नई दिल्ली, (दिनेश शर्मा “अधिकारी”)। सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को एक सुनवाई के दौरान कहा, अगर पीड़िता ने मरने से पूर्व दो बयान दिए हों तो प्रत्येक बयान का स्वतंत्र रूप से मेरिट के आधार पर मूल्यांकन किया जाना चाहिए। किसी एक बयान के आधार पर दूसरे बयान के तथ्यों को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने पीड़िता द्वारा मरने वाले दिन दिए दूसरे बयान के आधार पर अपीलकर्ता नागभूषण को पत्नी की हत्या में मिली उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा है। दहेज न मिलने से नाराज नागभूषण ने पत्नी को जलाकर मार डाला था। इससे पहले कर्नाटक हाईकोर्ट ने नागभूषण को बरी करने के निचली अदालत के फैसले को पलट दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपीलकर्ता के वकील संजय नूली के उस दावे को खारिज कर दिया कि मरने से पूर्व दिए पहले बयान में पत्नी ने आग लगने की घटना को हादसा बताया था।
पीठ ने कहा, पीड़िता ने मरने से पहले दिए अपने दूसरे बयान में बताया था कि पति ने बच्चों को मारने की धमकी दी थी इसलिए उसने दुर्घटना का मामला बताया था। पीड़िता ने यह भी कहा था कि माता-पिता के आने के बाद उसे सच बताने की हिम्मत मिली।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले कई फैसलों का उल्लेख करते हुए कहा, पीड़िता ने जब मरने से पूर्व कई बार बयान दिए हों तो प्रत्येक का अलग-अलग मूल्यांकन किया जाना चाहिए। अदालत को गुण के आधार पर प्रत्येक बयान को सही परिप्रेक्ष्य में विचार करना चाहिए और आकलन कर खुद को संतुष्ट करना चाहिए कि उनमें से कौन सा बयान सही स्थिति को दर्शाता है।