

जयपुर। ( ओम एक्सप्रेस ) जब से लॉक डाउन लागू हुआ है, तंबाकू, गुटखा, सिगरेट, बीड़ी आदि पर प्रतिबंध है। यानि कि बनाने और बेचने पर। न बनना चाहिए, न बिकना चाहिए। खाने पर भी। यदि खा कर कहीं थूक दिया तो जुर्माना है। जब कि सच्चाई ये है कि ये सभी वस्तुएं बिक रही हैं। यह सर्वविदित तथ्य है। ठेठ मजदूर तक को पता है। मीडिया की खोज खबर नहीं। इसके लिए किसी प्रमाण की जरूरत नहीं होनी चाहिए। प्रमाण भी है। पिछले दिनों पुलिस ने बीकानेर -जयपुर के अलावा प्रदेश के अनेक जिलो में भारी मात्रा में बरामदगी भी की। वह एक मामला है, जो कि पुलिस की मुस्तैदी से उजागर हो गया, वरना ऐसे न जाने कितने स्टॉकिस्ट होंगे। निष्कर्ष ये कि स्टॉकिस्ट के पास माल आ रहा है। आता कहां से है? अर्थात उत्पादन हो रहा है। बरामद माल पहले का रखा हुआ नहीं हो सकता। पहले का रखा हुआ तो अब तक बिक बिका कर खत्म हो गया होगा। इसकी मांग कितनी है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ये सभी वस्तुएं लगभग तीन से पांच गुना दामों में गुपचुप बिक रही हैं। आप दुकानदार के पास जाएंगे तो वह कह देगा, माल कभी का खत्म हो गया। जान पहचान वाला हुआ तो माफी के साथ धीरे से पकड़ा देते हैं।


जो लोग गुटखे के बिना नहीं रह सकते, वे या तो महंगा खरीद रहे हैं या फिर मीठी व फीकी सुपारी में बीड़ी का तम्बाकू या खैनी मिला कर सेवन कर रहे हैं। तंबाकू मिश्रित सुपारी की आदत इतनी गहरी है कि बिना तंबाकू के मिल रही सुपारी से खुद को संतुष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं। हालत ये हो गई है कि जनरल स्टोर्स पर मीठी व फीकी सुपारी तक गायब हो चुकी है। कई लोग ऐसे हैं, जिनको ब्रांडेड बीड़ी नहीं मिल रही या खरीदने में सक्षम नहीं हैं, वे घर में बनी बीड़ी का जुगाड़ कर रहे हैं। एक बड़ा दिलचस्प प्रकरण जानकारी में आया। कोई युवक जनरल स्टोर पर बटर पेपर लेने गया। दुकानदार ने पूछा कि क्या करोगे, तो उसने बताया कि सिगरेट बहुत महंगी है, वह खरीद नहीं सकता। कहीं से तंबाकू का जुगाड़ किया है, वह बटर पेपर की सिगरेट बना कर उसमें तंबाकू डाल कर उपयोग कर लेगा। ये तो हद्द हो गई। उसे पता ही नहीं कि बटर पेपर का धुंआ फेफड़ों में गया तो कितना नुकसान करेगा। मगर क्या करे, सिगरेट के बिना रहा नहीं जाता। इसी को एडिक्शन कहते हैं। कुछ इसी प्रकार का जुगाड़ पहले भी जानकारी में आया था। कॉलेज टाइम में साथ में कुछ युवक भी साथ पढ़ा करते थे। जरदा या खैनी नहीं मिलने पर वे कॉलेज की दीवार का चूना खुरच कर उसमें बीड़ी का तंबाकू मिला कर होंठ के नीचे दबाया करते थे।




इस गोरख धंधे का या तो शासन को पता नहीं है। और पता है तो संज्ञान नहीं ले रहा। कुछ न कुछ गोलमाल है। उसके लिए प्रशासन सीधे तौर पर जिम्मेदार इसलिए नहीं कि वह तो केवल शासन के आदेश को एक्जीक्यूट कर रहा है। बीच में सुना था कि रेवेन्यू के लिए सरकार शराब के साथ पान-बीड़ी की दुकान भी खोल सकती है, मगर जैसे ही शराब खोलने पर सरकार की छीछालेदर हुई, कदाचित इसीलिए पान की दुकान खोलने का विचार ही त्यागना पड़ा।
आदेशों की भी बड़ी महिमा है। सुप्रीम कोर्ट ने तंबाकू मिश्रित पान मसाले पर रोक लगाई तो दूसरे ही दिन सारी कंपनियों ने पान मसाला व तंबाकू अलग-अलग पाउच में बेचना शुरू कर दिया। न तो आदेश की अवहेलना हुई और न ही उपभोक्ताओं को कोई दिक्कत। वे मिला कर सेवन करने लग गए। यह बात भी गौर तलब है कि तंबाकू के उत्पादों में चित्र के साथ लिखा होता है कि तंबाकू स्वास्थ्य के हानिकारक है। अरे भई, यदि हानिकारक है तो बेचने ही क्यों दे रहे हो? यानि की सरकार तो आगाह कर रही है, अगर आपको हानि का वरण करना है तो यह आपकी मर्जी है। बतादें प्रदेश में दारू के ठेकेदारों ने करोड़ों की शराब ब्लैक में बेची गई थी। अब ठेके खुलने के बाद भी शराब के दुकनदार एमआरपी रेट से ऊपर पैसा ले रहे है। राज्य में उपभोक्ता क़ानून की खुलम खुला धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। सम्बंधित आबकारी विभाग के अधिकारियों की मिली भगत के बेगर यह संभव नही हो सकता और अधिकारियों ने भी जमकर कमाई कर अपने पाप धोने में कोई कोर कसर बाकी नही रखी।
कुछ ऐसा ही कोरोना को लेकर होने जा रहा है। सरकार आखिर कितने दिन लॉक डाउन करेगी। अंतत: खोलना ही होगा। आखिर चेतावनियां दे कर खोल देगी। आप जानो, आपका राम जाने।
