-वहीं हाल ही में प्रदेश के शिक्षा मंत्री ने पवित्र ग्रन्थ “रामचरित मानस” को नफरत बोने वाला ग्रन्थ बबताया
-पता नहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कैसे ऐसे नमूनों को क्यों अपने मंत्रिमंडल में जगह दी है।


पटना,रिपोर्ट अनमोल कुमार। 1990 के दशक में चंद राजनेता अपना राजनीतिक हित साधने के लिए प्रदेश के सामाजिक संरचनाओं को ध्वस्त कर रहे थे।प्रदेश की वो दुर्दशा इतिहास में एक कलंक कथा के रूप में दर्ज है।ऐसा लग रहा है जैसे एक बार फिर इतिहास को दुहराने की तैयारी चल रही है।पहले शिक्षा मंत्री और अब भूमि सुधार राजस्व मंत्री का शर्मनाक बयान,राजद का समर्थन और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का इस मामले पर बेपरवाह रवैया,सब कुछ योजनाबद्ध तरीके से होता नजर आ रहा है।
निःसंदेह इसी कड़ी में प्रदेश में जातीय जनगणना की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है।’फूट डालो, शासन करो’,कभी अंग्रेजों की रणनीति हुआ करती थी।आज उस रणनीति पर प्रदेश की राजनीति चल रही है।उसी रणनीति पर लालू प्रसाद यादव ने 15 साल बिहार पर राज किया और ऐसा लगता है कि अब उसी नीति पर चलकर नीतीश कुमार राजनीति में किसी तरह हासिए पर जाने से बचना चाहते हैं।
समाज को बाँटकर कर,समाज को कमजोर कर,भले ही कोई नेता सदन में खुद को मजबूत कर ले।लेकिन इतिहास के पन्नों में सामाजिक संरचना को कमजोर करने वाला,समाज को तोड़ने वाला,समाज में जहर घोलने वाला,समाज का कलंक ही कहलाएगा।