आचार्य देवश श्री जिनपीयूषसूरीश्वरजी म.सा. की सूरिमंत्र की पंचम पीठिका की साधना की पूर्णाहुति 3 नवम्बर को।

30 अक्टूबर, कोलकाता (प.बंगाल)। खरतर विरूद धारक जिनेश्वरसूरिजी महाराज की पाट परम्परा के वर्तमान आचार्य देवेश आचार्यदेवश श्री जिनपीयूषसूरीश्वरजी म.सा की पावनतम निश्रा एवं मुनिराज श्री सम्यकरत्नसागर म.सा., मुनिराज श्री समर्पितरत्नसागर म.सा., मुनिराज श्री संकल्परत्नसागरजी म.सा., मुनिराज श्री संवेगरत्नसागरजी म.सा., मुनिराज श्री शौर्यरत्नसागरजी म.सा. आदि ठाणा की सानिध्यता में कोलकाता शहर में वर्षावास 2019 चल रहा है। चातुर्मास के आचार्यदेवश श्री जिनपीयूषसूरीश्वरजी म.सा म.सा. की 17 दिवसीय मौन साधना के साथ सूरि मंत्र की पंचम पीठिका गौतम स्वामी की साधना जैन श्वेताम्बर दादावाड़ी प्रांगण माणिकतल्ला में अनवरत रूप से चल रही है। इस साधना की पूर्णाहुति 3 नवम्बर, रविवार को महामांगलिक के साथ होगी। तथा प्रातः 8.36 बजे महाप्रभावी मंत्रों से गंुफित सूरि मंत्र महापूजन का आयोजन किया गया।

यह आराधना करने के बाद आचार्य भगवन्त प्रतिष्ठा अंजनशलाका आदि करते है। प्रतिमा के कान में मंत्रोच्चार करके प्राण फंुकते है। आचार्यपद प्राप्त होने के बाद आचार्य भगवन्त को सूरि मंत्र आराधना करना महत्वपूर्ण होता है। आचार्यश्री आराधना के दौरान 17 दिवस तक पूर्णकालिक मौन साधना में रहेगें। तृतीय पद पर आरुढ होने वाले आचार्यश्री को प्रतिदिन 3 घण्टे तक जाप आदि करके साधना करना पड़ती है। आचार्यश्री साधना के बल पर उर्जा प्राप्त करके समाज का उत्थान करते हुये पंच प्रस्थान की स्थापना के साथ मौन पूर्वक आराधना चल रही हें। इससे पूर्व आचार्य भगवंत की 18 दिवसीय चतुर्थ पीठिका की साधना 13 अक्टूबर को सम्पन्न हुआ।
चातुर्मास प्रबंध समिति के संयोजक अजयचंद बोथरा़ ने बताया कि जैन-परंपरानुसार विधाओं और मंत्रों का मूल विधाप्रवाद नामक दसवां पूर्व सूत्र है।

श्वेताम्बर-परंपरा में प्रत्येक आचार्य भगवंत जिस सूरि यंत्र-मंत्र की आराधना करते हैं, उसके पांच प्रस्थान हैं। प्रथम तीन प्रस्थानों की अधिष्ठायिकाएं क्रमशः भगवती सरस्वती, त्रिभुवनस्वामिनी और महालक्ष्मी देवी के होने के कारण वे विधास्वरूप हैं जबकि अंतिम दो प्रस्थानों के अधिष्ठायक क्रमशः यक्षराज गणिपिटक और अनंत-लब्धिनिधान, गणधर भगवंत श्री गौतम स्वामी जी के होने के कारण वे मंत्रस्वरूप हैं।