

दुनिया में सर्वव्यापी त्राहि त्राहि मची हुई है। इतिहास साक्षी है कि दुनिया के अनेक भागों में अनेकों प्रकार की महामारी, आपदाओं व विषम परिस्थितियों का सामना हुआ है, किन्तु जीवाणुओं के वायरस से होने वाली ऐसी विध्वंसकारी महामारी कभी भी नहीं आई होगी?
निःसंदेह विज्ञान ने अनेक क्षेत्रों में नई नई तकनीक का आविष्कार किया हैं, साथ ही साथ भौतिकवाद के चकाचौंध में मानव को, इतना आकर्षित किया कि उसे मायावी व्यक्ति बना दिया और उसकी सोच को ऐसा बदला कि उसे मानवीयता का मूल्यांकन करना केवल मुर्खतापूर्ण या रुढ़िवाद की बातें मात्र ही समझ में आने लगी ।
प्रकृति हमें बार बार अनेक रूपों में संकेत करती आ रही हैं। किन्तु
जैसे जैसे बुद्धि का विकास हुआ, बुद्धि के साथ-साथ अहंकार और अहंकार के साथ अपरिग्रह का विकास, और जिससे लालसा और विलासितापूर्ण भोग में लिप्त होने लगा जिसके फलस्वरूप बुद्धिमान मानव ने प्रकृति का दोहन और हनन करना शुरु किया, जहां से कमजोर का शोषण शुरू हुआ और इसके साथ ही प्रतिशोध का उद्भव हुआ।


वहीं दूसरी और प्रतिस्पर्धा व पाश्चात्य संस्कृति की ऐश्वर्य की विलासिता के दौर में प्रगति के नाम पर अपने व अपनों से दूर ऐसे चक्रव्यूह में सरोकार हो गया कि आज उसे सिर्फ और सिर्फ पैसों की चमक ही सर्वोपरि लगने लगी और दुनिया में सबसे बड़ा आदमी बनने की ऐसी लालसा जागृत हुई, कि अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए हिंसक से हिंसक गतिविधियों में लिप्त होकर वह सब कुछ करने को तैयार हो गया, चाहें उसे मानवता को कलंकित करने वाला कार्य ही क्यों न करना पड़े, निःसंदेह वो तैयार हैं और कार्य को इस कदर सम्पादित करता है कि किसी को पता भी नही चलने देता।
अनेकानेक सेवादार भी पद लोलुपता के मायाजाल के दलदल में हिंसक घटनाओं का जनकदाता बनता जा रहा है,सम्प्रदाय,जाति,धर्म, रंग,भेद,काल,क्षेत्र आदि के बहाने आदमी को आदमी से लड़ाना,दंगा कराना, तथा रिश्वतखोरी,काला बाजारी, भ्रष्टचारियों आदि अनेक हिंसक गतिविधियों को बढ़ावा देकर वो अपने आपको सबसे बड़ा ताकतवर बनाना चाहता है।
सार्वभौम सत्य है कि संसार में जब जब राक्षसी प्रवृत्ति या विध्वंसकारी प्रवृतियों का प्रकोप बढ़ा है सृष्टि कुपित होकर इन दुषित प्रवृतियों को परास्त कर संसार में सुख समृद्धि का विकल्प प्रदान किया है।
आज यह प्रश्न उठता है कि क्या भविष्य में ऐसी विनाशकारी प्रवृतियों से बचने का उपाय हैं,क्या समृद्धि की विकास यात्रा में सतयुगी सृष्टि का निर्माण संभव हैं?
हमें आज पुनः राम,रहीम, कृष्ण, महावीर, बौद्ध, ईसा,गुरु नानक, तुलसी एवं महाप्रज्ञ आदि महान संतों व ऋषियों-मुनियों के संदेश को समझना होगा।
विनाशकारी महामारी से निपटने के बाद हम एक ऐसी सृष्टि रचना की परिकल्पना करें जिसमें चारों दिशाओं में नैतिकता,प्रामाणिकता,योग्यता व कर्मशील योद्धाओं की प्रधानता,और जाति,धर्म एवं सम्प्रदायवाद से विमुक्त मानवीयता को केंद्रित कर अंतराष्ट्रीय स्तर में विकासोन्मुख योजनाओं का क्रियान्वयन कर सकें।
हमें पदलोलुपता से ऊपर उठना होगा,वोट बैंक का मोह त्यागना होगा तब ही हम भविष्य के नवनिर्माण में काला बाजारी व भ्रष्टचारियों को बढ़ावा देने वाली ऐसी विनाशकारी स्कीमों को जैसे सब्सिडी,मुहावजा,मुफ्त में बांटना,प्रोत्साहन,भत्ता आदि से देश व आदमी को कमजोर करने वाली समस्त योजनाओं का नामोनिशान मिटा देना चाहिए।
भारतीय संस्कृति को ध्यान में रखते हुए डीजिटल नेटवर्किंग साइट्स आदि नये नये तकनीक संसाधनों के साथ रोजगारोन्मुखी, व्यवसायिक, एवं जीवनोपयोगी सामग्रियों के निर्माण में इंडस्ट्रीज व घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देने के साथ ही साथ आध्यात्मिक गुरुजनों की अमृतवाणी के अनुरूप भावी पीढ़ी के सुखमय जीवन में अहिंसक प्रणाली से सृष्टि सृजन की परियोजनाओं को बनानी चाहिए और प्रकृति के प्रति सम्मान रखना चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी विनाशकारी महामारियों से संसार को बचाया जा सकें।


परंपरागत औपचारिकताओं के ढ़ांचे को बदलें और जीवन निर्वाह का मजबुत आधार बनायें।
वर्तमान परिस्थितियों में पुरी दुनिया की 780 करोड़ आबादी में से भारत जैसे विशालकाय क्षेत्रफल में कर्मठवान, कुशल, शम सम व श्रम के 135 करोड़ आबादी में से 65% पुरूषार्थी युवा शक्ति हमारे पास हैं, श्रमशील हैं,समृद्धिशाली हैं, कृषि प्रधान उर्वरा भूमि हैं, संप्रभुता की धरोहर हैं, चहुंओर समग्र एकता हैं, सेवा, संस्कार व संगठन हमारी मिसाल हैं।
अपेक्षा है समय का मूल्यांकन करें और दुनिया में संभावित आने वाली 50% बेरोज़गारी की आंशका की जगह ‘हम और आप’ सरकार के साथ एक मंत्र से अभिमंत्रित होकर राष्ट्रीय उत्थान के लिए आगे आए!
हमारा लक्ष्य हो कि योजना को कारगर करना हैं, सरकार की इच्छाशक्ति को जागृत करना हैं सरकार को हमारे मनोबल के प्रति आकर्षित करना हैं,और समाज के प्रोफेशनल वर्ग,व्यापारी वर्ग,वैज्ञानिक,रक्षा विशेषज्ञ, डॉक्टर आदि आमजनों का मनोबल सरकार के साथ और हमारे साथ होना आवश्यक हैं ।
सौभाग्य से शुद्ध जलवायु का संयोग मिल रहा हैं,सौंदर्य से सुसज्जित प्रकृति दोनों हाथों से आशीर्वाद प्रदान कर रही हैं और उत्तरोत्तर प्रगति पथ पर हमेंआगे बढ़ने को कह रही हैं,कि आओ बच्चों नया इतिहास रचने का संकल्प करो, और आगे बढ़ो!
एक धर्मनिष्ठ राजा की तरह हमारे प्रधानमंत्री महोदय को भी पौराणिक कथाओं के सारगर्भित मार्गदर्शन को समझने का प्रयास करना चाहिए और देशभक्तों की रक्षा व मनोबल को मजबूत करने के लिए आतंकवाद, अलगाववाद, नक्सलवाद, एवं समाज के विघटनकारी संगठनों को पुर्ण रुप से प्रतिबंधित करना चाहिए और टीवी चैनलों पर असामाजिक तत्वों के बोल बच्चन को श्रैय देने पर भी प्रतिबंध लगाना चाहिए,तथा त्राहि त्राहि कर रही आम जनता पर Tax को एकदम न्युनतम कर देना चाहिए ।


आज प्रत्यक्ष हैं कि हमारा देश, दुनिया की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम हैं, आयात व निर्यात की विदेश नीति अनुकूल हो तो बहुत ही जल्द
” भारत धर्मगुरु ” ही नहीं अपितु शक्तिशाली देश बन सकता हैं।” भारत नव निर्माण में सक्षम हैं ” सरकार के साथ ” हम और आप ” कंधे से कन्धा मिलाकर चलें तो हम स्वयं स्वदेशी आइटमों के बल पर अंतराष्ट्रीय बाजार में बड़े से बड़ा ब्रांड बनाने मेंं सफल बनेंगे औरभारत को आत्मनिर्भर बना सकते हैं और प्रत्येक भारतीय को भी विदेशी ऋण से मुक्त बना सकते हैं।
!सोच बदलेगा,दुनिया बदलेगी,विकास को राह मिलेगी!


मोहन लाल भन्साली,
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