बीकानेर( कविता कंवर राठौड़ ) ।मैं विगत तीन वर्षों से यहां लंदन में राजस्थानी, हिंदी और संस्कृत भाषा शिक्षण कार्यों के दौरान यह महसूस करती रही हूं कि प्रवासियों में अपने देश और भाषा को लेकर बहुत उत्साह है। ये विचार राजस्थानी विदुषी इंदु बारौठ ने अंतरराष्ट्रीय राजस्थानी समाज संस्था द्वारा आयोजित ‘इक्कीसवीं सदी और कोरोनाकाल में राजस्थानी साहित्य’ विषयक पहली ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय गोष्ठी में व्यक्त किए। इंदु ने कहा कि राजस्थानी के आधुनिक साहित्य में वैश्विक स्तर पर होने वाले बदलावों की अनुगूंज को देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर होने वाले राजस्थानी साहित्य के विभिन्न कार्यों को अंतरराष्ट्रीय राजस्थानी समाज द्वारा रेखांकित करना बहुत महत्त्वपूर्ण और अभिनव कार्य है।
ऑनलाइन विमर्श में साहित्य अकादेमी नई दिल्ली के राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल के संयोजन पत्रकार लेखक मधु आचार्य ‘आशावादी’ ने कहा कि कोरोना काल में मैंने नवीन कृतियों का सृजन किया है वहीं समकालीन राजस्थानी साहित्य को पढ़ते हुए मुझे लगता रहा है कि राजस्थानी साहित्य भारत की अन्य भाषाओं से किसी भी अर्थ में कमतर नहीं है। आचार्य ने कहा कि भाषा, शिल्प और कथ्य के स्तर पर विविध विधाओं में जहां राजस्थानी में प्रयोग हो रहे हैं। राजस्थानी साहित्य आधुनिक संवेदनाओं की जटिलताओं को अभिव्यक्त करने में भी यह सक्षम हुआ है।

कहानीकार व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा ने चर्चा में कहा कि कोराना काल में उन्होंने अनेक नए व्यंग्य और अन्य रचनाएं लिखी हैं। उन्होंने बताया कि नए व्यंग्य संग्रह में हम देख सकते हैं कि समाज में किस प्रकार की विद्रूपताएं अब भी घर किए हुए हैं। शर्मा ने कहा कि समकालीन साहित्य में राजस्थानी सहित्य किसी भी मायने में कमतर नहीं है। अंतरराष्ट्रीय राजस्थानी समाज के संयोजक और आलोचक-कवि डॉ. नीरज दइया ने बातचीत में भाग लेते हुए कहा कि राजस्थानी साहित्य में आलोचनात्मक अध्ययन द्वारा अनेक आयामों को उद्घाटित किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि राजस्थानी महिलाओं की कविताओं के संकलन संपादन के साथ ही उन्होंने प्रेम कविताओं और कहानियों के दो संकलन संपादन राजस्थानी से हिंदी में किए हैं जिनके द्वारा पहली बार राजस्थानी के इन आयामों को व्यापक स्तर पर देखा समझा जा सकेगा।
ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय गोष्ठी में इंद्रजीत कौशिक, शारदा कृष्ण, डॉ. पी सी आचार्य, डॉ नमामीशंकर आचार्य, प्रभा पारीक, छोटू राम मीणा, राजेन्द्र जोशी, प्रशांत जैन, लहरी मीणा, राम निवास बांयला, सुंदर लाल तावणिया, आशोक जोशी और चंद्र प्रकाश सोनगरा आदि ने भी विचार व्यक्त किए।