ऐलान करना पीडीए कि पार्टी राज्य में कोई सीएम फेस नहीं देगी, पीएम के फेस पर ही चुनाव लड़ेगी। मगर उसके बाद भी गुटबाजी थमी नहीं है।
राजनीतिक सूत्रों के अनुसार अब भाजपा ने गुजरात तर्ज पर राजस्थान में भी लगभग आधे टिकट बदलने पर सोचना शुरू कर दिया है। इस निर्णय पर अनेक वर्तमान विधायकों के टिकट कटने की प्रबल संभावना बन गई है। हो सकता है, कई नेता स्वयं चुनाव न लड़ने का ऐलान करे। भाजपा ने संभावित उम्मीदवारों के लिए अभी से सर्वे भी शुरू कर दिए हैं। राजस्थान भाजपा में बड़े परिवर्तन मंडल से राज्य स्तर पर होंगे, ये साफ दिखने लग गया है। गुजरात की जीत और हिमाचल की हार के बाद भाजपा नेतृत्त्व का फोकस राजस्थान पर है, ये तो पार्टी की जन आक्रोश यात्राओं से ही स्पष्ट हो गया है। कांग्रेस और भाजपा का लक्ष्य अब राजस्थान है, इसी कारण दोनों पार्टियां अब यहां अपने में बड़े परिवर्तन कर सकती है।
- मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार
