नयी दिल्ली, 15 नवम्बर। तीन दशक से अधिक समय से बिहार भाजपा के बड़े चेहरे के रूप में स्थापित रहे सुशील कुमार मोदी पहली बार राज्य सरकार में शामिल नहीं होंगे। रविवार को एनडीए विधानमंडल दल की बैठक के बाद उन्होंने ट्वीट कर खुद इसके संकेत दिए। उपमुख्यमंत्री पद से हटाये जाने के पार्टी नेतृत्व के फैसले से वे थोड़े निराश भी दिखे। अपने ट्वीट में उन्होंने एक ओर आभार जताया तो दूसरी ओर यह भी कहा कि पद रहें या न रहें, कार्यकर्ता का पद कोई नहीं छीन सकता।

भाजपा के दायरे में चल रही चर्चाओं के मुताबिक, उपमुख्यमंत्री के रूप में 11 वर्षों से अधिक समय तक बिहार की सत्ता का प्रमुख चेहरा रहे सुशील मोदी को अब राज्यपाल के रूप में या केंद्र में कोई बड़ी जिम्मेवारी देकर एडजस्ट किया जा सकता है। बताया जाता है कि इन्हें राज्य की राजनीति से अलग करने की पटकथा उसी दिन लिखी गई, जब वे अचानक पिछले सप्ताह दिल्ली गए। हालांकि, वे सरकार में शामिल नहीं होंगे, इस पर किसी ने आधिकारिक टिप्पणी नहीं की। लेकिन, रविवार को एनडीए विधानमंडल दल की बैठक में तारकिशोर प्रसाद के नेता चुने जाने के बाद जिस तरह से सुशील मोदी ने खुद ही ट्वीट किया, इससे साफ हो गया कि वे अब राज्य की राजनीति में अधिक सक्रिय नहीं रहेंगे। संभवत: पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने उनके लिए कुछ और बेहतर सोचा है। यही बात केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के ट्वीट से भी साफ हो जाती है। सिंह ने कहा-आदरणीय सुशील जी आप नेता हैं, उप मुख्यमंत्री का पद आपके पास था। आगे भी आप भाजपा के नेता रहेंगे। पद से कोई छोटा-बड़ा नहीं होता।

पार्टी नेतृत्व के इस फैसले से दो बातें साफ हो जाती की पहला कि सरकार में व्यक्ति के वर्चसव को नियंत्रित रखा जाए ताकि केन्द्रीय नेतृत्व के समकक्ष कोई नेतृत्व ना उभरे परन्तु कहा यही जाता है कि संगठन को महत्व दिया गया। भाजपा समय-समय पर विभिन्न राज्यों की राजनीति में यह प्रयोग करती रही है। बिहार और सुशील मोदी प्रकरण को भी इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। इस प्रयोग में पार्टी के जाने-अनजाने चेहरे को सत्ता की कमान सौंपकर पार्टी नया संदेश देने में भी कामयाब हुई है। दूसरा यह कि भाजपा यह संदेश देना चाहती है कि नेता के बदले कार्यकर्ताओं को महत्व दिया जाता है। सुशील मोदी के बदले अगर तारकिशोर प्रसाद को विधानमंडल दल का नेता बनाया गया है तो पार्टी की यही सोच झलकती है।

– नीतीश-मोदी जोड़ी रही हिट
बिहार में सीएम नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री के रूप में सुशील कुमार मोदी की जोड़ी सबसे हिट रही है। दोनों भले ही अलग-अलग दलों में रहें लेकिन सोच में कोई अंतर नहीं था। यही कारण है कि जदयू व भाजपा दल के रूप में अलग होने के बावजूद एनडीए सरकार के फैसलों के क्रियान्वयन में कोई अंतर नहीं रहा।

सुशील मोदी का कार्यकाल :

– मोदी 1990 में पहली बार पटना मध्य से विधायक बने

– पहली बार वर्ष 2000 में जब नीतीश कुमार सात दिनों के लिए सीएम बने थे तो उस समय सुशील कुमार मोदी संसदीय कार्य मंत्री बने।

– जब नवम्बर 2005 में एनडीए सरकार सत्ता में आई तो वे बिहार के तीसरे उपमुख्यमंत्री बने। वे इस पद पर जून 2013 तक बने रहे।

– अगस्त 2017 में जब फिर से बिहार में एनडीए की सरकार बनी तो वे फिर से उपमुख्यमंत्री बने।

– जेपी आंदोलन की उपज मोदी लालू-राबड़ी राज और महागठबंधन सरकार के समय नेता प्रतिपक्ष भी रहे।