_ _ पीबीएम में 58 लाख की लागत से बना कार पार्किंग तो देखो

हेम शर्मा। पीबीएम अस्पताल की व्यवस्थाओं को लेकर संभागीय आयुक्त की अध्यक्षता में मेडिकेयर रिलीफ सोसायटी बनी है जो समय समय पर अस्पताल की व्यवस्था की समीक्षा करती रहती है । संभागीय आयुक्त डा. नीरज के पवन ने नि: शुल्क पार्किग की व्यवस्था करके पीबीएम अस्पताल की व्यवस्था के काकस की लम्बी चैन की एक कड़ी तोड़ दी है। 58 लाख की लागत से पीबीएम में वर्ष 2012 में यूआईटी ने पार्किंग स्थल बनाया अगर संभागीय आयुक्त इस काम की जांच करवाए तो सच खुलकर सामने आ जाएगा। इसी तरह अस्पताल की खरीद और ठेकों की भी मेडिकेयर रिलीफ सोसायटी जांच करें तो कई तथ्य खुलेंगे। यह सोसायटी अध्यक्ष का विजन और कार्य दक्षता है कि जनता की पीड़ाओं को समझते है। नहीं तो एसी में बैठकर ही समय गुजर जाता है। उतना ही वेतन पहले भी लोग लेते रहे हैं। पहले भी अतिरिक्त संभागीय आयुक्त राकेश शर्मा ने पी बी एम की व्यवस्था सुधार के लिए आपरेशन प्रिंस चलाया था। एक प्रशिक्षु आई ए एस ने अस्पताल की व्यवस्थाओं की कुंडली बनाई थी। यह रिपोर्ट स्वास्थ्य मंत्री और तत्कालीन मुख्यमंत्री को उनके ही पार्टी के लोगों ने हाथ में दी थी। भारत सरकार ने इसी रिपोर्ट के आधार पर 2016 में सुधार का सेकुलर जारी किया था। इस रिपोर्ट में उल्लेख था कि कई सीनियर डॉक्टर आउट डोर में नहीं बैठते। बीमारों को मजबूर घर दिखाना पड़ता है। उन तक मरीजों को पहुंचाने के लिए लपके काम करते हैं जो प्राइवेट लैब संचालकों के लिए भी काम करते हैं। कई डाक्टरों ने घरों में अस्पताल खोल रखे हैं। वे पी बी एम में ही अपने घरों के खातिर ही काम करते हैं। आउट डोर में व्यवस्था ठीक नहीं की जाती है। मरीजों को जयपुर दिल्ली रेफर करवाने के लिए बड़ा कॉकस काम करता है जिसके सारे फैक्ट ओपन है। कई डाक्टरों की एंबुलेंस गाड़ियां दूसरों के नाम से लगा रखी है। दवाओं, मेडिकल जांच का घालमेल के धंधे के उल्लेख की जरूरत नहीं है। अधिकांश लोगों का इस से वास्ता पड़ चुका है। ऐसे ही कुछ मामलों में नर्सिंग स्टाफ के खिलाफ प्रकरण विचाराधीन हैं। इन दर्ज प्रकरणों से पूरे काकस का खुलास हो सकता है। जैसे पार्किंग और ठेलों की वसूली में कई छुटभेया नेताओं की भूमिका जग जाहिर है वैसे ही मेडिकल पेशे में भी कई तरह की घालमेल है जो आम लोग भुगतते हैं। पी बी एम अस्पताल की व्यवस्थाओं में अति का आलम यह है कि आटे की जगह नमक ने ले ली है। कोई बिरला ही सुधार के लिए पहल करने की हिम्मत कर सकता है।