

बीकानेर। हम सब के पास बुद्धी है, हम सबके पास समझ है, समझ है तो समाज बनता है, समाज बनता है तो संघ बनता है और समूह बनता है। लेकिन बुद्धी का परिष्कार हो तो सम्यक ज्ञान मिलता है और इससे ही हर समस्या का समाधान होता है। श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने जिनवाणी का श्रवण करते हुए यह बात कही। महाराज साहब ने शनिवार को साता वेदनीय कर्म के आठवें बोल सम्यक ज्ञान में रमण करता जीव साता वेदनीय कर्म का बंध करता है के ‘बुद्धी का परिष्कार’ विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि बुद्धी दो प्रकार की होती है। एक मलीन और दूसरी निर्मल होती है। जिस शक्ति से बुद्धी का परिष्कार होता है, वह सम्यक ज्ञान है। निर्मल बुद्धी वाले को ही सम्यक ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है।
महाराज साहब ने बताया कि जीवन जहां है, वहां संघर्ष है, मुश्किलें हैं, समस्याऐं हैं और परेशानी है। इनका हल बुद्धी का परिष्कार निकालता है। बुद्धी के परिष्कार का ही एक प्रसंग आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने गुजरात के राजा भीमसेन के दीवान और मालवा के राजा राजाभोज के यहां भस्मी को भेजने और फिर वहां से आने वाले प्रतिउत्तर के माध्यम से बताया। दूसरा प्रसंग जोधपुर के राजा और बीकानेर के दीवान के माध्यम से समझाते हुए कहा कि अक्ल हमेशा स्वयं की काम आती है। आचार्य श्री ने बताया कि आज देखने में आ रहा है कि लोगों की बुद्धी विकृत हो गई है। लेकिन आप परिष्कृत बुद्धी के साथ अपनी बात करते हैं तो आप हर बात को कहने का तरीका रखते हैं और यह अच्छी बात बन जाती है। महाराज साहब ने कहा कि सम्यक रूप से की गई बात संतुष्टि देने वाली होती है। अगर हमारे ज्ञान में शुद्धता है, निर्मलता है तो बुद्धी का परिष्कार होगा ही होगा।
सम्यक ज्ञान की प्राप्ति का उपाय बताते हुए महाराज साहब ने बताया कि सम्यक ज्ञान किसी को भी हो सकता है। आप जितना स्वाध्याय करेंगे, उतना ही आपका ज्ञान विस्तारित होता जाएगा। स्वाध्याय धर्म-ध्यान से प्राप्त होता है। यह डाकू को भी एक अच्छा श्रावक बना देता है। केवल धर्म-ध्यान की पुस्तक के पढऩे से ही एक कथा प्रसंग के माध्यम से डाकू के हद्धय परिवर्तन की घटना से अवगत कराया।
आचार्य श्री ने कहा कि जैन समुदाय व्यापार-वाणिज्य करने वाला समुदाय है। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि धन भी धर्मपूर्वक कमाया जाए, व्यापार भी धर्म पूर्वक, नीति पूर्वक, न्यायपूर्वक करना चाहिए। व्यापार करें तो स्वाध्याय पूर्वक करें।
आचार्य श्री ने प्रवचन किस लिए और क्यों जरूरी है, इस पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रवचन शांति के लिए किया जाता है। प्रवचन वही सुनता है, समझता है और चिंतन कर उसे आचरण में ढालता है जिसे स6यक ज्ञान की प्राप्ति हुई है। महाराज साहब ने आए हुए सभी श्रावक-श्राविकाओं से कहा कि वे संघ के प्रति निष्ठावान बनें, रहें और संघ की गरिमा को बढ़ाते हुए स्वयं का विकास करें।
भजनों से दिया जीवन संदेश
अपना कर्तव्य करते चलो, चिंता करने से कैसे चलेगा, जिनको अपना समझते हैं हम, ज्यादा मिलता उन्हीं से गम, जब आशा कोई तोड़ दे, बीच मझदार में छोड़ दे, दिल को थामे अकेले चलो, चिंता करने से कैसे चलेगा’ और प्रवचन से पूर्व झूम-झूम कर गीत प्रभु के गा..गा…गा…,भजन सुनाकर उसके जीवन संदेश का भावार्थ समझाया।
संघ ने किया श्रावकों का स्वागत सम्मान
श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष विजयकुमार लोढ़ा ने बताया कि शनिवार को चित्तौड़ , नगरी और मेवाड़ सहित राजनंदगांव एवं अन्य स्थानों से श्रावक-श्राविकाऐं आचार्य श्री के दर्शनार्थ सेठ धनराज ढ़ढ्ढा की कोटड़ी में पहुंची। जहां संघ की ओर से उनका स्वागत किया गया। श्रावक-श्रावीकाओं की तपस्याऐं भी चल रही हैं। आचार्य श्री ने मंगलिक सुनाकर पच्चक्खान कराए।