

शासन प्रशासन से राहत की उम्मीद रहती है पर उल्टा हो रहा, परेशानीयाॅ बढ़ रही है। पुलिस कमिश्नरी से बड़ी उम्मीद थी कि पुलिस कर्मियों की मनमानी रुक जाएगी परंतु उल्टा कई थानो पर गरीब आदमी बहुत परेशान हैं थाने पर बिठाने का डर बना कर हजारों में पैसे मांगते है। पुलिस व्यवस्थित ट्रैफिक सुधारने के बजाय चालन बनाने मे लगी है। पंचायत और निकाय चुनाव का समय आ गया, नया चंदा देने का खतरा सिर पर मंडराने लगा, ना दिया तो भैया नाराज और पैसा लाए तो कहां से लाएं रोज निरंतर स्थानीय, प्रांतीय व केंद्रीय कर बढ़ रहे हैं। विकास के नाम पर पैसे का दुरुपयोग हो रहा है सबको दिखता परंतु शासन को नहीं दिखता है। किसी भी सर्च एजेंसी की विभागो पर कड़ी निगरानी नहीं रही कोई कड़ा सुपरविजन नहीं कोई ऑडिट नहीं कितना रुपया आया कहां खर्च हुआ व्यवस्थित एवं जरूरी खर्च हुआ इसकी कोई जांच नहीं। भ्रष्टाचार का पता लगाने के लिए विभाग में कौन सा काम फटाफट हो गया और कौन सा काम बहुत समय तक लंबित है इस पर कोई निगाह नहीं। फल फ्रूट, खाद्यान्न से लेकर बिल्डिंग मटेरियल एवं जमीनों की कीमत आसमान छू रही पर मध्यम क्लास की इनकम वही की वही। कर्जा लेकर काम चला रहे है। परेशानियां एवं तनाव से उम्र घट रही। जलकर, मल कर लग रहा होटल में खाने पर टैक्स लग रहा है शुक्र मनाओ कि हवा (सांस लेने) पर कर नही। क्या सोचे मेरा भारत महान है।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्)