-समाचारों का संपादकीयकरण होने लगा है पर आधारित समाचारों की संख्या बढऩे लगी है, इससे पत्रकारिता में एक अस्वास्थ्यकर प्रवृति विकसित होने लगी है

✍तिलक माथुर केकड़ी / अजमेर
आज राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस पूरे देश में पत्रकार साथियों द्वारा मनाया जा रहा है। इस मौके पर कई स्थानों पर गोष्ठियां व पत्रकार साथियों का अभिनंदन कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि सरफरोशी की तमन्ना लेकर मिशन पर निकले पत्रकारों ने आज भी लोकतंत्र को जीवंत रखा है। पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है और स्वतंत्र प्रेस एक जीवंत लोकतंत्र की मजबूत नींव है। पत्रकार किसी भी समाज का आईना होता है, लोकतांत्रिक देश में प्रेस की स्वतंत्रता एक मौलिक जरुरत है। इस नींव को लोकतंत्र के सशक्त प्रहरी के रूप में पूरी ईमानदारी एवं नैतिकता से मजबूत करने वाले समस्त कलम के सिपाहियों को राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में प्रेस की स्वतंत्रता एक मौलिक जरूरत है। भारतीय संविधान में अनुच्छेद 19 (1) (क) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता शामिल की गई है।

इसका आशय है-शब्दों, लेखों, चिह्नों, प्रिटिंग या किसी अन्य प्रकार से अपने विचारों को व्यक्त करना। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में प्रेस की स्वतंत्रता भी शामिल है। आज प्रेस की वैधता पर विवाद करना एक अत्यंत खतरनाक राजनीतिक आग के साथ खेलने जैसा है। 21 वीं सदी में जब मोबाइल जर्नलिज्म ने पत्रकारिता का रुप बदल दिया है, ऐसे वक्त में सोशल मीडिया के साथ एक ओर जहां पत्रकारिता जगत में क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ है, तो वहीं पत्रकारिता में नैतिक मूल्यों को कायम रखना और पत्रकारों का सम्मानीय जीवन जीने के अधिकार और सुरक्षा को कायम रखने पहले से अधिक चुनौतिपूर्ण हो गया है। फर्जी खबरों, फेक न्यूज और इंटरनेट के दौर में मीडिया बेहद कठिन दौर से गुजर रहा है। आज के समय में पत्रकारिता एक ऐसी दोधारी तलवार की तरह हो गया हैं, जहां पत्रकारिता के मूलभूत सिद्धांतों पर चलने की कोशिश करने पर आज के बाजारीकरण के दुशप्रभाव के चलते पत्रकार का कटना तय है, लेकिन फिर भी सरफरोशी की तमन्ना लिए ऐसे अनगिनत पत्रकार आज भी पत्रकारिता के इस बेहद कठिन और काटों भरी राह में खुशी-खुशी काम कर रहे हैं और तमाम चुनौतियों के बीच स्वतंत्रता, मौलिक अधिकार और लोकतंत्र को जीवंत रखे हुए हैं।

राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस को मनाने का उद्देश्य प्रेस की स्वतंत्रता के विभिन्न प्रकार के उल्लंघनों की गंभीरता के बारे में जानकारी देना भी है। यह दिन प्रेस की आजादी को बढ़ावा देने और इसके लिए सार्थक पहल करने तथा दुनिया भर में प्रेस की आजादी की स्थिति का आकलन करने का भी दिन है। इसका एक और मकसद यह याद दिलाना है कि अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार की रक्षा और सम्मान करना इसका कर्तव्य है। प्रेस की आजादी का मुख्य रूप से यही मतलब है कि शासन व प्रशासन की तरफ से इसमें कोई दखलंदाजी न हो, लेकिन संवैधानिक तौर पर और अन्य कानूनी प्रावधानों के जरिए भी प्रेस की आजादी की रक्षा जरूरी है।

लोकतंत्र के मूल्यों की सुरक्षा और उनको बहाल करने में मीडिया अहम भूमिका निभाता है। इसलिए सरकारों को पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए। गौरतलब है कि प्रथम प्रेस आयोग ने भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा एंव पत्रकारिता में उच्च आदर्श कायम करने के उद्देश्य से एक प्रेस परिषद की कल्पना की थी। परिणाम स्वरूप चार जुलाई 1966 को भारत में प्रेस परिषद की स्थापना की गई जिसने 16 नंवबर 1966 से अपना विधिवत कार्य शुरू किया। तब से लेकर आज तक प्रतिवर्ष 16 नवंबर को राष्ट्रीय प्रेस दिवस के रूप में मनाया जाता है। विश्व में आज लगभग 50 देशों में प्रेस परिषद या मीडिया परिषद है। भारत में प्रेस को वाचडॉग एंव प्रेस परिषद इंडिया को मोरल वाचडॉग गया है। राष्ट्रीय प्रेस दिवस, प्रेस की स्वतंत्रता एंव जिम्मेदारियों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करता है। आज पत्रकारिता का क्षेत्र व्यापक हो गया है। पत्रकारिता जन-जन तक सूचनात्मक, शिक्षाप्रद एवं मनोरंजनात्मक संदेश पहुँचाने की कला एंव विधा है।

समाचार पत्र एक ऐसी उत्तर पुस्तिका के समान है जिसके लाखों परीक्षक एवं अनगिनत समीक्षक होते हैं। अन्य माध्यमों के भी परीक्षक एंव समीक्षक उनके लक्षित जनसमूह ही होते है। तथ्यपरकता, यथार्थवादिता, संतुलन एंव वस्तुनिष्ठता इसके आधारभूत तत्व है। परंतु इनकी कमियाँ आज पत्रकारिता के क्षेत्र में बहुत बड़ी त्रासदी साबित होने लगी है। पत्रकार चाहे प्रशिक्षित हो या गैर प्रशिक्षित, यह सबको पता है कि पत्रकारिता में तथ्यपरकता होनी चाहिए। परंतु तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर, बढ़ा-चढ़ा कर या घटाकर सनसनी बनाने की प्रवृति आज पत्रकारिता में बढ़ने लगी है, कुछ अनपढ़ व गलत लोगों के इस मिशन में शामिल होने से आज यह पेशा बदनाम हुआ है। खबरों में पक्षधरता एवं अंसतुलन भी प्रायः देखने को मिलता है। इस प्रकार खबरों में निहित स्वार्थ साफ झलकने लग जाता है। आज समाचारों में विचार को मिश्रित किया जा रहा है। समाचारों का संपादकीयकरण होने लगा है पर आधारित समाचारों की संख्या बढऩे लगी है। इससे पत्रकारिता में एक अस्वास्थ्यकर प्रवृति विकसित होने लगी है। समाचार विचारों की जननी होती है।

इसलिए समाचारों पर आधारित विचार तो स्वागत योग्य हो सकते हैं, परंतु विचारों पर आधारित समाचार अभिशाप की तरह है। मीडिया को समाज का दर्पण एवं दीपक दोनों माना जाता है। इनमें जो समाचार मीडिया है, चाहे वे समाचारपत्र हो या समाचार चैनल, उन्हें मूलतः समाज का दर्पण माना जाता है। दर्पण का काम है समतल दर्पण का तरह काम करना ताकि वह समाज की हू-ब-हू तस्वीर समाज के सामने पेश कर सकें। परंतु कभी-कभी निहित स्वार्थों के कारण ये समाचार मीडिया समतल दर्पण का जगह उत्तल या अवतल दर्पण का तरह काम करने लग जाते हैं। इससे समाज की उल्टी, अवास्तविक, काल्पनिक एवं विकृत तस्वीर भी सामने आ जाती है। तात्पर्य यह है कि खोजी पत्रकारिता के नाम पर आज पीली व नीली पत्रकारिता हमारे कुछ पत्रकारों के गुलाबी जीवन का अभिन्न अंग बनती जा रही है। भारतीय प्रेस परिषद ने अपनी रिपोर्ट में कहा भी है ‘भारत में प्रेस ने ज्यादा गलतियाँ की है एंव अधिकारियों की तुलना में प्रेस के खिलाफ अधिक शिकायतें दर्ज हैं।’ पत्रकारिता आजादी से पहले एक मिशन थी। आजादी के बाद यह एक प्रोडक्शन बन गई। हाँ, बीच में आपातकाल के दौरान जब प्रेस पर सेंसर लगा था। तब पत्रकारिता एक बार फिर थोड़े समय के लिए भ्रष्टाचार मिटाओं अभियान को लेकर मिशन बन गई थी। धीरे-धीरे पत्रकारिता प्रोडक्शन से सेन्सेशन एवं सेन्सेशन से कमीशन बन गई है। परंतु इन तमाम सामाजिक बुराइयों के लिए सिर्फ मीडिया को दोषी ठहराना उचित नहीं है। जब गाड़ी का एक पुर्जा टूटता है तो दूसरा पुर्जा भी टूट जाता है और धीरे-धीरे पूरी गाड़ी बेकार हो जाती है। समाज में कुछ ऐसी ही स्थिति लागू हो रही है। समाज में हमेशा बदलाव आता रहता है। विकल्प उत्पन्न होते रहते हैं। ऐसी अवस्था में समाज अमंजस की स्थिति में आ जाता है। इस स्थिति में मीडिया समाज को नई दिशा देता है। मीडिया समाज को प्रभावित करता है, लेकिन कभी-कभी येन-केन प्रकारेण मीडिया समाज से प्रभावित होने लगता है। राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस के अवसर पर देश की बदलती पत्रकारिता का स्वागत है बशर्ते वह अपने मूल्यों और आदर्शों की सीमा- रेखा कायम रखें !