जयपुर । यह राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की राजनीतिक दूरदर्शिता ही है कि वे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम की दुहाई देकर जनता को कोरोना से बचाव का आंदोलन शुरू कर रहे हैं। बेशक गहलोत जमीन से जुड़े नेता हैं। अगर मोदी जैसे प्रधानमंत्री उनके कार्यो की प्रशंसा करते तो निश्चित ही उसके मायने हैं। वो भी तब जब अशोक गहलोत मोदी की सटीक आलोचना करने में कभी नहीं चूके हैं। गहलोत औऱ मोदी बदली हुई भारतीय राजनीति में जन नेतृत्व के प्रतीक माने जा सकते हैं। गहलोत ने बापू के जन्म दिवस 2 अक्टूबर को कोरोना के खिलाफ जो जन आंदोलन का आगाज किया है। यह उनकी राजनीतिक सूझबूझ औऱ दूरदृष्टि ही कही जाएगी। उनको अपनी जनता की चिंता है। मन्त्रियों तक को जनता के दुख दर्द में शामिल किया है। वे केवल सत्ता के सुख के लिए राजनीति नहीं कर रहे हैं जनता के दर्द को अनुभव करते हैं।
कांग्रेस की वर्तमान नेताओं के देश प्रदेश की हालातों पर भूमिका का निष्पक्ष आकलन करके देख लें। चाहे राहुल गांधी हो या सचिन पायलट। यहां कोई आलोचना मकसद नहीं है। निष्पक्ष आकलन करें तो राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपनी पार्टी के नए नेता चुनाव के प्रस्ताव को ठुकरा दिया।वहीं पायलट ने मुख्यमंत्री बनने के लिए क्या नहीं किया। अपनी पार्टी की सरकार पर दांव खेला। कांग्रेस को संकट में डाला। राज्य की जनता को संकट की घड़ी में बदहाली में जीने को मजबूर किया। नेतृत्व की दूरदर्शिता कहीं दिखाई हो तो बता दें ? कोरोना महामारी का संकट, विकट आर्थिक हालात तिस पर अपनी ही पार्टी के लोगों ने सरकार पर संकट खड़ा किया। इन सबसे वे अपने नेतृत्व क्षमता के कारण उबरे हैं। अब महामारी के संकट से जनता को बचाने के लिए जो करने जा रहे हैं उसमें जन सहयोग जुड़ जाए तो बहुत कुछ बदल सकता है। जनता नेतृत्व की भावनाओं को आत्मसात करके तो देखें। जैसा बापू के नमक आंदोलन का परिणाम आया वैसा हो सकेगा इसमें कोई संदेह नहीं है। बस जरूरत करके देखने की है।