भारत और चीन के बीच का तनाव सीमा से चलकर अब नागरिक समाज में उतर आया है ।सवाल यह है की चीन का बहिष्कार कहाँ से कहाँ तक । भारत और चीन के बीच संघर्ष तो १९६२ से चला आ रहा है। परन्तु चीन ने पिछले कई वर्षों में जिस तरह भारत में पांव पसारे हैं कि भारत के रसोई घर, बेडरूम और ऑफिस, सभी स्थानों पर चीन किसी-न-किसी रूप में मौजूद है।
शाओमी, वीवो, ओपो से लेकर टीवी, फ्रिज बनाने वाली कंपनी से लेकर एमजी मोटर्स तक सभी चीनी कंपनियां हैं।मुख्य रूप से भारत को विभिन्न उद्योगों में इस्तेमाल होने वाली मशीनरी, टेलिकॉम उपकरण, बिजली से जुड़े उपकरण, दवा उद्योग में इस्तेमाल होने वाले अधिसंख्य रसायन भारत को निर्यात करता है।भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा दवा निर्माता है, लेकिन दवा के निर्माण के लिए ७० प्रतिशत थोक दवा, जिन्हें तकनीकी भाषा में एक्टिव फार्मास्यूटिकल्स इंग्रेडिएंट्स कहते हैं, उनका आयात चीन से करता है।
कहने को भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल निर्माता है, इसमें चीनी कंपनियां भी शामिल हैं, लेकिन हम मोबाइल सीधे चीन से आयात नहीं करते हैं।मेक इन इंडिया के तहत चीनी कंपनियां उनका निर्माण भारत में करती हैं।यह सेक्टर सात लाख लोगों को रोजगार देता है।
भारत और चीन के बीच कारोबार की स्थिति पर भी एक नजर सन् २००० में भारत और चीन के बीच कारोबार केवल तीन अरब डॉलर का था। अब चीन अमेरिका को पीछे छोड़ कर भारत का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है| वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार सन् २०१८ में दोनों देशों के बीच कारोबार ८९.७१ अरब डॉलर के स्तर पर पहुंच गया, पर व्यापार संतुलन चीन के पक्ष में था यानी भारत से कम निर्यात हुआ और चीन से आयात में भारी बढ़ोतरी हुई।भारत ने जो सामान निर्यात किया, उसकी कीमत केवल १३.३३ अरब डॉलर थी, जबकि चीन से ७६.अरब डॉलर का आयात हुआ यानी ६३.०५ अरब डॉलर का व्यापार घाटा था।
इसी तरह २०१९ में चीन से ७०.३१ अरब डाॅलर का आयात हुआ, जबकि १६.७५ अरब डाॅलर के उत्पाद निर्यात किये गये. इसका मतलब है कि चीन ने भारत के मुकाबले चार गुने से भी अधिक का सामान बेचा। चीन ने भारत में ई-कॉमर्स, फिनटेक, मीडिया, सोशल मीडिया और लॉजिस्टिक्स में चीनी कंपनियों ने भारी निवेश कर रखा है।