संपादकीय
कल बडौदा पहुंचा और महात्मा गाँधी के साबरमती आश्रम के बारे में जो बातें सुनी तो सोचा “वर्ल्ड क्लास” होने के पहले एक बार इसे फिर से देख लिया जाये | गाँधी जी ने साबरमती नदी के किनारे १७ जून १९१७ को इस आश्रम की स्थापना की थी। मार्च १९३० तक यह गांधीजी का मुख्यालय रहा। १२ मार्च १९३० को वे यहीं से अपने ७९ साथियों के साथ ऐतिहासिक ‘दांडी कूच’ पर निकले थे।
इस आश्रम को ‘वर्ल्ड क्लास’ बनाने के लिये ३२ एकड़ जमीन को खाली कराया जा रहा है । जो जमीन खाली कराई जा रही है, उसमें ‘सर्व सेवा संघ’ द्वारा स्थापित ‘खादी ग्रामोद्योग प्रयोग समिति,’ ‘गुजरात खादी ग्रामोद्योग मंडल,’ ‘साबरमती आश्रम,’ गौशाला, कार्यकर्ता निवास, उत्तर-बुनियादी विद्यालय, पी.टी.सी. कॉलेज आदि हैं। इस योजना के कारण पीढ़ियों से रह रहे २०० परिवारों को वहां से स्थानांतरित कर आश्रम के बगल में अवस्थित झोपड़पट्टी में गटर के किनारे ले जाने की योजना है। यह सब अत्यंत गुप्त रूप से किया जा रहा है।
२० सितंबर को ‘खादी ग्रामोद्योग आयोग’ की ओर से ‘साबरमती आश्रम’ के आसपास अवस्थित संस्थाओं को एक पत्र लिखकर कहा गया है कि-” भारत के माननीय प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में गठित कमेटी में यह निर्णय लिया गया है कि महात्मा गांधी जन्म जयंती के १५० वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में गांधी आश्रम, अहमदाबाद का विस्तार बढ़ाया जाये एवं साबरमती आश्रम को वर्ल्ड क्लास मेमोरियल के रूप में तैयार किया जाये। इस कार्य में गुजरात सरकार तथा अहमदाबाद म्यूनिसीपल कॉरपोरेशन की भी जिम्मेवारी तय की गयी है।’दुनिया बापू की सादगी देखने आती है। चमक-दमक तो दुनिया में बहुत है, उसे देखने के लिये साबरमती आने की जरुरत नहीं है।“ वाराणसी के हाल तो देख ही चुके हैं, काशी को क्योटो जैसा बनाने के लिए इतना बदला गया है की काशी अब पहचान खोती जा रही है | साबरमती के साथ भी ऐसा ही कुछ हो रहा है,पिछले घटनाक्रम किसी और बात की आशंका का संकेत देते हैं |
जैसे कुछ महीने पूर्व इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामीन नेतन्याहू साबरमती आश्रम आये थे। उन्हें ‘हृदयकुंज’ में बापू के आसन पर बिठाया गया। यह आसन दुनिया के लिये एक पवित्र धरोहर है। उस दिन तक इस आसन पर और कोई नहीं बैठा था । गांधी नगर में ‘महात्मा मंदिर’ के नाम पर क्या तमाशा हुआ दुनिया के सामने है। अब साबरमती आश्रम की बारी है। ऐसी चर्चा है कि अगला निशाना ‘गुजरात विद्यापीठ’ और ‘सेवाग्राम आश्रम’ है। केन्द्र सरकार ने ‘साबरमती आश्रम’ के पुनरोद्धार तथा नये ढंग से विकसित करने के लिये २८७ करोड़ रुपये की सैद्धांतिक स्वीकृति प्रदान की है। आश्चर्य है कि ‘साबरमती आश्रम’ के किसी भी ट्रस्टी ने इस तथाकथित विकास पर कोई आपत्ति दर्ज नहीं करायी है। इस संबंध में पूछे जाने पर वे सारी बातों को गलत बताते हैं, पर इस योजना के बारे में प्रकाशित समाचारों का किसी ने खंडन नहीं किया। साबरमती आश्रम संग्रहालय का उद्घाटन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने अशोक का एक पेड़ लगा कर किया था। वहां इस आशय का एक बोर्ड लगा हुआ था, जिसे मैंने साल भर पहले देखा था । पिछले दिनों मोदी के आश्रम से उस बोर्ड को हटा दिया गया।