नई दिल्ली,( दिनेश शर्मा “अधिकारी “)। लखनऊ में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रमोद शंकर शुक्ला बनाम यूपी राज्य
मामले में सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया कि यदि कोई आपराधिक पुनरीक्षण दोष दर्ज किया गया है, तो यह नहीं कहा जा सकता है कि आपराधिक कार्यवाही अभी भी लंबित है।
न्यायमूर्ति आलोक माथुर की पीठ उस मामले में सुनवाई कर रही थी जहां याचिकाकर्ता राज्य सरकार के उस आदेश से व्यथित था जिसके तहत उसे केवल इस आधार पर पदोन्नति वेतनमान के बकाया से वंचित कर दिया गया था कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही लंबित यानि डिफेक्टिव आपराधिक पुनरीक्षण याचिका लंबित है।
श्री गौरव मेहरोत्राने ने प्रस्तुत किया कि, याचिकाकर्ता के खिलाफ न तो कोई आपराधिक मामला लंबित है और उनके पक्ष में अनुशासनात्मक कार्यवाही समाप्त हो गई है, फिर भी विरोधी पक्षों ने याचिकाकर्ता को पदोन्नति, एसीपी आदि का सेवा लाभ नहीं दिया है, जिसका वह हकदार था और जो उसे पूरी तरह से इस तथ्य के कारण अस्वीकार कर दिया गया था कि उसके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही (आपराधिक संशोधन डिफेक्टिव), साथ ही अनुशासनात्मक कार्यवाही लंबित थी।
पीठ के समक्ष विचार का मुद्दा था:
क्या पदोन्नति वेतनमान को केवल आपराधिक कार्यवाही के लंबित होने के आधार पर अस्वीकार किया जा सकता है?
उच्च न्यायालय ने कहा कि केवल डिफेक्टिव आपराधिक पुनरीक्षण के लंबित रहने से याचिकाकर्ता को सेवा लाभ प्रदान करने पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा।
पीठ ने कहा कि “यदि एक आपराधिक पुनरीक्षण डिफेक्टिव दर्ज किया जाता है, तो यह नहीं कहा जा सकता है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ अभी भी आपराधिक कार्यवाही लंबित है, जब तक कि डिफेक्ट को दूर नहीं किया जाता है और इस न्यायालय द्वारा कार्यवाही को स्वीकार नहीं किया जाता है, तब तक यह नहीं हो सकता है कि आपराधिक पुनरीक्षण लंबित रहेगा और याचिकाकर्ता को सेवा लाभ प्रदान करने के लिए इसका कोई प्रतिकूल परिणाम होगा।
उच्च न्यायालय ने कहा कि आपराधिक कार्यवाही याचिकाकर्ता के पक्ष में समाप्त हुई क्योंकि अभियोजन की मंजूरी डिफेक्टिव पाई गई और विभागीय कार्यवाही में याचिकाकर्ता को सभी आरोपों से विधिवत रूप से मुक्त कर दिया गया।
उपरोक्त को देखते हुए पीठ ने याचिका को मंजूर कर लिया।