

नई दिल्ली/जबसे रामलीला ग्राऊंड में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रैली (रविवार को) हुई है, राजधानी में कई तरह की चर्चाएं गर्म हैं। ऐसी चर्चाओं की कोई कमी नहीं है और कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि पी.एम. मोदी ने अपने सबसे विश्वासपात्र सहयोगी तथा केन्द्रीय मंत्री और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एन.आर.सी.) के मसले पर लताड़ लगाई है। अमित शाह संसद में और संसद के बाहर जोर-शोर से यह कहते रहे हैं कि एन.आर.सी. पूरे देश में लागू किया जाएगा जबकि पी.एम. ने रैली के दौरान उन लोगों की खिल्ली उड़ाई जो इस तरह की अफवाहें उड़ा रहे हैं।


पी.एम. मोदी ने कहा, ‘‘एन.आर.सी. पर संसद में कोई चर्चा नहीं हुई, कैबिनेट में कोई चर्चा नहीं हुई, तो फिर इस मुद्दे पर इतना हो-हल्ला क्यों मचाया जा रहा है!’’ इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने कुछ राज्यों में हुई हिंसा के लिए विपक्षी दलों को जिम्मेदार ठहराया। कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों ने प्रधानमंत्री की इस टिप्पणी का यह अर्थ निकाला कि पी.एम. ने अमित शाह से दूरी बना ली है लेकिन ये लोग भूल रहे हैं कि देश में चरणबद्ध तरीके से एन.आर.सी. लागू करने के लिए किसी नए कानून की जरूरत नहीं है। इसके लिए एन.आर.सी. से संबंधित नियम गृह मंत्रालय को बनाने होंगे जिनके तहत एन.आर.सी. को देश भर में लागू किया जा सकता है।
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने पहली बार 2004 में नागरिकता कानून 1955 में संशोधन किया था क्योंकि इस तरह की मांग उत्तर पूर्वी राज्यों की ओर से की गई थी। इस प्रकार वाजपेयी सरकार ने कानून में संशोधन करके राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एन.पी.आर.) तैयार करने के लिए भूमिका निभाई जिसके तहत देश के नागरिकों का एक डाटाबेस तैयार किया जाना था और उसके बाद एन.आर.सी. पर काम होना था।


