बीकानेर , ।पुष्करणा दिवस के अवसर पर लूणभूण आशापुरा सेवा संस्थान मुरलीधर व्यास नगर बीकानेर की तरफ से पुष्करणा बाह्मण समाज की कुलदेवी माँ उष्ट्र वाहिनी का विधिवत् पूजन किया गया. इस अवसर पर केशव प्रसाद बिस्सा, बीजी बिस्सा, सुभाष जोशी, जितेन्द्र आचार्य, दिनेश चूरा, मनमोहन पुरोहित, शिव रतन, पुरोहित, लोक गायक राकेश बिस्सा, सिद्धांत बिस्सा, संतोष रंगा, मनोज व्यास सहित पुष्करणा समाज के अनेक लोग उपस्थित हुए.

– माँ उष्ट्रवाहिनी पुष्करणा ब्राह्मणों की कुलदेवी

हम सब सैंध्वारन्य वाक्षी ब्राह्मण उष्ट्रवाहिनीमाता की कृपा और महालक्ष्मी जी के वरदान से विभूषित उपाधि पुष्टिकरा से सम्मानित पुष्टिकरा ब्राह्मण कहलाते है.श्रावन शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी उष्ट्रवाहिनीमाता का प्राकट्य दिवस भी है ओर इसे पुष्करणा दिवस भी कहते है.मंगलमयी हार्दिक शुभकामनाये अर्बुदारान्य में स्थित श्रीमाल क्षेत्र में भृगु ऋषि के घर लक्ष्मी जी अवतरित हुई .लक्ष्मी जी का शुभ विवाह भगवन विष्णु से निश्चित हुवा.इस अवसर पर समस्त आरन्यो से पधारे हुवे ब्राह्मणों को आमंत्रित किया गया जिसमे 5000 तपोनिष्ठ वेद विज्ञानं के ज्ञाता ब्राह्मण पहुचे. भगवान श्री विष्णु के शुभ विवाह में परम पिता ब्रह्मा, भगवान शिव और गुरु बृहस्पति ने समस्त आरान्यों से पधारे हुए ब्राह्मणों का सामान रूप से पूजन और और सम्मान करने का निवेदन भगवान् श्री विष्णु से किया. भगवान् श्री विष्णु निर्णय लेते उससे पूर्व ही प्रभु की इच्छा पर अतिक्रमण करते हुए त्वरा से ग्रसित सारस्वत ब्राह्मणों ने गौतम ऋषि का नाम प्रस्तावित कर दिया. जिसका अनुमोदन आंगिरस ब्राह्मणों ने किया. निर्भीक, सत्यानिष्ट, वेद विज्ञान के ज्ञाता, तपोनिष्ट, धर्म के रक्षक – पोषक स्पष्टवादी सैंध्वारन्य वाक्षी ब्राह्मणों ने विरोध प्रकट किया. उन्होंने निवेदन किया की परम पिता ब्रह्मा पूर्ण ब्रह्म शिव और गुरु बृहस्पति का जो निवेदन भगवान् श्री विष्णु से किया गया था और उन्हें जो निर्णय लेना था उससे पूर्व इस प्रकार का प्रस्ताव जो ब्राह्मणों में पंक्ति भेद, वर्ग भेद करने वाला है हम उसका विरोध करते हुए अस्वीकार करते हैं. सभी ब्राह्मण तपोनिष्ट है, पूजनीय है, सामान है, उनमे भेद कैसा. समस्त आरान्यों से पधारे हुए ब्राह्मणों का सामान रूप से पूजन होना चाहिए. उस पर आंगिरस ब्राह्मण उत्तेजित हो गए तथा श्राप देने को उद्यत हुए, एक ब्राह्मण का मतभेद के आधार पर श्राप स्वतः ही च्युत हो जाता है फिर भी आंगिरस ब्राह्मणों के आचरण से क्षुब्ध सैन्ध्वारन्य ब्राह्मण, ब्राह्मणों में पंक्ति भेद करने वाले प्रस्ताव को जो वेदोक्त नहीं था अन्यायोचित था अस्वीकार करते हुए चले गए. सैंध्वारन्य ब्राह्मणों ने सिन्धु नदी के तट पर महालक्ष्मी की हिंगलाज पीठ की आराधना कर अपनी योग, साधना से तप किया. श्रावण शुक्ल पक्ष त्रयोदशी को मातेश्वरी ऊंट पर सवार होकर माँ सारिका के रूप में प्रकट हुयी. ब्राह्मणों ने माताजी का सांगोपांग पूजन कर वेदोक्त स्तुति की जिस पर प्रसन्न होकर माताजी के आह्वाहन का कारण पूछा. ब्राह्मणों नें समस्त वृतांत बताया. मातेश्वरी उष्ट्रवाहिनी ने निर्भीक, निडर, निर्लोभी, सत्यवक्ता, तपोनिष्ट, वेद विज्ञान के ज्ञाता, न्यायप्रिय, याग विद्या के ज्ञाता, ब्राह्मणों में पंक्ति भेद नहीं चाहने वाले ब्राह्मणों को आश्वासन दिया की मैं अपनी बड़ी बहन लक्ष्मी जी से उनके शुभ विवाह पर समयोचित निर्णय के अभाव में जो हुआ उसको निरस्त किया जाए. सभी ब्राह्मण सामान रूप से पूज्य होंगे और आपको वरदान दिलाउंगी. इस आश्वासन के पश्चात सारिका ने श्रीमाल क्षेत्र में वर वधु के विवाह स्थल से कन्याओं का अपहरण कर कुछ समय के लिए सम्मान पूर्वक कांकोल नाग के संरक्षण में रखा. श्रीमाल के त्रस्त ब्राह्मण अर्बुदाचल में चले गए. श्रीमाल क्षेत्र उजड़ गया. ब्राह्मणों को किसी अदृश्य शक्ति के प्रयोग आभास होने पर लक्ष्मी जी से आर्त प्रार्थना की. इस बीच शिकार खेलते हुए महाप्रतापी राजा पुंज वहाँ आ पहुंचे और शहर के उजाड़ होने का वृतांत सुना. राजा पुंज शक्ति उपासक और तंत्र विद्या का ज्ञाता था. उसने शक्ति उपासना से ज्ञात किया कि हिंगलाज पीठ की सारिका का उष्ट्रवाहिनी लक्ष्मीं जी की बहन ने ब्राह्मणों में समान सम्मान और पंक्ति भेद मिटाने के लिए यह उपक्रम किया है. राजा पुंज ने अपनी साधना से आह्वाहन करके लक्ष्मी जी और सारिका जी की प्रार्थना की तब माताजी के आदेशानुसार सैंध्वारन्य ब्राह्मणों को आमंत्रित किया गया. सभी ब्राह्मण गर्गाचार्य की आज्ञा लेकर वहां पहुंचे. राजा पुंज ने सबकी पूजा अर्चना कर सम्मानित किया. सैंध्वारन्य ब्राह्मणों ने लक्ष्मी जी की सांगोपांग वेदोक्त स्तुति की जिससे लक्ष्मी जी ने अत्यंत प्रसन्न होकर वरदान दिया की यह हिंगलाज पीठ मेरी ही है और मैंने ही सारिका का रूप धारण किया. हम अभेद हैं मेरा ऊँट पर विराजमान यह स्वरुप सैन्ध्वारान्य में आपकी रक्षा उपासना हेतु ही प्रकट हुआ है. हे उत्तम ब्राह्मणों आप तपस्वी और तीर्थवासी हो, तुममें कोई पंक्ति भेद नहीं है, आप सभी सत्यवादी, स्पष्टवक्ता, वेद विज्ञान के ज्ञाता हो. आप शिक्षा, कल्प व्याकरण, निरुक्त, छंद और ज्योतिष के पुरोधा हो. आप उदार और राजा पुंज के द्वारा पूजन के कारण सभी राज्यों में पूज्य होंगे. आप शुद्ध, संतोषी, निर्भीक – निडर, निर्लोभी ब्राह्मणों की पुष्टि करने वाले वेद, ज्ञान, धर्मं, न्यायप्रिय, समस्त सामाजिक तत्वों में समन्वय और तात्विक के छिद्रान्वेषण के साथ वेद विज्ञान के आधार पर पुष्टि करने वाले होंगे. आज से आपको मैं पुष्टिकरा उपाधि से सम्मानित करती हूँ अतः आप सभी सैंध्वारन्य ब्राह्मण पुष्टिकर्ना ब्राह्मण कहलाओगे. इस अवसर पर अति प्रसन्न मुद्रा में उष्ट्रवाहिनी मातेश्वरी ने आदेश दिया कि आप मात्र शक्ति की पूजा करने वाले हो अतः शुभ विवाह के अवसर पर कन्या मेरे देवी स्वरुप में घोड़े पर सवार हो बरात के रूप में दुल्हे के यहाँ जाएगी. वहाँ पर इसी मेरे स्वरुप की लक्ष्मीजी के रूप में आरती उतारी जाएगी, उसके पश्चात ही दूल्हे की बारात प्रस्थान हो सकेगी. यही कारण है की पुष्करना ब्राह्मणों में दूल्हे की बारात के पहले दुल्हन की बरात निकल सकेगी यह नारी सम्मान की अद्वितीय परंपरा है. हे पुष्करणा ब्राह्मणों, लक्ष्मीजी ने आपको पुष्टिकार न्यायिक पद्वी से विभूषित किया है अतः आप ब्रह्मा जी की दक्षिणा स्वीकार करेंगे. अन्य ब्राह्मण दान लेंगे. शुभ विवाह के अवसर पर मेरे भोग के रूप में लापसी, चावल, दूध और बूरा चढाओगे – तो आपकी न्याती में कोई अनिष्ट नहीं होगा. समस्त कार्य सुख सम्पदा और संतोषी के साथ संपन्न होंगे. सभी पुष्टिकर्ना ब्राह्मणों नें माँ उष्ट्रवाहिनी व् लक्ष्मी जी की स्तुति – पूजा अर्चना से वरदान प्राप्त किया और मातेश्वरी की कृपा से पुष्करणा ब्राह्मणों के सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं. सभी ब्राह्मण सामान हैं यही पुष्करना ब्राह्मणों का सन्देश और आह्वाहन है।