झालावाड़ में स्थित कालीसिंध नदी पर बना प्राचीन गागरोंन दुर्ग संत पीपा जी की जन्म स्थली रहा है।इनका जन्म विक्रम संवत् 1417 चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को खिचीं राजवंश परिवार में हुआ था।वे गागरोंन राज्य के वीर साहसी एवं प्रजापालक शासक थे। शासक रहते हुए उन्होंने दिल्ली सल्तनत के सुलतान फिरोज तुगलक से संघर्ष करके विजय प्राप्त की,लेकिन युद्ध जनित उन्माद,हत्या, जमीन से जल तक रक्तपात को देखा तो उन्होंने सन्यासी होने का निर्णय ले लिया.।
संत पीपा जी के पिता पूजा पाठ व भक्ति भावना में अधिक विश्वास रखते थे। पीपाजी की प्रजा भी नित्य आराधना करती थी,देवकृपा से राज्य में कभी भी अकाल व महामारी का प्रकोप नही हुआ व किसी शत्रु ने आक्रमण भी किया तो परास्त हुआ।
राजगद्दी त्याग करने के बाद संत पीपा रामानन्द के शिष्य बने,रामानन्द के 12 शिष्यों में पीपा जी भी एक थे।पीपानन्दाचार्य जी का संपुर्ण जीवन चमत्कारों से भरा हुआ है। राजकाल में देवीय साक्षात्कार करने का चमत्कार प्रमुख है उसके बाद सन्यास काल में स्वर्ण द्वारिका में 07 दिनों का प्रवास,पीपावाव में रणछोडराय जी की प्रतिमाओं को निकालना व अकालग्रस्त क्षैत्र में अन्नक्षेत्र चलाना,सिंह को अहिंसा का उपदेश देना,लाठियों को हरे बांस में बदलना,एक ही समय में पांच विभिन्न स्थानों पर उपस्थित होना,मृत तेली को जीवनदान देना,सीता जी का सिंहनी के रूप में आना आदि कई चमत्कार जनश्रुतियों में प्रचलित हैं।
आइये आज उनके पावन जन्म कल्याणक महोत्सव पर हम बारम्बार वन्दन,नमन करें । ओम दैया