जयपुर , ( ओम दैया )। राजस्थानी और हिंदी के प्रखर व वरिष्ठतम शब्द शिल्पी चम्पाखेड़ी, नागौर के देवकिशन राजपुरोहित को सवाई जयपुर पुरस्कार 2021 के अंतर्गत साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए प्रताप सिंह पुरस्कार से नवाजा जाएगा।

जयपुर के महाराजा सवाई भवानी सिंह एमवीसी, महाराजा सवाई मान सिंह II संग्रहालय, सिटी पैलेस, जयपुर द्वारा प्रति वर्ष विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य या योगदान करने वाले व्यक्तियों / संगठनों को सम्मानित किया जाता है।

वर्ष 2000 में शुरू यह पुरस्कार सवाई जयपुर पुरस्कार के रूप में विशिष्ट रूप से विख्यात है। यह पुरस्कार शुक्रवार, 22 अक्टूबर, 2021 को स्वर्गीय ब्रिगेडियर की जयंती पर महाराजा सवाई भवानी सिंह एमवीसी, सिटी पैलेस, जयपुर में प्रदान किया जाएगा। इस पुरस्कार के तहत शॉल, कलश, प्रशस्ति पत्र, श्रीफल और इकतीस हजार रुपये दिए जाते हैं।

रोटरी क्लब बीकानेर द्वारा वर्ष 2021 के राज्य स्तरीय राजस्थानी भाषा पुरस्कार के अंतर्गत सर्वोच्च पुरस्कार कला डूंगर कल्याणी राजस्थानी शिखर पुरस्कार देवकिशन राजपुरोहित को दिया जाएगा।

इस पुरस्कार के अंतर्गत इक्यावन हजार रुपये, शाल और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है। उल्लेखनीय है कि श्री राजपुरोहित देश के प्रतिष्ठित साहित्यकार के रूप में विख्यात हैं। उन्हें पूर्व में भी देश के अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।

महाराणा मेवाड़ फाऊण्डेशन उदयपुर का महाराणा कुम्भा साहित्य पुरस्कार, महाराजा मानसिंह साहित्य पुरस्कार के अंतर्गत मारवाड़ रत्न अलंकरण पुरस्कार, राजस्थान रत्नाकर दिल्ली द्वारा महेन्द्र जाजोदिया पुरस्कार, बीकानेर नगर स्थापना दिवस पर भीमराव पुरस्कार, मारवाड़ी सम्मेलन मुम्बई द्वारा घनश्यामदास सर्राफ सर्वोच्च साहित्य पुरस्कार, आंध्रा प्रादेशिक मारवाड़ी सम्मेलन द्वारा जमनालाल पुरस्कार, भगवती प्रकाशन, जोधपुर द्वारा संपादन पुरस्कार, बलदेवराम मिर्धा जयंती पर हीरानन्द साहित्य पुरस्कार, गोविन्दसिंह राजपुरोहित स्मृति पुरस्कार बोरावड़, जिला कलक्टर नागौर द्वारा दो बार सम्मानित, उपन्यासकार सम्मान, राजस्थानी भाषा प्रचार सभा, अमरसिंह राठौड़ साहित्य सृजन सम्मान नागौर, डी (आर.) लिट् मानद उपाधि, राजस्थानी विकास मंच, जालौर, राजपुरोहित भूषण राजपुरोहित पंचायत, नागौर भवन पुष्कर, द्वारका सेवा निधि सर्वोच्च साहित्य पुरस्कार जयपुर दी प्राईड ऑफ राजस्थान प्राज्ञ महाविद्यालय, विजयनगर, अजमेर राजस्थानी गौरव एवं समाज रत्न जयपुर इत्यादि विशिष्ट पुरस्कार और सम्मान से राजपुरोहित को नवाजा जा चुका है। श्री राजपुरोहित ने हिंदी और राजस्थानी नाटकों के साथ फिल्मों में भी विभिन्न भूमिकाएं निभाई हैं। देवकिशन राजपुरोहित ने साहित्य, शिक्षा, पत्रकारिता, संपादन और अभिनय आदि क्षेत्रों में अपनी विशिष्ट पहचान हासिल की है। वे राजस्थानी संस्कृति का पोषण करने वाले विरले व्यक्तित्व हैं। समाज में मूल्यों और संस्कारों के संरक्षण हेतु राजपुरोहित ने सदैव आदर्श जीवन जीते हुए कई प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। नागौर जिले के मेड़ता के छोटे से गांव चंपाखेड़ी के देवकिशन राजपुरोहित के विविध विधाओं में लिखे गए साहित्य में समाज को जागरूक करने के अनुकरणीय उदाहरण मिलते हैं।

चंपाखेड़ी के साथ ही अपने राजपुरोहित समाज को गौरवान्वित करने वाले इस मनीषी का नाम विगत और इस शताब्दी के इतिहास में पृष्ठ-दर-पृष्ठ अंकित हुआ है। श्री राजपुरोहित की विशेष वेश-भूषा और मधुर भाषा – व्यवहार के सभी कायल हैं। जो भी इनसे मिलते हैं, इनकी छाप उस पर कायम हो जाती है।

देवकिशन राजपुरोहित जब पत्रकारिता से साहित्य की दिशा में सक्रिय हुए तो राजस्थानी और हिंदी साहित्य की विविध विधाओं में लेखन प्रकाशन के बल पर कई उपलब्धियां अर्जित कीं। उनकी राजस्थानी भाषा में अनेक कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं।जिनमें सूरज, जंजाळ, कपूत, धाड़वी, कळंक, दातार, लिछमी, किशन, किरण, बीनणी, खेजड़ी, संथारो, मीरां, भूतनी (बाल उपन्यास), भंवरी, गजबण, चौथो पागो इत्यादि उल्लेखनीय उपन्यास के रूप में प्रतिष्ठित हैं।

वरजूडी रो तप, दांत कथावां, मौसर बंद, बटीड़, म्हारी कहाणियां इनके द्वारा रचित बेहतर राजस्थानी कहानी संग्रह हैं। सीख संस्मरण संग्रह – जुगत, यादें इत्यादि इनके एकांकी संग्रह हैं तो म्हारा व्यंग्य, निवण, चिलम भरो इनके उल्लेखनीय व्यंग्य हैं। याहिया मानले कैणों, फेर कांई चावणा, अणभै भाखै देवसा आदि इनके काव्य संग्रह हैं। राजस्थानी भाषा में सर्वाधिक उपन्यास लिखने वाले राजपुरोहित ने हिन्दी साहित्य में भी अपनी साहित्यिक प्रतिभा का लोहा मनवाया है। इनके हिन्दी में लिखे त्रिवेणी, पगली, बबली उपन्यास को पाठक चाव से पढते हैं। ममता, कठपुतली कहानी संग्रह भी बेहतर पुस्तकों में शुमार हैं। इनके हिन्दी में व्यंग्य संग्रह मंत्री का बंगला आ चुका है तो स्मृतियों के गवाक्ष और कैसे भूलूं संस्मरण संग्रह भी अपनी पहचान रखते हैं। नाटक संग्रह सगत और बाल साहित्य सुनो कहानी, मीरां बाई की जीवनी भी संग्रहीय कृतियां हैं। निबन्ध संग्रह आचार्य सप्तऋषि, अद्भुत चमत्कार इनके द्वारा पूर्ण सम्पादित पुस्तकें है। राजस्थान शासन परिचयांकन, राजनैतिक नारीरत्न, संसद में राजस्थान, राजस्थान के राज्यपाल, राजस्थान के मुख्यमंत्री, राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष, पंचायत राज प्रतिनिधि आदि इनके द्वारा लिखित परिचयाकंन पुस्तकें हैं। भवानीशंकर व्यास ‘विनोद’ ने राजपुरोहित के समग्र राजस्थानी साहित्य को, फारुक आफरीदी ने हिंदी साहित्य को तथा मनोहरसिंह राठौड़ ने व्यंग्य साहित्य को ग्रंथावली के रूप में प्रस्तुत किया है। श्री राजपुरोहित की अनेक रचनाऐं और आलेख देश के अनेक प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में वर्षो से प्रकाशित होते रहे हैं। आकाशवाणी, दूरदर्शन पर भी अपनी रचनाएं प्रस्तुत कर चुके हैं। इनकी अनेक रचनाओं और कृतियों का पंजाबी, गुजराती, संस्कृत, कनड़ एवं अंग्रेजी में अनुवाद भी हुआ है। श्री राजपुरोहित के साहित्य पर अनेक शोधार्थियों ने विभिन्न आधारों पर शोध कार्य किया है। उनके उपन्यासों पर शोध हेतु डॉ. गजेसिंह राजपुरोहित एवं राजपुरोहित के साहित्य में जनचेतना पर डॉ. मंजूबाला खत्री को पीएच.डी. की उपाधि अलंकृत की गई। माता उगम कंवर और पिता शिवनारायण सिंह के सुपुत्र देवकिशन राजपुरोहित का जन्म आज ही के दिन 6 अक्टूबर, 1944 को हुआ। एक शिक्षक के रूप में अपना सामाजिक सांस्कृतिक और शैक्षणिक जीवन आरंभ करने वाले श्री राजपुरोहित अपने देश और कुल का गौरव बन कर बहुत ख्याति अर्जित कर चुके हैं और राजस्थानी भाषा, साहित्य और संस्कृति के प्रतीक पुरुष के रूप में पहचाने जाते हैं। शिक्षक के रूप में 2 जुलाई 1963 से 7 जुलाई, 1977 तक बाड़मेर एवं नागौर जिले की विभिन्न प्राथमिक, उच्च प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में विशिष्ट अध्यापन तथा प्रशासनिक कार्य कौशल से अपनी एक अलग पहचान बनाई। पत्रकारिता से जुड़ने के बाद भी इनकी मास्टर जी की पहचान अर्से तक साथ रही। श्री राजपुरोहित को शैक्षिक और प्रसाशनिक पदों पर नवाचारों के साथ उल्लेखनीय कार्य हेतु विभिन्न सम्मान और पुरस्कार प्रदान किए गए। श्री राजपुरोहित ने नवभारत टाइम्स, नई दिल्ली के बीकानेर ब्यूरो चीफ से पत्रकारिता की शुरुआत की। बाद में श्री राजपुरोहित ने हिन्दुस्तान टाइम्स, नई दिल्ली के लिए जिला प्रतिनिधि के रूप में कार्य किया तो दैनिक नवज्योति के अजमेर और जयपुर संस्करणों हेतु ब्यूरो चीफ रहे। दैनिक प्रांतदूत के प्रकाशन से खुद का दैनिक अखबार शुरू किया। इसके बाद इसे साप्ताहिक कर दिया गया। मरुधर ज्योति और अनेक सहयोगी पत्रिकाओं द्वारा राजस्थानी भाषा के प्रति अलख जगाने का अद्वितीय कार्य किया। लगभग 40 वर्ष के पत्रकारिता का अनुभव रखने वाले श्री राजपुरोहित को सभी पत्रकार जी कहकर संबोधित करते हैं। श्री राजपुरोहित ने यायावर की तरह अपना जीवन जीते हुए देश विदेश की अनेक यात्राएं की हैं।