






विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार एन-95 मास्क खरीद प्रकरण को सवा महीने से ज्यादा का वक्त हो गया है लेकिन इस मामले की जांच अभी तक नहीं हुई है। जबकि अप्रेल के अंतिम दिनों में संभागीय आयुक्त और जिला कलेक्टर इस मामले की जांच करवाने के लिए पत्र भी लिख चुके हैं। हैरानी की बात तो यह है कि कोरोना वायरस से सक्रमण के संदिग्ध लोगों के बीच क्वारेंटाइन सेेन्टरों पर रहने वाले सरकारी कर्मचारियों को गुणवत्ताविहीन मास्क देकर उनकी जान को संकट में डालने का अपराध कारित किया गया इसके बावजूद इस प्रकरण में विभाग के अधिकारियों ने एफआईआर दर्ज करवाने की जहमत तक नहीं उठाई।
यहां यह बताना भी जरूरी है कि कोविड-19 के चलते प्रदेश में ऐपेडेमिक डिजीजेज अधिनियम लागू है, इस अधिनियम के तहत अगर कोई भी ऐसा कृत्य जो मानव जीवन को संकट में डाल दे, वो आपराधिक कृत्य की श्रेणी में माना जाता है और ऐसे शख्स के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई जाती है, इस प्रकरण में तो सैकड़ों कर्मचारियों की जान को संकट में डाला गया है लेकिन अभी तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं करवाई गई है।





कोरोना संक्रमित का सैंपल लेने में लेटलतीफी करने की शिकायत
एरिया मजिस्ट्रेट पुलिस थाना कोटगेट ने कलेक्टर को 16 अप्रेल को पत्र लिखा जिसमें कोटगेट क्षेत्र में पहला कोरोना मरीज का सैंपल लेेने में लेटलतीफी की शिकायत की गई है। इस पत्र में एरिया मजिस्ट्रेट कोटगेट पुलिस थाना प्रेमाराम परमार ने कलेक्टर कुमारपाल गौतम को अवगत कराया है कि सीएमएचओ से हुई वार्ता से यह स्पष्ट जाहिर हो रहा है कि यह सैंपल कल लिया गया है, जबकि संक्रमण 2अप्रेल,2020 को होना वार्ता में बताया गया है।
सीएमएचओ से हुई वार्ता क अनुसार सैंपल में देरी की वजह इंगित किया गया कि कहीं न कहीं चिकित्सा विभाग द्वारा लापरवाही हुई है। एरिया मजिस्ट्रेट कोटगेट पुलिस थाना ने अपने इस पत्र में इस प्रकरण की विधिक जांच करवा कर आपराधिक प्रकरण दर्ज करवाना उचित है कि सिफारिश की है। इस पत्र के साथ एरिया मजिस्ट्रेट प्रेमाराम परमार के साथ सीएमएचओ डॉ. बीएल मीणा की हुई बातचीत की रिकॉर्डिंग पैन ड्राइव में कलेक्टर को भेजी गई है।





ये लगाए जा रहे हैं आरोप
सूत्रों के मुताबिक इन दिनों महकमे में चर्चा है कि क्वारेंटिन सेन्टरों में नियम विरूद्ध क्वारेंटाइन किए गए लोगों को ठहराया गया। किसान भवन में 40 कमरे लिए गए थे जिनमें सरकारी एडवायजरी के अनुसार कुल 80 लोगों को ठहराया जाना चाहिए था, लेकिन विभाग के अधिकारियों ने जब वहां का निरीक्षण किया तो वहां के रिकॉर्ड में 150 लोगों के नाम दर्ज हो रखे थे। कई सेन्टरों में तो 5 से 8 लोगों को रखा गया था, जबकि सरकारी नियमों के अनुसार एक कमरे में सिर्फ दो जनों को ही रखा जाना चाहिए। इसी प्रकार महकमे में यह चर्चा भी काफी हो रही है कि कोविड-19 महामारी के दौरान सीएमएचओ ने निजी नम्बर का वाहन राजकीय कार्य में उपयोग लिया और टी नम्बर का बिल पेश कर नियम विरूद्ध तरीके से 38 हजार रुपए का भुगतान प्राप्त कर लिया।





इसी प्रकार होटल कला मंदिर में क्वारेंटाइन किए गए लोगों की बजाय विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा रात को नशे की पार्टियां किया जाने का मामला भी काफी सुर्खियों में रहा था। इस मामले की मुख्यमंत्री को शिकायत करने वाले एक वरिष्ठ नागरिक ने विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों को बचाए जाने के आरोप लगाए थे। इससे पहले अप्रेल महीने में स्वास्थ्यकर्मियों ने सरकार की ओर से भेजी गई प्रोत्साहन राशि वितरित नहीं करने के आरोप लगाए थे। सरकार की ओर से चिकित्सकों को पांच हजार और नर्सिंगकर्मियों, एएनएम, एलएचवी, टेक्निशिन, वाहन चालक, वार्ड बॉय एवं सफाईकर्मियों को 25 सौ रुपए देने की घोषणा की गई थी। इस घोषणा के तहत सरकार ने 62 लाख रुपए का बजट भी भेजा गया था, जो कि लापरवाही की वजह से लैप्स हो गया।
