यूँ तो पिछले कई वर्षों से, बल्कि कई दशकों में एक से ज्यादा वित्त मंत्री कई बार यह कह चुके हैं कि वे देश की अर्थ-नीति में बजट की महत्ता धीरे-धीरे कम हो जाएगी । इस बार कोशिश की गई है राम जाने कितनी सफल होगी | राष्ट्रपति भवन से अधिसूचना जारी हो चुकी है। साल २०२०-२१ के बजट के लिए लंबा इंतजार नहीं करना पड़ेगा । अब फरवरी के पहले दिन बजट आ जायेगा और ऐसी चर्चा भी है कि अभी यह और आगे आ सकता है । अब देश का वित्त वर्ष भी अप्रैल की बजाय जनवरी में शुरू होने लगेगा। यानी कैलेंडर वर्ष और वित्त वर्ष एक समान हो जायेगा ।
यदि सरकारी नीतियां जल्दी-जल्दी बदलती न रहें, तो फिर बजट सिर्फ सरकार की कमाई और खर्च का हिसाब ही तो रह जाएगा। यह चिंता हर बार बजट के साथ नहीं करनी होगी कि इस बार न जाने किस चीज पर टैक्स बढ़ जाए और न जाने हमें मिलने वाली कौन सी राहत गायब हो जाए। एक मोर्चे पर तो यह काम हो गया है। जीएसटी आने के बाद अब बजट का वह हिस्सा समाप्त हो गया है, जिसमें अप्रत्यक्ष कर और ड्यूटी में कटौती-बढ़ोतरी के इमकान हुआ करते थे। इस लिहाज से उद्योग-व्यापार में लगे एक बहुत बड़े तबके के लिए अब बजट कोई त्योहार का दिन नहीं रह गया है, क्योंकि जीएसटी की दरें तय हो गई हैं और उसमें शामिल चीजों को ऊपर-नीचे करने या फिर स्लैब बदलने का भी फैसला करना हो, तो उसके लिए जीएसटी कौंसिल है।
उद्योग संगठनों की मांगों में भी इनकम टैक्स में कटौती की मांग न सिर्फ शामिल है, बल्कि सबसे ऊपर है। इसके साथ यह बात समझनी जरूरी है कि उद्योग और व्यापार संगठनों को आम करदाता की इतनी फिक्र क्यों है। यह मांग क्या इसलिए की जा रही है कि उद्योगपति और व्यापारी ही इनकम टैक्स देते हैं? आम तौर पर यह वर्ग काफी बड़ी रकम चुकाता हैं और उन्हें खुद के लिए भी राहत चाहिए?
सही मायने में जो भी किसी तरह की राहत मांग रहा है, वह इस उम्मीद में ही मांग रहा है कि किसी तरह अर्थव्यवस्था में वापस जान डाली जा सके। टैक्स कटौती की मांग भी उद्योगपति और व्यापारी इसीलिए कर रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि अगर ढाई से पांच लाख रुपये सालाना कमाने वाले लोग जो अभी पांच फीसदी टैक्स देते हैं, उन्हें यह टैक्स न देना पडे़, तो वे यह पैसा खर्च करेंगे। इससे बाजार में सभी तरह की चीजों की मांग पैदा होगी, बिक्री बढ़ेगी और कारोबार का लड़खड़ाता चक्र चल पडे़गा।